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बाल केशव ठाकरे से 'बाला साहेब ठाकरे' बनने की कहानी

पुणे में रहने वाले एक मराठी परिवार में 23 जनवरी 1926 को बाल ठाकरे का जन्म हुआ. उनके पिताजी केशव सीताराम एक प्रगतिशील समाजसेवी और लेखक थे और जातिप्रथा के विरोधी थे. बाल ठाकरे में भी अपने पिता के ही गुण थे और वह भी क्रांतिक्रारी विचारों को अपने में समाए हुए थे. बस, सही समय का इंतज़ार था.

गिरीश पांडेय
गिरीश पांडेय
Bala saheb thakrey
Bala saheb thakrey

पुणे में रहने वाले एक मराठी परिवार में 23 जनवरी 1926 को बाल ठाकरे का जन्म हुआ. उनके पिताजी केशव सीताराम एक प्रगतिशील समाजसेवी और लेखक थे और जातिप्रथा के विरोधी थे. बाल ठाकरे में भी अपने पिता के ही गुण थे और वह भी क्रांतिक्रारी विचारों को अपने में समाए हुए थे. बस, सही समय का इंतज़ार था.

कहां से हुई शुरुआत

बाल ठाकरे ने अपनी नौकरी की शुरुआत एक प्रसिद्ध समाचार-पत्र से की, जिसका नाम था - 'फ्री प्रेस जर्नल'. इस समाचार-पत्र में बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के पद पर थे और अखबार के लिए व्यंग्य चित्र बनाते थे. परंतु कभी-कभी उनके व्यंग्य चित्र इतने तीखे हो जाते थे कि तत्कालीन नेता या सरकार उनके चित्रों पर आपत्ति जताती थी और समाचार-पत्र के ऑफिस में शिकायत करती थी परंतु बाल ठाकरे ने कभी भी अपने चित्रों और अपनी आवाज़ को बुलंद करने में समझौता नहीं किया. एक दिन अखबार के मालिक ने उनके चित्रों को लेकर नराज़गी दिखाई तो बाल ठाकरे ने नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया.

शुरु किया अपना साप्ताहिक

बाला साहेब ठाकरे के मन में मराठी मानुष के लिए अति प्रेम था और वह हर रोज़ मराठियों के साथ हो रहे अत्याचार और तिरस्कार को देख रहे थे. चाहे वह सिनेमा हो या असल जिंदगी, मराठी तबका महाराष्ट्र में तिरस्कृत किया जा रहा था. बाल ठाकरे के मन में यह बात बहुत चुबती थी और उन्होनें सोचा कि कहीं और नौकरी कर फिर इस्तीफा देने से अच्छा है कि खुद का एक साप्ताहिक निकाला जाए और महाराष्ट्र में मराठीयों को यह बताया जाए कि - हाथ फैलाकर भीख मांगने से अच्छा है गुंडा बनकर अपना हक झीनना. बाल ठाकरे के साप्ताहिक में हर नेता और पार्टी के बारे में व्यंग्य चित्र मौजूद थे और साथ ही साथ मराठी समुदाय को आवाह्न था कि - एकजुट हो जाओ और बाहर से आए लोगों से मत डरो क्योंकि महाराष्ट्र पर पहला अधिकार मराठी मानुष का है.

कैसे बन गए बाला साहेब और हिंदू हृदय सम्राट

साप्ताहिक के प्रकाशित होने के बाद धीरे-धीरे लोग बाल ठाकरे से जुड़ने लगे और अपनी-अपनी समस्याएं लेकर आने लगे. चाहे समस्या सामाजिक तौर पर हो, व्यक्तिगत तौर पर या फिर पारिवारिक तौर पर, बाल ठाकरे सबका निवारण करते चले गए. एक समय ऐसा आया कि महाराष्ट्र का एक विशाल जनसमूह उनका पक्षधर हो गया और लोग उन्हें बाला साहेब ठाकरे के नाम से संबोधिक करने लगे. बाल ठाकरे लोगों के लिए सरकार और प्रशासन दोनों से लड़ जाते थे और लोगों को उनमें अपना तारणहार दिखने लगा. बाला साहेब ने संगठन को मज़बूत करने और महाराष्ट्र की खुशहाली के लिए दूसरे दलों से सहयोग माँगा परंतु मुंबई बम धमाकों ने ठाकरे के विचारों का रुख थोड़ा बदल दिया और वह हिंदु समुदाय के समर्थक हो गए. बाला साहेब ठाकरे ने हिंदू समुदाय के लिए महाराष्ट्र में कईं काम किए जिसके उपरान्त उन्हें 'हिंदू हृदय सम्राट' की उपाधी मिली.

राजनितिक दल - 'शिवसेना'

बाला साहेब ठाकरे यह अच्छी तरह जान गए थे कि अगर परिवर्तन लाना है तो शक्ति का पास होना आवश्यक है और इसीलिए उन्होनें 1966 में छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर अपनी सेना बनाई जिसे 'शिवसेना' नाम दिया गया और 'शिवसेना' ने नगर निगम चुनाव से शुरुआत करते हुए महाराष्ट्र की रजानीति में कदम रखा और एक दिन ऐसा भी आया जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर 'शिवसेना' के प्रतिनिधि बैठे.

English Summary: Bala Saheb Thakrey story Published on: 29 January 2019, 02:33 IST

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