1. Home
  2. कविता

उपजायें तो क्या उपजायें..?

उपजायें तो क्या उपजायें कि खेत से खलिहान होती हुई फसल पहुँच सके घर के बण्डों तक मंडियों में पुरे दाम तुले अनाज के ढेर।

KJ Staff
KJ Staff

उपजायें तो क्या उपजायें 

उपजायें तो क्या उपजायें

कि खेत से खलिहान होती हुई फसल

पहुँच सके घर के बण्डों तक

मंडियों में पुरे दाम तुले अनाज के ढेर। 

कि साहूकार की तिजोरी से निकालकर

घरवाली के हाथ थमा सके

कड़कड़ाट नोटों की गड्डियां।

की साल दर साल

कभी न लेना पड़े बैंक से नोड्यूज 

घंटो पंक्तिबद्ध होकर न करना पड़े इंतज़ार

सफ़ेद - काले  खाद के लिए 

उपजायें तो क्या उपजायें

खंड 2  

उपजायें तो क्या उपजायें

हर ओर पसरी है खरपतवार

रसायनो ने भस्म करदी उर्वरता

आत्मीयता मुक्त हो रहे है खेत 

धरती में गहरे जा पैठा है जल

कभी-कभार होती है बिजली के तारो में

झनझनाहट

धोरे में ही दम तोड़ रहा है चुल्लू भर पानी। 

उपजायें तो क्या उपजायें

बीघों से बिसवो में बंटते जा रहे है खेत

सुई की नोक भर ज़मीन के लिए

कुनबे रच रहे है कुरुक्षेत्र की साजिश।  

उपजायें तो क्या उपजायें 

उपजायें तो क्या उपजायें

यूँ ही भूख बो कर काटते रहें

खुदकुशियों की फसल 

या फिर

जिस दरांती से से काटते आये फसल

उसी दरांती से काट डाले

प्रलोभनों के फँदे

साहूकार-सफेदपोशों के गले। 

यूँ ही सिसकियाँ और रुदन बोकर

आंसुओं से सींचते रहे धरा। 

या फिर

इंकलाब की हुंकार से

धराशायी करदे चमचमाते महल

चटका दे संगमरमरी आँगन। 

पसीने से सींचकर उगा दे

रक्तबीज

निकल पड़े नया इतिहास गढ़ने ।  

English Summary: OM NAGAR Published on: 19 April 2018, 05:52 IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News