प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को बदल दिया है. इसका एक दूरगामी, विघटनकारी प्रभाव भी पड़ा है, जिसने परंपरा को समाप्त कर दिया है और इसने न केवल हम जो करते हैं उसे बदल दिया है, बल्कि उन्हें करने के तरीकों में भी बदलाव ला दिया है. आइए इस पर विचार करें कि दुनिया की सबसे बड़ी राइड-चलाने वाली कंपनी के पास अपनी खुद की एक भी कार नहीं है. दुनिया की सबसे बड़ी ‘होटल श्रृंखला’ का अपना एक भी होटल नहीं है. गूगल और एप्पल एक दिन स्वायत्तकार निर्माता बन कर दुनिया के सबसे बड़े वाहन निर्माताओं को टक्कर दे सकते हैं. भारतीय कृषि पर प्रौद्योगिकी का समान रूप से विघटनकारी और परिवर्तनकारी प्रभाव हो सकता है. ऐसा हो भी रहा है.
मैंने ऊपर जो उदाहरण दिए हैं, वे उन कंपनियों के हैं जिनके व्यवसाय मॉडल प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं. लेकिन खेती तकनीकी केंद्रित व्यपवसाय की तरह नहीं है. फिर भी, प्रौद्योगिकी को अपनाने से बिल्कुल नई क्रांति आ सकती है और अभूतपूर्व उत्पादकता तथा समृद्धि के युग में प्रवेश किया जा सकता है. आज जो स्थितियां हैं, भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि और संबंधित गतिविधियों पर निर्भर है. लेकिन देश के 80 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, उनके खेतों का आकार औसत रूप से दो हेक्टेयर से कम है.इस विखंडन के कारण, किसानों के पास उत्पादन या प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी का आधुनिकीकरण करने के लिए न तो साधन हैं, और न ही वे उच्च उपज वाली बीज और उर्वरकों के किस्मोंण का उपयोग करते हैं. यह खराब उत्पादकता और निराशा प्रदान करने वाली आय का एक दुष्चक्र है. इसके अलावा, परिवहन और भंडारण वितरण के अपर्याप्त बुनियादी ढांचे से संबंधित जटिलताएं भी हैं. यह सब मिलाकर संपूर्ण कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है और किसान की उपज के मूल्य को कम करता है.
प्रौद्योगिकी को अपनाकर इस चक्र को तोड़ा जा सकता है, जिससे भारत के कृषि क्षेत्र की क्षमता और देश के किसानों के लिए समृद्धि आ सकती है. कई मायनों में, यह पहले से ही हो रहा है. स्मार्टफोन की बढ़ती पैठ किसानों के लिए नए अवसर खोल रही है. मोबाइल फोन की इस सर्वव्यापी स्वीहकार्यता ने किसानों के लिए उपयोगी ऐप के विकास को भी संभव बनाया है, जो 24X7 डिजिटल सलाहकार प्लेटफार्म के तौर पर काम करते हैं. ये ऐप किसानों को मौसम डेटा, पूर्वानुमान, मंडी की कीमतों आदि जैसी आवश्यक वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करते हैं और साथ ही, उन्हें एक-दूसरे के साथ चर्चा करने और कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करने की सुविधा प्रदान करते हैं, और इस तरह एक मजबूत और विश्वसनीय पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं. ये प्लेटफॉर्म किसानों को अपेक्षित ज्ञान उपलब्धन कराते हैं, जिससे किसानों को बेहतर कीमतों के साथ-साथ उन्हेंत अपने खेतों की देखभाल करने और अधिक कुशलता से उत्पादन करने में मदद मिलती है.
