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भारत में भैंस एक पसंदीदा दुधारू पशु

भैंस की संख्या व दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से हमारे देश का प्रथम स्थान है. प्रकृति ने मानवता को विभिन्न प्रकार के पौधों और प्रणियों से संजोया है. इतिहास गवाह है कि भारत में संस्कृति के विकास के साथ-साथ खेती-बाड़ी और व्यापार का विकास हुआ है. भारत के ग्रामीण आंचल में 65 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि आधारित कार्यों में लिप्त होते है. इसी कड़ी में खेती-बाड़ी के कार्यों के लिए जंगली पशुओं की उपयोगिता के अनुसार उनको पालतू बनाने का कार्य शुरू किया है. देश में पशुधन, कृषि उत्पादन प्रणाली का एक अनिवार्य घटक होता है.

विवेक कुमार राय
विवेक कुमार राय
Buffalo rearing information
Buffalo Rearing

भैंस की संख्या व दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से हमारे देश का प्रथम स्थान है. प्रकृति ने मानवता को विभिन्न प्रकार के पौधों और प्रणियों से संजोया है. इतिहास गवाह है कि भारत में संस्कृति के विकास के साथ-साथ खेती-बाड़ी और व्यापार का विकास हुआ है. भारत के ग्रामीण आंचल में 65 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि आधारित कार्यों में लिप्त होते है. इसी कड़ी में खेती-बाड़ी के कार्यों के लिए जंगली पशुओं की उपयोगिता के अनुसार उनको पालतू बनाने का कार्य शुरू किया है.

देश में पशुधन, कृषि उत्पादन प्रणाली का एक अनिवार्य घटक होता है. भारत का पशुधन दुनिया में सबसे अधिक है. पशुधन भारत के लिए विदेशी मुद्रा, बेरोजगारों के लिए रोजगार का साधन, मानव के लिए खाद्य सुरक्षा व कृषि सकल घरेलू उत्पादन में महत्वपूर्ण घटक है. पशुधन प्रजातियों में भैंस का अपना महत्व व स्थान है क्योंकि वह भारत के कुल दुग्ध उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत तथा देश में मांस निर्यात व उत्पादन में एक बड़ा योगदान देती है. पिछले दशक में कृषि व्यापार संरचना के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि भारत के पारंपरिक कृषि निर्यात से हटकर मांस निर्यात ने नए आयाम स्थापित किए है.

भारत में भैंस पालन पारंपरिक रूप से तीन मुख्य उद्देश्यों के लिए जैसे दुग्ध, मांस व भारवाहक पशु के रूप में किया जाता है. शुरूआती दौर में खेती-बाड़ी के लिए बैल की उपयोगिता अधिक होने के कारण खेत की जुताई, सिंचाई के लिए कुंओं से पानी खिंचना, भारवाहक और खाद के लिए गोबर की जरूरतों ने गायपालन को कृषि आधारित व्यवस्था का एक अभिन्न अंग बना दिया है. गाय न केवल उपयोगिता व धार्मिक दृष्टि से एक सम्मानित प्राणी के रूप में पहचाना जाने लगी. परंतु विकास व मशीनीकरण ने यांत्रिकी को बढ़ावा दिया जिसका सीधा प्रभाव गाय की उपयोगिता पर पड़ा और अब गाय केवल दुग्ध उत्पादन के लिए ही पाली जाने लगी है. गाय में देशी और विदेशी का दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से वर्गीकरण हुआ है.

