विद्वानों ने ठीक कहा है ''स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मन बसा करता है।'' जब शरीर स्वस्थ रहता है तो हम स्वस्थ्य योजना की कल्पना करते हैं तथा इसे कार्यरूप देते हैं किन्तु शरीर जब स्वस्थ नहीं है तो अर्जित भोग की वस्तुए भी धरी रह जाती है। जीवन जीने के लिये समुचित मात्रा में शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है। किन्तु स्वस्थ जीवन जीने के लिये, शुद्ध पेयजल तथा संतुलित आहार की जरुरत होती है। संतुलित आहार उसे कहा जाता है “नित्यं सर्वरसाभ्यासः स्वस्वाधिक्यामृतावृतै” जो आहार सभी रस युक्त हो और ऋतू के अनुसार लिया हुआ हो उसे संतुलित आहार कह सकते है. जिससे सेहत का संतुलन सदैव बना रहे।जो हमारे शरीर को भरपूर मात्रा मे वो पोषक तत्व प्रदान करे शरीर और बुद्धि के विकास के लिए जो आहार लाभदायक है वो आहार जो शरीर मे रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर शरीर को हजारो बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है. वो आहार जो शरीर को 24 घंटो तक ऊर्जा देता रहे यानि शरीर के काम करने की क्षमता को बढ़ाए.
भारत में लगभग 78 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, जहाँ आधुनिक सुविधाएँ शहरी क्षेत्र की तुलना में नगण्य है। यदि उपलब्ध हो भी जाएँ तो भी उनका भोग करने के लिए उतने पैसे नहीं है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या घटने के बजाए बढ़ रही है। ऐसे में कुपोषण, रक्त अल्पता (एनीमिया), अंधापन तथा आँख के अन्य रोग, घेंघा जैसे पोषाहार की कमी से जनित रोग बढ़ रहें हैं। काजु, अंगुर, अनार, संतरा, सेव, नाशपाति जैसे पोशाहार युक्त फल उनके पहुँच से बाहर है,किन्तु प्रकृति सदा ही मानव की सेवा में रही है। प्रकृति में भी आपरूपी पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ हैं जो पोषाहार की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकते हैं। आवश्यकता है जानकारी की, ज्ञान सशक्तिकरण की.
गरीबों का भोजन कहे जाने वाले खाद्य पदार्थों, में पाये जाने वाले पोषक तत्वों, को उजागर करने का यह एक छोटा सा प्रयास है। इस लेख में स्वास्थ्य के लिए पोषाहार जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहायड्रेट, उर्जा तथा विटामिनों, खनिज एवं लवण की आवश्यकता, मात्रा आदि का वर्णन है। इसे जानकार एवं सही रूप में उपयोग कर, पोषाहार की कमी द्वारा जनित रोग जैसे कुपोषण, रक्तअल्पता (एनीमिया), अंधापन, घेंघा आदि रोगों से बचने का प्रयास कर सकते हैं। इन रोगों के शिकार, अधिकतर गर्भवती स्त्रियाँ, दूध पिलाने वाली माताएँ, एक से तीन वर्ष के बच्चे तथा अन्य स्त्रियाँ अधिक होती हैं और वे बहुधा मृत्यु के कारण बनते हैं। अतः गृहस्वामिनियों को इसकी पूरी जानकारी देने की जरूरत है, जिससे कि वे इन्हें भोजन में शामिल कर सकें.
ध्यान रखने योग्य बातें:
भोजन में अलग-अलग घटकों को शामिल किए जाने चाहिए. फल और सब्जियों को भोजन का बड़ा हिस्सा या लगभग आधा हिस्सा बनाना फायदेमंद है.
साबुत अनाज जैसे गेंहू, जौ, बाजरा, ज्वार, चावल की मात्रा थाली में एक चौथाई होनी चाहिए. ये जितने कम प्रसंस्कृत होंगे उतना अच्छा होगा. ब्राउन राइस या वे चावल जिनसे स्टार्च (मांड) अलग नहीं किया गया हो, अधिक पोषक होते हैं. इसी तरह मैदे की बजाय अपेक्षाकृत मोटे आटे की रोटी खाई जानी चाहिए, अन्यथा ये भी शरीर में ग्लूकोज और इंसुलिन पर बुरा असर डालते हैं.
संतुलित भोजन की एक चौथाई मात्रा में प्रोटीन होना चाहिए. दालें, मछली, मुर्गा, अंडा, अखरोट और बाकी गिरियां अलग-अलग तरह के प्रोटीन पाने का आसान जरिया हैं. इसके लिए शाकाहारी लोगों को खासतौर पर कई तरह की दालें, बादाम और फलियां खानी चाहिए.
मांसाहार करने वालों को लाल मांस या बेकन, सॉसेज जैसे प्रोसेस्ड मीट खाने से बचना चाहिए.
भोजन में तेल यानी वसा की भी थोड़ी मात्रा होनी चाहिए लेकिन इसके लिए वैज्ञानिक जैतून, कनोला, सोयाबीन, सूरजमुखी, मूंगफली या सरसों जैसे शुद्ध प्राकृतिक तेलों का भरपूर इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. आंशिक हाइड्रोजनेटेड तेलों यानी वनस्पति घी में अस्वस्थ ट्रांसफैट होते हैं, इसलिए इनसे बचना चाहिए. इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी खाद्य पदार्थ में तेल की मात्रा कम या नहीं होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि वह हैल्दी फूड है.
शरीर में पानी की मात्रा बन रहे इसके लिए कई बार पानी, फलों का रस और संतुलित मात्रा में चाय-कॉफी पीना चाहिए. मीठे से बचना चाहिए क्योंकि ये कैलोरी ज्यादा और पोषण कम देते हैं. इसी तरह दूध या बाकी डेयरी प्रोडक्ट्स भी दिन में एक या दो बार ही खाए जाने चाहिए. इसके अलावा सक्रिय रहना, दौड़-भाग और व्यायाम करते रहना भी स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है.
लेखक: डॉ कमला महाजनी1 गुंजन सनाढ्य2 और नेहा गहलोत3
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