एक अन्य प्रौद्योगिकी केंद्रित पहल ट्रैक्टर और कृषि उपकरणों को किराये पर उपलब्धै कराना भी है जिसे पहले से ही किसान समुदाय के बीच काफी पसंद किया जा रहा है. जब भी किसान को ट्रैक्टर/खेत की आवश्यकता होती है, तो वह इन्हें खरीदने में अपनी कीमती पूंजी फंसाने के बजाय, इस सेवा के माध्यम से किराए पर ले सकता है. यह धीरे-धीरे, लेकिन कृषि यंत्रीकरण में लगातार योगदान दे रहा है जो अंततः उत्पादन स्तर और किसान की समग्र आय में वृद्धि करेगा. कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए जिस तरह से प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है, उसके ये केवल दो उदाहरण हैं. लेकिन यह एक शुरुआत भर है, तो यह केवल ऊपरी लाभ को दर्शाता है. उदाहरण के लिए, एक ऐसी दुनिया की कल्पिना करें, जहां ड्रोन डेटा इकट्ठा करने के लिए खेतों में उड़ान भरते हैं, उपग्रह होने वाली खेती के लिए भूमि का रकबा मापते हैं, ‘स्मार्ट’ कृषि उपकरण मौसम, मिट्टी की स्थिति और किसी खास फसल के लिए पानी की आवश्यकता का आकलन करते हैं.
इससे दक्षता के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण शुद्धता महत्व पूर्ण हो जाएगी, जिससे लागत में कमी लाते हुए उत्पादन को अधिकतम करना संभव होगा. मोबाइल-आधारित एप्लिकेशन नौकरशाही की चंगुल से बचायेंगे, बिचौलियों को बाहर करेंगे और आपूर्ति श्रृंखला को छोटा कर देंगे, और पूरे सिस्टम में लगने वाली बेकार जाने वाली लागत पर रोक लगायेंगे. किसान को उसकी उपज का उचित और पूर्ण मूल्य मिलेगा, और उपभोक्ता के लिए कीमतों में गिरावट आयेगी.
हम इस बदलाव को फार्मिंग 3.0 कहते हैं और यह पहले से ही जारी है. इस नए रोमांचक चरण में, भारत सक्रिय रूप से नवाचारों वाली अभिनव खेती की ओर बढ़ रहा है. बीच में आने वाली रुकावटों को दरकिनार करते हुए, सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र भी किसानों और ग्राहकों की सेवा करने के लिए इस बदलाव का लाभ उठा रहे हैं. हम बहुत से युवा उद्यमियों को स्टार्ट-अप और बिल्कुेल नए विचारों के साथ आते देख रहे हैं, जो कार्यसंचालन के पारंपरिक तरीके को चुनौती दे रहे हैं.
यह चरण सभी नवाचारों, डिजिटल व्यवधान और गुणवत्तापूर्ण सटीक कृषि से जुड़ा है जो ‘लोगों’,‘प्रक्रिया’ और ‘प्रौद्योगिकी’ की वर्तमान चुनौतियों से उबरने में इस क्षेत्र की मदद करेगा. मेरा दृढ़ मानना है कि प्रौद्योगिकी से प्रेरित समाधान किसान की आय को दोगुना करने का सपना साकार करने में महत्वपूर्ण कारक बनने जा रहे हैं, जिसका उद्देश्य ऋण, इनपुट, सलाहकार सेवाओं या यहां तक कि, बाजार लिंकेज के मामले में भी अनौपचारिक और असंगठित एजेंसियों पर किसानों की निर्भरता को कम करना है.
स्वतंत्रता के तुरंत बाद शुरू हुई और साठ के दशक के मध्य तक चली, फार्मिंग 1.0, की पहचान व्यापक भूमि सुधारों की वजह से हुई थी. 1960 के दशक में शुरू हुए दूसरे चरण, यानी फार्मिंग 2.0 का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर और 'खाद्य के मामले में सुरक्षित' बनाना था.जिस तरह खेती 2.0 ने हमें बड़े ट्रैक्टर, बीज की कई किस्में और बेहतर सिंचाई व्यहवस्थाय दी, उसी तरह खाद्यान्न उत्पादन में आगे बढ़ने वाली अगली छलांग सघन रूप से की गई टिकाऊ खेती से संभव होगा, जिसमें बड़े पैमाने पर और अधिक दक्षता के साथ, कम लागत से अधिक खेती करना शामिल है. जिसका अर्थ है कि गुणवत्तापूर्ण स्पनष्ट तरीके से की गई खेती एक जरूरत बन जाएगी. और इस क्रांति को लाने में प्रौद्योगिकी एक महत्वपूर्ण रूपांतरकारी भूमिका निभाने जा रही है.
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