उत्पादकता वर्ग की उपयोगिता का आंकलन दर्शाता है कि 1971-72 से लेकर 2009-10 के बीच खेतों में ताकत के काम में बैंलों का उपयोग 53 फीसद से घटकर 9 फीसद से भी कम रह गया है. जब गाय के दुग्ध उत्पादन और बैलों की भारवाह क्षमता में उल्लेखनीय गिरावट हुई तो किसानों के लिए किसी भी अन्य पशु विशेष रूप से दुधारू पशु की जरूरत महसूस हुई. और मानव की इस जरूरत की पूर्ति के लिए भैंसे ने भारत में लगभग 16 प्रतिशत मान्यता प्राप्त और पंजीकृत जलीय या दलीय भैंस है. पंजीकरण के लिए कई अन्य भैंस प्रजातियां भी इंतजार कर रही है. अगर हम ये कहें की भैंस काला सोना के साथ-साथ दूध की फैक्ट्री या कारखाने का भी काम कर रही है जिसके योगदान स्वरूप हम आज विश्व में दुग्ध उत्पादन में 1998 से प्रथम स्थान बनाए हुए है. पशुगणना के आंकड़े दर्शाते है कि भैंस में वृद्धि दर तीन प्रतिशत सालाना के लगभग है किंतु ताजा आंकड़ों से ऐसा प्रतीत हुआ है कि पशुपालन में किसानों की अरूचि वल कठिन शरीरिक परिश्रम के कारण भैंस पालन में वृद्धि आंकी गई है. बाजार में आज मिलावटी व बनावटी दुग्ध की उपलब्धता के कारण किसान को उसके दुग्ध उत्पाद का उचित व लाभकारी मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है. मजबूरी और बेरोजगारी के कारण ग्रामीण युवाओं के लिए इस अवस्था में जब भी खेती एक लाभकारी व्यापार नहीं रहा तब पशुपालन विशेष रूप से भैंस पालन आशा की किरण का काम कर रहा है. भैस मांस उत्पाद निश्चित रूप से एक बड़ा कृषि उत्पाद निर्यात का रूप धारण कर रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में आधुनिक बुचड़खाने लागकर रोजगार संसाधन जुटाए जा सकते है.

भैंस और गाय का तुलनात्मक विश्लेषण दर्शाता है कि भैंस पालन सस्ता व आर्थिक रूप से लाभदायक है. भैंस का दुग्ध गाय के दुग्ध से महंगा व अधिक पौष्टिक है. जब विश्व गोजातीय आबादी पिछले चार दशकों से एक नाकारात्मक वृद्धि की तरफ अग्रसर है, भैंस में उसके विपरीत साकारात्मक वृद्धि पशुपालक की भैंस में रूचि को दर्शाती है. व्यापार की दृष्टि से भी भैंस ज्यादा कीमती व फायदेमंद है. 2017 के अंत में विश्व भैंस की आबादी 201 मिलियन हो गई थी जिनमें से 97 प्रतिशत एशिया में भी इससे प्रतीत होता है कि हम भैंस को अधिक पसंद करते है चाहे जो भी कारण रहे हो. अगर भारत की बात करें तो लगभग विश्व की भैंसे की 57 आबादी हमारे देश में है, भैंस में या गाय में नस्ल सुधार गुण आधारित है, अगर दुग्ध उत्पादकता वाले पशुओं को निकलना होता है जो भैंस में इसीलिए संभव है कि भैंस में वध के खिलाफ कोई सामाजिक वर्जना नहीं है जबकि गाय में धार्मिक कारणों से ऐसा संभव नहीं है. एक औसत मुर्रा भैंस 300 दिन में 2 हजार लीटर दुग्ध देती है, हालांकि रिकॉर्ड में 28 लीटर दुग्ध उत्पादन वाली भैंस भी आज उपलब्ध है. परंतु देशी नस्ल की गाय में उत्पादकता कम होने के कारण भैंस का दुग्ध लगभग गाय से दुगने दामों पर बिक रहा है. भैसे निम्न स्तर के चारे पर आसानी से निर्वहन कर रही है.

 

 

            भैंस

 

    गाय

 

क्लोरिन

       237 एक कप लगभग

    148

वसा

       17 ग्राम

    8 ग्राम

सोडियम

       127 मिलि ग्राम

    105 मिली ग्राम

कार्बोहाइट्रेड

       13 ग्राम

    12 ग्राम

शुगर

       13 ग्राम

    12 ग्राम

प्रोटीन

       9.2 ग्राम

    08 ग्राम

विटामिन ए

       9 प्रतिशत

    7 प्रतिशत

कैल्शियम

       41 प्रतिशत

    27 प्रतिशत

 

 

 

 

व्यावहारिक व तुलानत्मक दृष्टि से विश्लेषण भैंसे को ज्यादा भाव देता है. अतः दुग्ध उत्पादन व लाभ अर्जन के लिए भैंसे पशुपालकों की पसंदीदा पशु है.

English Summary: Buffalo rearing: Buffalo a favorite milch animal in India Published on: 14 March 2020, 02:17 IST

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