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आलू की बंपर पैदावार के लिए इन किस्मों की करें बुवाई, ये है बिल्कुल सही समय

आलू का सबसे ज्यादा उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. जब अन्य सब्जियों के भाव आसमान पर होते हैं तब लोग आमतौर पर आलू का उपयोग ही सबसे ज्यादा करते हैं. यही वजह है कि आलू की हमेशा बाज़ार में मांग होती है.

श्याम दांगी
Potato
Potato Crop

आलू का सबसे ज्यादा उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. जब अन्य सब्जियों के भाव आसमान पर होते हैं तब लोग आमतौर पर आलू का उपयोग ही सबसे ज्यादा करते हैं. यही वजह है कि आलू की हमेशा बाज़ार में मांग होती है. यदि सही समय पर इसकी बुवाई की जाए तो किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. 

आलू रबी की फसल मानी जाती है और सितम्बर-अक्टूबर में इसकी बुवाई करना एकदम सही समय होता है. हालांकि आलू की बुवाई के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए. केंद्रीय आलू अनुसंधान के वैज्ञानिकों का मानना है कि आलू की बुवाई के लिए इसके बीज का सही चयन क्षेत्र के हिसाब से करना चाहिए है. वहीं किसानों को आलू की रोग अवरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. इस संस्थान ने आलू की कुछ किस्मों का चयन भी किया है उसी के हिसाब से इसकी बुवाई करना चाहिए. बता दें कि देश के अलग अलग क्षेत्रों में आलू की अलग-अलग समय पर बुवाई होती है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार गुप्ता बता रहे हैं आलू की किस्मों के बारे में...

कुफरी अरूण (Kufri Arun)

आलू की यह किस्म भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है. इसकी पछेती फसल में झुलसा रोग सहने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक इसकी पैदावार ली जा सकती है.

कुफरी अशोक (Kufri Ashok)

यह किस्म भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए सही होती है. हालांकि इसकी पछेती फसल लेने पर झुलसा, सिस्ट निमेटोड और अन्य वायरस जनित बीमारियों के लिए अति संवेदनशील होती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है.

कुफरी चिप्सोना-2 (Kufri Chipsona-2)

इस किस्म से सर्दियों में अच्छी फसल ली जा सकती है क्योंकि इसमें पाला सहने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 से 350 क्विंटल फसल ली जा सकती है. इसकी पछेती फसल झुलसा रोग प्रतिरोधक होती है.

 कुफरी चिप्सोना-3 (Kufri Chipsona-3)

कुफरी चिप्सोना की यह किस्म भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है, जिसकी पछेती फसल झुलसा रोग प्रतिरोधक होती है. इसकी पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है.

कुफरी देवा (Kufri Deva)

ठंड में इस किस्म से अच्छी पैदावार ली जा सकती है क्योंकि इस पर पाला का प्रभाव नहीं पड़ता है. उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों से इसकी प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है.

कुफरी फ्राईसोना (Kufri Friesona)

यह किस्म फ्रेंच फ्राई बनाने के लिए उपयुक्त है. इस किस्म की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है. उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों से प्रति हेक्टेयर इसकी 300 से 350 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है. 

कुफरी गरिमा (Kufri Garima)

यह किस्म भी लंबे समय स्टोर करने के लिए जानी जाती है. उत्तर प्रदेष, बिहार और पष्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इसकी प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है.

कुफरी बादशाह (Kufri Badshah)

आलू की इस किस्म को भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया. इस किस्म की सबसे अच्छी बात यह है कि इसकी अगेती और पछेती फसल झुलसा रोग प्रतिरोधी होती है. पैदावार प्रतिहेक्टयर 300 से 350 क्विंटल तक ली जा सकती है.

कुफरी बहार (Kufri Bahaar)

यह किस्म भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए उचित है लेकिन इसकी किस्म की अगेती और पछेती फसल झुलसा समेत अन्य बीमारियों प्रति अति संवेदनशील होती है. प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है.

कुफरी चिप्सोना-1 (Kufri Chipsona-1)

आलू की यह किस्म चिप्स और फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए प्रसिद्ध है. उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में आलू की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 300 से 350 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है. इसकी पछेती फसल झुलसा समेत अन्य रोगों के प्रति संवेदनशील होती है.

कुफरी अंलकार (Kufri Alankar)

आलू की यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए सही मानी गई है. इसकी अगेती फसल झुलसा रोग के प्रति अति संवदेनशील होता है लेकिन पछेती फसल झुलसा रोग के लिए प्रतिरोधक. वहीं इस किस्म को अन्य वायरस जनित रोगों से भी बचाना आवश्यक होता है. पैदावार की बात कि जाए तो प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक ली जा सकती है.

कुफरी आनंद (Kufri Anand)

कुफरी अलंकार की तुलना में आलू की यह किस्म ज्यादा पैदावार देती है. इसे भी उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों की मिट्टी और जलवायु के हिसाब से विकसित किया गया है. इसकी पछेती फसल झुलसा रोग प्रतिरोधी होती है. सर्दियों में इसकी अच्छी पैदावार ली जा सकती है क्योंकि ये किस्म पाला रोग सहन करने की क्षमता रखती है. पैदावार की बात की जाए तो प्रति हेक्टेयर 350 से 400 क्विंटल तक ली जा सकती है.

अन्य किस्में

इसके अलावा आलू कि अन्य किस्मों कुफरी गौरव, कुफरी गिरधारी, कुफरी गिरिराज, कुफरी जवाहर, कुफरी जीवन, कुफरी ज्योति,  कुफरी कंचन, कुफरी खासीगारो प्रमुख हैं.

English Summary: potato cultivation new varieties of potato for production Published on: 19 September 2020, 04:09 PM IST

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