
श्वेता कपिला गोवा की देशी गाय नस्ल है, जो राज्य की उच्च बारिश और आर्द्र तटीय परिस्थितियों के लिए बिल्कुल अनुकूल है. इस नस्ल की खासियत है इसकी कम कद-काठी, सफेद रंग का चमकदार कोट और जलवायु चुनौतियों का सामना करने की अद्भुत क्षमता. साथ ही, यह बीमारी-प्रतिरोधक भी है. इस गाय की एक और खासियत है कि इसे बहुत कम चारे की आवश्यकता होती है, जिससे यह स्थानीय किसानों के लिए किफायती और उपयोगी साबित होती है.
पहले इस गाय को "गैर-वर्णित" श्रेणी में रखा गया था, लेकिन ICAR-CCARI (गोवा) की मेहनत से अब इसे आधिकारिक पहचान और पंजीकरण प्राप्त हुआ है.
पंजीकरण समारोह में सम्मानित हुई नस्ल
श्वेता कपिला के पंजीकरण का प्रमाण पत्र दिल्ली में नेशनल एग्रीकल्चरल साइंस कॉम्प्लेक्स में आयोजित समारोह के दौरान प्रदान किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. हिमांशु पाठक, सचिव (DARE) और महानिदेशक (ICAR) ने किया. इस मौके पर ICAR-केवीके (गोवा) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. उदहरवार संजयकुमार ने यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया. इस नस्ल को ICAR की ब्रीड रजिस्ट्रेशन कमेटी ने INDIA CATTLE_3500_SHWETAKAPILA_03048 के नाम से पंजीकृत किया है.
स्थानीय नाम और विशेषताएं
श्वेता कपिला को गोवा में "गांवठी" या "गांवठी धावी" के नाम से भी जाना जाता है. इस गाय का सफेद रंग का कोट इसकी पहचान है, जो नाक से लेकर पूंछ तक फैला होता है. इसमें हल्के भूरे रंग की पलकें और नाक के आस-पास हल्की झलक होती है. इसकी कद-काठी मध्यम होती है और सीधा चेहरा, छोटे और हल्के मुड़े हुए सींग इसके आकर्षक लक्षण हैं. इसका थन कटोरी के आकार का होता है, जिसमें बेलनाकार स्तन होते हैं, जो इसे दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त बनाते हैं.
दूध उत्पादन में योगदान
श्वेता कपिला प्रतिदिन औसतन 2.8 किलोग्राम दूध देती है और इसका कुल दुग्ध उत्पादन 250 से 650 किलोग्राम तक होता है. इसका दूध 5.21% वसा युक्त होता है, जो इसे डेयरी किसानों के लिए लाभकारी बनाता है.
"मिशन जीरो नॉन-डिस्क्रिप्ट" में शामिल
श्वेता कपिला का पंजीकरण केंद्र सरकार के “मिशन ज़ीरो नॉन-डिस्क्रिप्ट” के तहत हुआ है. यह मिशन देश की देशी पशु नस्लों को संरक्षित और प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है. इस नस्ल को राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन डेटाबेस में शामिल कर लिया गया है, जिससे इसे भविष्य में संरक्षित और बढ़ावा दिया जा सके.
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