किसानों के लिए केंद्र औऱ राज्य सरकार ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं चलाई हैं. इनमें मृदा हेल्थ कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) भी शामिल है. हाल ही में सरकार ने इसके प्रभावों की एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें दावा किया गया है कि इस योजना ने देश के किसानों की आमदनी में लगभग 30 हजार रुपये प्रति एकड़ तक का इजाफ़ा किया है.
हालांकि इस रिपोर्ट को लेकर कृषि वैज्ञानिक, किसान संगठन और विशेषज्ञों ने कई सवाल उठाए हैं. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस योजना से खेती में कम लागत के साथ उत्पादन बढ़ा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि खेती में कम लागत और बढ़ते उत्पादन से किसानों की आमदनी में 30 हजार रुपये तक की बढ़ोत्तरी संभव नहीं हो सकती है. बता दें कि मृदा हेल्थ कार्ड योजना के तहत ग्राम स्तर पर मिनी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला (Soil Test Laboratory) खोली जाती हैं, जिसमें मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाते हैं. अब तक देश के लगभग 12 करोड़ किसानों को मृदा हेल्थ कार्ड (Soil health card) वितरित किए जा चुके हैं.
इस तरह तैयार हुई रिपोर्ट
नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल (National Productivity Council) ने रिपोर्ट तैयार की है, जिसको देश के लगभग 19 राज्यों के 76 जिलों के 170 मृदा हेल्थ टेस्टिंग लैब द्वारा तैयार किया गया है, साथ ही लगभग 1700 किसानों से सवाल जवाब भी किए गए हैं. बता दें कि यह रिपोर्ट एनपीसी ने फरवरी 2017 में सरकार के समक्ष पेश की थी. जिसके बाद कृषि मंत्रालय की तरफ से इसको साल 2020 में जारी किया है.
प्रति एकड़ इतनी बढ़ी आमदनी
एनपीसी रिपोर्ट की मानें, तो किसानों की आमदनी खाद की बचत और अच्छे उत्पादन से बढ़ी है. दलहनी फसलों में की बात करें, तो अरहर की खेती से प्रति एकड़ 25-30 हजार रुपये की आमदनी हुई है, जबकि सूरजमुखी की खेती में लगभग 25 हजार रुपये, मूंगफली की खेती में 10 हजार रुपये, कपास से 12 हजार रुपये की आमदनी होने के आंकड़े बताए गए हैं. इसके अलावा धान की खेती में 4500 रुपये और आलू में 3 हजार रुपये प्रति एकड़ की वृद्धि दिखाई गई है.
यूरिया की खपत में हुई कमी
किसानों की खेती में नाइट्रोजन वाली खाद यूरिया की खपत में काफी कमी देखने को मिली है. अनुमान है कि धान की खेती की लागत में नाइट्रोजन की बचत से लगभग 16-25 प्रतिशत की बचत हुई है. बता दें कि इससे प्रति एकड़ लगभग 20 किलो यूरिया की बचत हुई है, तो वहीं दलहनी फसलों को देखा जाए, तो इनकी खेती में लगभग 15 प्रतिशत कम खाद लगी है, जिससे लगभग 10 किलो यूरिया की बचत हुई है. इसके अलावा तिलहनी फसलों में लगभग 10-15 प्रतिशत और मूंगफली की खेती में लगभग 23 किलो यूरिया कम लगा है.
खाद के उचित उपयोग से उत्पादन बढ़ा
स्वायल हेल्थ कार्ड (Soil health card) के तहत गेहूं धान और ज्वार की खेती में खाद का उचित उपयोग हुआ, जिससे फसलों का उत्पादन लगभग 10-15 प्रतिशत बढ़ा है. यही वजह है कि दलहनी फसलों में 30 प्रतिशत, तिलहनी फसलों में 40 प्रतिशत की वृद्धि का आकलन किया गया है.
कृषि वैज्ञानिक और विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि अनुसंधान और विकास पर घटते निवेश एक चिंता का विषय है. जहां साल 2008-09 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.84 प्रतिशत खर्च होता था, वह अब घटकर 0.53 प्रतिशत हो गया है. अगर मूलभूत बुनियादी सुविधाओं को देखा जाए, तो एनपीसी द्वारा स्वायल हेल्थ कार्ड की रिपोर्ट को जल्दबाजी में तैयार किया गया है.
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