केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने एसोचैम के राष्ट्रीय सम्मेलन कहा कि रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग चिंता का विषय है और पर्यावरण, सामाजिक-आर्थिक एवं उत्पादन के मोर्चों पर इसके व्यापक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सरकार का ध्यान दिया गया है।
उन्होंने कहा कि भारत परम्परागत रूप से विश्व में जैविक खेती करने वाला सबसे बड़ा देश है। भारत के अनेक हिस्सों में जैविक खेती पहले से ही परम्परागत ज्ञान के आधार पर की जा रही है। सरकार भारत को कृषि क्षेत्र में आधुनिकता के पथ पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है और वह नई प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना चाहती है। उत्पादन में सतत वृद्धि के लिए सरकार प्राथमिकता के आधार पर जैविक खेती को बढ़ावा देती रही है।
सिंह के मुताबिक प्रधानमंत्री का मिशन है कि ‘हरित क्रांति’ की तर्ज पर भारत में सफल ‘जैविक खेती क्रांति’ सुनिश्चित की जाए, ताकि कृषक समुदाय इससे लाभान्वित हो। उन्होंने कहा कि सरकार की विभिन्न योजनाओं के जरिए लगभग 23 लाख हैक्टेयर भूमि को जैविक खेती के लिए उपयुक्त बनाया गया है। इसी तरह सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना(पीकेवीवाई) शुरू की है जिसके तहत दो लाख हैक्टेयर भूमि को जैविक खेती के लिए उपयुक्त बनाया गया है और इस तरह से पांच लाख किसान लाभान्वित हुए है।
राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र का मुख्य उद्देश्य देश में जैविक खेती को बढ़ावा देना है। अन्य सरकारी संस्थान जैसे कि एपीडा और वाणिज्य मंत्रालय प्रमाणन प्रणाली में सुधार एवं नियंत्रण में मुख्य भूमिका निभाते हुए जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार ने ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए जैविक मूल्य श्रृंखला विकास’ की शुरुआत की है। मंत्रालय का उद्देश्य पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों में जैविक खेती को बढ़ावा देना है क्योंकि इन क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग का स्तर अत्यंत कम है।
इस दौरान सरकार का लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती के दायरे में 50,000 हेक्टेयर भूमि को लाना है जिनमें से 45,918 हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती के लिए उपयुक्त बना दिया गया है और 2429 किसान हित समूह गठित किए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 48949 किसान इस योजना से जुड़ गए हैं। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री के स्वप्न के अनुरूप भारत को एक ‘रसायन मुक्त जैविक देश’ बनने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए।
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