नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों की लड़ाई अब गंभीर हो गई है. विरोध प्रदर्शन की व्यापकता को देखते हुए सरकार ने 26 जनवरी से पहले सुरक्षा के इंतेजाम कड़े कर दिए हैं. हालांकि सरकार किसानों की ट्रैक्टर मार्च को कोर्ट आदेश को आधार बनाकर रोकना चाहती थी, लेकिन कोर्ट ने एक बार फिर सरकार को निराश करते हुए इस ट्रैक्टर मार्च पर हस्तक्षेप करने से मना कर दिया है. ऐसे में सरकार को अब सारी उम्मीद 20 जनवरी को होने वाली बैठक से है. सरकार की मुश्किल यहां कुछ ऐसे किसान नेताओं के कारण अधिक बढ़ गई है, जो खुद बीजेपी और संघ की विचारधारा का समर्थन करते हैं. उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के जाने-माने किसान नेता शिवकुमार शर्मा का नाम ही ले लीजिए.
संघ से रहा है खास जुड़ाव
शिवकुमार शर्मा को मध्य प्रदेश में किसान 'कक्का जी' के नाम से भी बुलाते हैं. अभी कुछ सालों पहले ही कक्का जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे. संघ में रहते हुए वो किसानों के कई मुद्दे उठाते रहे, जिसके बाद उन्हें शिवराज सरकार के खिलाफ बागी के रूप में देखा जाने लगा. कक्का जी का इस आंदोलन को सहयोग करना सरकार के लिए इसलिए भी परेशानी का कारण है, क्योंकि वो राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से भी जुड़े हुए हैं.
2010 में किसानों के लिए खड़े हुए
कक्का जी किसानों की लड़ाई बहुत लंबे समय से लड़ते आ रहे हैं, लेकिन उन्हें पहली बार देश में पहचान 2010 में मिला. उस समय 15 हजार किसानों को लेकर उन्होंने पूरे भोपाल जिले को घेर लिया था. यहां तक कि विधायकों के घर और मुख्यमंत्री निवास सहित सभी वीआइपी क्षेत्र भी उनके रेंज में आ गए थे. इस आंदोलन से पूरा पुलिस-प्रशासन हक्का-बक्का रह गया था. उस समय कई अखबारों ने यहां तक लिखा था कि शहर बंधक बन गया है या शहर पर कब्जा हो गया है.
वाजपेयी के करीबी थे
हालांकि कक्का जी का संबंध पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अच्छा समझा जाता है. जेपी आंदोलन में तो आपातकाल के दौरान वो कई बार जेल तक गए. शायद यही कारण है कि इस समय सरकार और विपक्ष दोनो ही कक्का जी को अपने-अपने पक्ष में देखना चाहती है.
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