उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले Shivam Seeds Farm के मालिक रामकरन तिवारी ने हाल ही में कृषि जागरण के पत्रकार विवेक राय से ‘फार्मर दा ब्रांड’ कार्यक्रम के तहत बातचीत की. उन्होंने इस दौरान अपने कृषि व्यवसाय और खेती की नई तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया. रामकरन तिवारी ने बताया कि वह 2015 से हर साल अपने 30 एकड़ खेत में 3,500 से 4,000 क्विंटल आलू का उत्पादन कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि Shivam Seeds Farm आलू की दस से अधिक किस्मों का उत्पादन करता है, जिसमें कुफरी लिमा, कुफरी संगम, कुफरी बहार, कुफरी ख्याति, कुफरी सुख्याति, कुफरी नीलकंठ आदि शामिल हैं. उन्होंने इस दौरान विशेष रूप से उल्लेख किया कि उनके कृषि उत्पादन और उत्पादकता में सुधार करने में कैसे सरकार ने ICAR के नेतृत्व में मदद की.
रामकरन तिवारी ने बताया कि वे सीपीआरआई (केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान), शिमला में प्रशिक्षण के लिए गए, जिसकी सिफारिश उत्तर प्रदेश, कृषि विभाग ने की थी. वहां उन्होंने सीड प्लॉट टेक्निक सीखी, जिसे उन्होंने 2015 से व्यावहारिक रूप से लागू किया.
उन्होंने शुरू में एक छोटे टिशू कल्चर लैब का निर्माण किया और अब आईसीएआर के सुझाव पर आलू का उत्पादन करते हैं जो न केवल उत्पादन के लिहाज से अच्छे हैं, बल्कि उनकी गुणवत्ता ग्राहकों को भी संतुष्ट करती है.
रामकरन तिवारी ने बताया कि उन्हें आलू बेचने के लिए मंडी जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. वह सिर्फ सोशल मीडिया पर अपनी उपज की जानकारी दे देते हैं जिसके बाद ग्राहक खुद उनके खेतों से आलू खरीद कर ले जाते हैं. कीमत भी वाजिब मिल जाता है, भले ही उतार-चढ़ाव हो.
उन्होंने यह भी बताया कि पहले आलू पंजाब और हरियाणा से यूपी द्वारा आयात किया जा रहा था, लेकिन अब आलू का निर्यात यूपी द्वारा पंजाब और हरियाणा में किया जा रहा है. वह अगले कुछ वर्षों में अपनी उपज को विदेशों में निर्यात करने की उम्मीद कर रहे हैं. वह हर साल Shivam Seeds Farm में 20-25 लाख रुपए का निवेश करते हैं जिससे उन्हें लगभग 1 करोड़ रुपए का लाभ प्राप्त होता है.
इसके अलावा रामकरन तिवारी ने अन्य किसानों को अपने ब्रांड बनाने और अपने उत्पादों को बेचने का सुझाव दिया. उन्होंने बताया कि उनका बेटा एक बीटेक इंजीनियर है जो खेतों के प्रबंधन में उनका सहायता करता है. उन्होंने बताया कि उनका ब्रांड न केवल उनके स्वयं के परिवार बल्कि ब्रांड से जुड़े अन्य लोगों का भी समर्थन करता है. उन्होंने यह भी कहा कि शुरू में जब वे खेती करते थे तो उन्हें मौसम और सिंचाई की चिंता होती थी, लेकिन अब उनके पास सारे संसाधन उपलब्ध हैं.
कम वसा और ज्यादा कैलोरी से युक्त आलू में कई विटामिन्स मौजूद होते हैं जिस वजह से इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने के लिए किया जाता है. और इसलिए आलू का अन्य देशों में निर्यात किए जाने की ज्यादा संभावना है. आलू उन लोगों के लिए एकदम सही विकल्प है जो अनाज को पचा नहीं सकते.
किसी भी अन्य वैकल्पिक खाद्य फसल की तुलना में आलू से कम समय और कम खेती की जमीन पर अधिक उपज प्राप्त किया जा सकता है. भारत में आलू की खेती आज एक बहुत ही लाभदायक बिजनेस है. आलू की खेती आसान है और अच्छी ट्रेनिंग, सही बीज और पर्याप्त उपकरण के सहारे किसान आसानी से अपने लिए एक ब्रांड स्थापित कर सकते हैं.
‘कृषि जागरण’ का भी यही मकसद है कि देशभर के सभी किसान भाई रामकरन तिवारी जैसे सफल किसानों का अनुसरण करके एक सफल किसान बनें और खुद का ब्रांड स्थापित करें.
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