नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की वापसी हो गई है. अगले पांच साल देश की रुपरेखा यही तय करेंगे. वैसे तो समस्याओं का अंबार लगा है परंतु कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसपर ध्यान न देना सरकार और देश दोनों को भारी पड़ सकता है. किसान, सब्सिडी, एमएसपी और कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनपर कठोर फैसले लेने की आवश्यकता है. लेकिन घटता जलस्तर एक ऐसा विषय है जो बहुत नाजुक है और जिसपर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे. पानी की कमी आज देश के लिए चिंता का विषय है. हर जगह लोग पानी की कमी का अनुभव कर रहे हैं.
क्या है समस्या ?
देश का आज ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां पानी की समस्या न हो. गांव-कस्बों की तो छोड़ दो महानगरों में भी पानी की किल्लत हो रही है. हैंडपंप, झरने, तालाब सूख गए हैं क्योंकि भूमिगत जल खत्म हो रहा है. कईं जगहों पर सूखे के हालात हैं. अब ऐसी स्थिति मे खेती करना मुश्किल है. क्योंकि खेती अब पहले जैसी नहीं रही. अब जो किस्में उपलब्ध हैं वो ज्यादा पानी खाती हैं और धान में कितना पानी लगता है, ये बताने की जरुरत नहीं है. इसलिए सरकार के सामने घटता जलस्तर एक बहुत बड़ी चुनौती है.
कैसे होगा उपाय
सरकार के सामने चुनौती तो विकट है परंतु ऐसा नहीं है कि इसपर नियंत्रण नहीं किया जा सकता. अगर पूरी रणनीति और इच्छाशक्ति से काम किया जाए तो इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है. सरकार के पास फिलहाल जितने साधन हैं, उनसे भी सरकार इस मुद्दे पर नियंत्रण कर सकती है. लेकिन क्या सरकार के पास कुछ ऐसे उपाय हैं जिनको अपनाकर वो जलस्तर को घटने से बचा सकती है ?
हां, ऐसे तमाम तरीके हैं जिससे यह काम हो सकता है -
- वर्षाजल को संरक्षित किया जाए.
- पुरानी उन किस्मों पर ध्यान दिया जाए जो कम पानी खाती हैं.
- धान की कम से कम पैदावार की जाए.
- सरकार और निजी कंपनियां साथ आकर एक साझा रणनीति बनाए.
- अगर जल्द ही कड़े कदम नहीं उठाए जाते तो जल का स्तर खत्म होते ही मानव समेत समस्त प्राणजाति खतरे में पड़ जाएगी.
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