छत्तीसगढ़ में बासमती चावल के नाम से प्रसिद्ध नगरी दुबराज चावल सुगंधित धान की प्रजाति है. इसकी ख्याति देश-विदेशों में खूब है. इस चावल को सुगंध, स्वाद और पौष्टिकता के लिए जाना जाता है. नगरी दूबराज चावल की खेती मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा जिलों में व्यापक रूप से की जाती है. नगरी दुबराज चावल को जीआई टैग मिल चुका है.
नगरी दुबराज चावल की खेती सबसे पहले सिहावा में हुई थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सिहावा का संबंध ऋषि श्रृंगी के आश्रम से है. जहां राजा दशरथ ने पुत्र कामना के लिए पुत्रष्ठि यज्ञ किया था. ऐसे में आइये जानते हैं इस चावल की विशेषताओं के बारे में-
नगरी दुबराज चावल की सुगंध ही पहचान है
नगरी दुबराज बासमती चावल का एक किस्म है. इस चावल की अपनी विशेष पहचान में सुगंध ही है. इसकी सुगंध काफी दूर तक फैलता है. इसे पकाने पर ये इतना सुगंध फैलता है कि घर के पड़ोस तक इसकी खुश्बू जाती रहती है. ये चावक काफी नरम होता है. इसको पकाने पर संतुलित पानी डालकर ध्यानपूर्वक पकाया जाता है.
नगरी दुबराज चावल एक अच्छा पौष्टिक स्रोत है, जिसमें फाइबर, प्रोटीन और विटामिन होते हैं. नगरी दूबराज चावल का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है, जैसे कि बिरयानी, पुलाव, खीर और हलवा. यह चावल एक स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन विकल्प है.
नगरी दूबराज चावल की खेती
नगरी दूबराज चावल की खेती के लिए उपजाऊ मिट्टी और अच्छी जल निकासी की आवश्यकता होती है. इस चावल को आमतौर पर जून से जुलाई के महीने में बोया जाता है और 120-140 दिनों इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है. नगरी दूबराज चावल की कटाई का समय अक्टूबर से दिसंबर के महीने में होता है.
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नगरी दूबराज चावल को 2019 में मिला जीआई टैग
नगरी दूबराज चावल को 2019 में जीआई टैग मिला, जिससे इसकी पहचान एक विशिष्ट भू-आधारित उत्पाद के रूप में हुई. इस टैग से नगरी दूबराज चावल को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. साथ ही साथ इस चावल की डिमांड देश के कई राज्यों से बढ़ने लगी है, और कई देशों के साथ इसका निर्यात किया जाता है. इस चावल की सुगंध सभी को अपनी तरफ आकर्षित करती है. और काफी ही सुपाच्य, स्वादिष्ट और पौष्टिक चावल है.
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