देवर घर जिले के किसान पंचानंद हांसदा उर्फ राम लकड़ा ने कहा है मशरूम की खेती से कम लागत में अधिक कमाई होती है। दो हजार रुपए की पूंजी से मशरूम की खेती करने वाले पंचानंद हांसदा आज ढाई लाख रुपए आय करने वाले एक सफल किसान हैं। पिछले छह- सात वर्षों से वह देवघर में आदिवासी बहुल क्षेत्र में मशरूम की खेती कर रहे हैं। श्री हांसदा ने रविवार को कृषि जागरण के फार्मर द ब्रांड कार्यक्रम में भाग लेते हुए फेसबुक लाइव में मशरुम की खेती पर अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि मशरुम की खेती कम लागत में किसानों को अच्छी खासी आय देने वाला धंधा है। उन्होंने 2014 में 200 हजार रुपए की लागत से मशरुम की खेती शुरू की थी। पहली बार में ही उन्हें इससे लाभ प्राप्त करने का अवसर दिखा। उन्होंने देवर से काफी दूर अपने एक करीबी मित्र से मशरुम की खेती के बारे में जानकारी हासिल की। उनका मित्र मशरुम की खेती करता था। उसने पहले कम पूंजी में ही खेती शुरू करने की सलाह दी। मशरुम की खेती करने के बारे में प्रारंभिक जानकारी भी उन्हें अपने किसान मित्र से मिली।
हांसदा ने कहा कि अधिक लाभ कमाने की संभावना को देखते हुए उन्होंने अपने जमीन के अधिकांश हिस्से पर मशरुम की खेती शुरू की। परिवार के सभी सदस्य मशरुम की खेती में जुट गए। शुरूआत में उन्होंने 15-20 किलों शमरुम लेकर खेती शुरू की थी। लाभ दिखने के बाद उन्होंने अपने कृषि जमीन के एक बड़े हिस्से को मशरुम फार्म के रूप में बदल दिया। आज उनके फार्म में व्यावसायिक रूप से मशुरम की खेती होती है और उपज क्विंटल की दर से बिक्री होती है।
उन्होंने कहा कि मशरुम की खेती परंपरागत कृषि से कुछ अलग है। व्यावसायिक रूप से इसकी खेती करने के लिए प्रशिक्षण लेने की जरूरत पड़ती है। उन्होंने 2017 में देवघर कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती पर प्रशिक्षण लिया। मशरूम के खेती में प्लास्टिक का थैला और गेंहू की भूसी का इस्तेमाल होता है। अधिक गेहूं की भूसी डालने से मशरुम की गुणवत्ता बढ़ जाती है। शुरूआत में जब उन्होंने मशरुम की खेती शुरू की थी तो उनके इलाके में इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था। एक बार अधिक उपज होने के बाद उन्होंने अपनी बस्ती के सभी लोगों को मशरुम बांटा और सब्जी के रुम में उसका इस्तेमाल करने के बारे में पूरी जानकारी दी। स्थानीय लोग भी अब मशरुम और उससे तैयार खाद्य पदार्थ चाव से खाते हैं। पूर देवघर जिले में उनकी मशरुम की उपज की मांग है। देवघर कृषि विज्ञान केंद्र से सरकारी अधिकारी अक्सर उनके मशरुम के फार्म में आते हैं। मशरुम की खेती में रुचि रखने वाले अन्य किसान भी उनके फार्म में आते रहते हैं। हांसदा ने कहा कि मशरुम की खेती करने के इच्छुक किसानों को इसके बारे में कुछ आवश्यक जानकारी प्राप्त करनी होगी। मशरुम की खेती में कीड़ों से खतरा बना रहता है। लेकिन आवश्यक प्रशिक्षण लेने के बाद कीड़ों को नष्ट करने की जानकारी भी किसानों को मिल जाती है। हांसदा ने कहा मशरुम की खेती से उन्हें लाभ होता रहा है। लेकिन पहली बार लॉकडाउन के कारण घाटा का भी मुंह देखना पड़ा है। लॉकडाउन के कारण वह अपनी उपज बाजारों तक नहीं पहुंचा सके। अधिकांश उपज सड़ गए। इस तरह उन्हें इस बार करीब एक-डेढ़ लाख रुपए का घाटा हुआ है। राज्य सरकार को मशरुम की खेती करने वाले किसानों के नुकसान की भरपाई करने के लिए आर्थिक मदद देनी चाहिए। कृषि जागरण के माध्यम से वह झारखंड के मुख्यमंत्री से किसानों के नुकसान की भरपाई करने के लिए आर्थिक मदद देने की अपील करते हैं.
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