मन मैला, तन उजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर अत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार झूठों के घर पंडित बांचे, कथा सत्य भगवान की जय बोलो बेईमान की!
उपजायें तो क्या उपजायें कि खेत से खलिहान होती हुई फसल पहुँच सके घर के बण्डों तक मंडियों में पुरे दाम तुले अनाज के ढेर।
हिन्दी साहित्य जगत में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण रही व प्रमुख कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा 110 वी जंयती के अवसर पर आज देश उनको स्मरण कर रहा है.…
ख़ून सस्ता है मगर यूं न पिया जाये मुझे ज़हर जब फैले तो फ़ासिद न कहा जाये मुझे पेश है चाय जो चाहे पिये गर-ए-दिल-ए-सब्ज़ जो नहीं चाहता वह ज़हर पिला ज…
सोए हुए जज्बों को जगाना ही नहीं था ऐ दिल वो मोहब्बत का ज़माना ही नहीं था महके थे चराग़ और दहक उट्ठी थीं कलियाँ गो सब को ख़बर थी उसे आना ही नहीं था
रानी लक्ष्मीबाई उन चुनिंदा प्रथम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है जिन्होने अंग्रेजी हुकूमत के खात्मे कि नीव रखी. उनका साहस अद्वितीय था. लक्ष्मीबाई का…
धरती के अंचल से लेकर अंबर का अभिमान हूं अन्नदाता कहता संसार मुझे हां, मैं किसान हूं
मंदिर से न मस्ज़िद से न गीता, कुरान से क्यों अंजान हो धरा पर जीना सीखो किसान से
कितना कुछ है करने को पर ये "न" करने का सुरुर माफ़ी हुज़ूर !
हलवा है ! अपनी राजनीति बोले तो हलवा है यहां कोई किसी के ऊपर है तो कोई किसी का तलवा है हलवा है!
अभी इक शोर सा उठा है कहीं कोई ख़ामोश हो गया है कहीं है कुछ ऐसा कि जैसे ये सब कुछ इस से पहले भी हो चुका है कहीं जो यहाँ से कहीं न जाता था
राजनीति में हल्ला-गुल्ला,शोर हो गया भोर से रात्रि हुई,फिर भोर हो गया लेकिन नेताओं की नज़रों में अब किसान भी चोर हो गया
वोट देने वाले पागल लेने वाले चालाक हैं ये तो कोई नईं बात नहीं अरे ! सब मज़ाक है
समझ जाओगे किसान का दर्द, एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो किसी जमीन के टुकड़े में, कभी अनाज उगाकर तो देखो
एक कविता देश के लिए, मिट्टी के लिए ,वतन के लिए "क्यों न करें मिट्टी पर नाज़ !"
रंगों का त्यौहार है ये प्रेम का कारोबार है ढोल-नगाड़ों और गायन में सब गा..रा...रा जोगिरा सारा...रा....रा
सूरज की किरणों ने, सुबह को जगाया है देख फसल लहलहाती, किसान भी मुस्काया है जब से किसान ने अपनाया यह आचरण किसान का दोस्त बना कृषि जागरण
नेता हो अभिनेता हो या कोई बाबा टिका नहीं कोई टक्कर में बड़े-बड़े लटक गए हुस्न के चक्कर में
सितारों का साथ निभाने को चांद निकलता है रात का अंधियारा भगाने को सूरज निकलता है
मेहता जी के घर में उनकी बीवी और एक लड़का है. मेहता जी एक रिटार्यड अफसर हैं, पत्नी हाउस वाइफ हैं और लड़का प्राइवेट कंपनी में मैनेजर के पद पर नियुक्त है…
लफ्ज़ सर्द हो चले हैं पिघले तो कुछ कहूं रात अभी बाकी है सवेरा हो तो कुछ कहूं
अकेले में जब खुद को अकेला पाता हूं मैं तूझे चाहता हूं मैं नादानियां कौन याद रखता है ? भूल जाता हूं मैं तूझे चाहता हूं मैं
हवाएं चलने लगती है मौसम जवां होता है सौ-सौ लड्डू फूटते हैं ऐसा तो फिल्मों में होता है
गर किसी को चाहता है दिल वक्त-बेवक्त का न इंतज़ार कर किनारे खड़ी ये कश्ती दूर निकल जाएगी गर इश्क है तो इज़हार कर
याद आता नहीं है शहर आज़कल, घुल गया है हवा में ज़हर आज़कल! गांव की याद दिल को सताने लगी, मेरे ख्वाबों में मिट्टी का घर आज़कल!
दुनिया भर का रोना है कोरोना है, क्या जादू क्या टोना है कोरोना है! कोई दवाई मिले न जब तक दुनिया को, बस हाथों को धोना है कोरोना है..!
वर्तमान समय की यही पुकार! कार्बनिक खाद से उत्पादित हो आमजन का आहार!....
जोंक ••••••••••••••••• रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान ; तब रक्त चूसते हैं जोंक! चूहे फसल नहीं चरते फसल चरते हैं