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अतीस की खेती पर 75 प्रतिशत अनुदान, ऐसे उठाएं फायदा

औषधीय पौधों में अतीस को खास स्थान प्राप्त है. इसे संस्कृत में विषा या अतिविषा कहा जाता है तो मराठी में अतिविष के नाम से जाना जाता है. इसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषाओं जैसे गुजराती में अति बखनी कली आदि के नाम से जाना जाता है. इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे कफ, पित्त, अतिसार आदि में होता है. डॉक्टर्स भी कई तरह के विष और खांसी के उपचार में इसके सेवन की सलाह देते हैं.

सिप्पू कुमार
सिप्पू कुमार

औषधीय पौधों में अतीस को खास स्थान प्राप्त है. इसे संस्कृत में विषा या अतिविषा कहा जाता है तो मराठी में अतिविष के नाम से जाना जाता है. इसी तरह अन्य क्षेत्रीय भाषाओं जैसे गुजराती में अति बखनी कली आदि के नाम से जाना जाता है. इसका उपयोग कई तरह की बीमारियों जैसे कफ, पित्त, अतिसार आदि में होता है. डॉक्टर्स भी कई तरह के विष और  खांसी के उपचार में इसके सेवन की सलाह देते हैं. आज के संदर्भ में देखा जाए तो इस फसल की बाजार में भारी मांग है. शायद यही कारण है कि सरकरा इस पौधें की खेती पर 75 प्रतिशत अनुदान दे रही है. यह अनुदान एनएमपीबी द्वारा दिया जा रहा है. चलिए हम आपको आज अतीस की खेती के बारे में बताते हैं.

अतीस की होती है वार्षिक खेती

अतीस का पौधा वार्षिक खेती के लिए जाना जाता है, जबकि इसकी जड़ दिवर्षीय होती है. इसके तने सीधे होते हैं और जिन पर आमतौर पर कोई शाखा नहीं होती. पत्तियां में चिकनाहट होती है और वो डंठली रहित होते हैं. आम तौर पर इनके कंदों की लम्बाई 3 सेमी की होती है, जो आकार में शंकु की तरह दिखाई देते हैं.

जलवायु और मिट्टी

इसकी खेती के लिए समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊंचाई के क्षेत्र उपयुक्त माने गए हैं. जैविक और रेतिली मिट्टी में भी इसकी खेती आराम से की जा सकती है. इसे प्रचुर मात्रा में हवा, नमी एवं खुली धूप की जरूरत पड़ती है. बीज, कंद एवं तना इसकी रोपण सामाग्री के लिए जाने जाते हैं.

नर्सरी की तैयारी

इस पौधे को तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों को 0.05 सेमी गहराई और 2 सेमी की दूरी पर लगाएं. रोपण कार्य करने से पहले भूमि की जुताई कर खेतों को अच्छे से समतल करना जरूरी है. प्रत्यारोपण के लिए 10 से 15 दिन बाद पूर्व खाद को मिट्टी में मिलाने का कार्य करें.

सिंचाई

गर्मियों में सिंचाई क्रिया जल्दी प्रारंभ करनी चाहिए. जबकि शुष्क मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई का काम किया जा सकता है. अगर आप एलपाइन क्षेत्रों में इसकी खेती कर रहे हैं तो नेचुरल तौर से फूल सितंबर महीने तक आ जाते हैं. हालांकि फलों के आने का उचित समय नवम्बर माह ही है. इसके बारे में अन्य तरह की जानकारी के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. अनुदान के बारे में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए टेबल पर ध्यान दें.


 

अनुमानित लागत

देय सहायता

पौधशाला

 

 

पौध रोपण सामग्री का उत्पादन

 

 

क) सार्वजनिक क्षेत्र

 

 

1) आदर्श पौधशाला (4 हेक्टेयर )

 25 लाख रूपए

अधिकतम 25 लाख रूपए

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

अधिकतम 6.25 लाख रूपए

ख) निजी क्षेत्र (प्रारम्भ में प्रयोगिक आधार पर )

 

 

1) आदर्श पौधशाला  (4 हेक्टेयर)

25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 12.50 लाख रूपए तक सीमित                         

2) लघु पौधशाला  (1 हेक्टेयर )

6.25 लाख रूपए

लागत का 50 प्रतिशत परंतु 3.125 लाख रूपए तक सीमित

English Summary: 75 percent subsidy on Wolfs bane farming know more about it Published on: 16 April 2020, 10:21 IST

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