सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) खरीफ और रबी के मध्य में की होती है. इसकी खेती देश के कई प्रमुख राज्यों में होती है, जिसमें पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात का नाम आता है. इन राज्यों के किसान सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) से कर काफी अच्छी कमाई कर रहे हैं.
अगर किसान सही तरीके से सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) की करें, तो इसकी खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम साबित नहीं होगी. इसके चलते जयपुर में साल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एस.ई.ए) की सभा सरसों पर हो रही है. इस सभा में कृषि राज्य मंत्री, राजस्थान प्रभु लाल सैनी और वैज्ञानिकों में जीएम सरसों को उगाने के ऊपर मतभेद दिखें हैं. आइए इस संबंध में अधिक जानकारी देते हैं.
इस सभा के दौरान प्रभु लाल सैनी ने कहा कि हमारे देश में उगाई जाने वाली सरसों की किस्में 40 से 42 प्रतिशत तक तेल रखतीं है. वहीं, हमें जीएम सरसों को उगाने की जरूरत नहीं है और सरसों में बिना जीएम तकनीकि के उन्नतिशील किस्मे तैयार की जा सकतीं है.
इसके साथ ही डॉ दीपक पेंटल, दिल्ली विश्वविद्यालय ने जीएम सरसों की हानि और लाभ पर परिचर्चा की. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जहां यूरोप में 80 प्रतिशत सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) की जाती है, तो वहीं चीन और कनाडा में 70 प्रतिशत तक जीएम सरसों उगाई जा रही है और हम आज भी इस विषय पर सिर्फ बहस ही कर रहें है.
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इसके अलावा डॉ भागीरथ चौधरी, निदेशक, पश्चिमी एशिया बायो टेक्नोलॉजी सेंटर नई दिल्ली ने सभी में कहा कि सच्चाई तो यह है कि हम 15 मिलियन टन सरसों तेल ऐसे देशों से आयत करतें है जो कि सिर्फ जीएम सरसों ही उगा रहे हैं. बड़ी विडम्बना यह है कि हमारे किसानों को इसको उगाने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
अगर जीएम सरसों की खेती (Sarso Ki Kheti) को अनुमति मिल जाए, तो भारत में खाद्य तेलों पर आयात की निर्भरता को कम किया जा सकता है. जानकारी के लिए बता दें कि जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है, जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया गया रहता है. ऐसा इसलिए, ताकि फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो, साथ ही फसल को कीट प्रतिरोधी बनाया जा सके.
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