जब खेती की बात की जाती है, तो सबसे पहले मन में ख्याल आता है कि जमीन खेती योग्य होनी चाहिए, एक अच्छा सा प्लॉट होना चाहिए, साथ ही सिंचाई की उचित व्यवस्था और अन्य सुविधाएं होनी चाहिए. मगर क्या आप जानते हैं कि पारंपरिक खेती की जगह घर के छोटे से बगीचे में या फिर मेन गेट के पास क्यारियां बनाकर भी खेती क जा सकती है. इसके साथ ही एक छोटे से गमले में भी खेती कर सकते हैं.
आजकल रूफटॉप गार्डनिंग (Rooftop Gardening) यानी छत पर बागवानी (Terrace Gardening Ideas) का चलन काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है. इस खेती को टेरेस गार्डनिंग भी कहा जाता है. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने घर की छत पर ही बागवानी की और गमलों में ही अंगूर उगा दिए. यह कहानी केरल के तिरुअनंतपुरम में रहने वाले रिटायर्ड बैंक मैनेजर के राजमोहन की है.
ऐसे की खेती की शुरुआत
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो राजमोहन को खेती में किसी तरह का अनुभव नहीं था, लेकिन कुछ दिनों में धैर्य और प्रैक्टिस के साथ फलों की खेती आसान हो गई. उन्होंने अपने घर की छत पर ग्रो बैग में अंगूर उगाए हैं. बता दें कि अंगूर की खेती केवल पहाड़ी क्षेत्रों में की जा सकती है. राजमोहन ने लगभग 6 साल पहले साल 2015 में 20 ग्रो बैग से टेरेस गार्डनिंग की शुरुआत की थी. मगर आज वह अपने 1,250 वर्ग फुट की छत पर 200 ग्रो बैग में फल और सब्जियां उगा रहे हैं.
शुरुआत में उगाई 2 से 4 फल और सब्जियां
राजमोहन ने शुरुआती दिनों में टमाटर, ककड़ी, कद्दू जैसी सब्जियों की खेती की. इससे उन्हें अच्छी उपज प्राप्त हुई. आज वह टेरेस गार्डन में अंगूर, कस्तूरी हल्दी, बुश पैपर, मूंगफली, बैंगन, पालक, चिचिंडा, धनिया, मिर्च, गोभी, फूलगोभी, करेला, अदरक, हल्दी, सेम, कुंदरू, बेर, एप्पल, कृष्णा फल, कागजी नींबू, पपीता, केला, शहतूत, स्ट्रॉबेरी, रतालू और मक्का की खेती कर रहे हैं. बता दें कि रूफटॉप गार्डन बनाना महंगा है, लेकिन एक बार इसमें मोटा पैसा लगता है, फिर आपको ताजा और जैविक फल और सब्जियां मिलती हैं.
छत पर बिछाई प्लास्टिक की चादरें
राजमोहन का कहना है कि उन्होंने प्लास्टिक की चादरें छत पर बिछा दी, फिर उसके ऊपर ग्रो बैग को रखने के लिए मेटल स्टैंड और ईंटों की व्यवस्था की. इसके साथ ही छत पर जलजमाव से बचने के लिए गमले और बोरे भी रखे. इसके बाद पूरी छत को एक शेड नेट से ढक दिया.
ऐसे की छत पर अंगूर की खेती?
वह बाजार से एक महीने पुराने अंगूर के दो छोटे पौधे लाए और उनके लिए ग्रो बैग तैयार किए. इसके बाद मिट्टी को 10 दिनों के लिए धूप में रख दिया, फिर उसमें चूने के पानी का छिड़काव किया. इसे 2 हफ्ते के लिए कपड़े से ढक कर छोड़ दिया. फिर उन्होंने गाय के गोबर, नारियल की भूसी और वर्मीकम्पोस्ट को बराबर भागों में मिट्टी में मिलाया. इसे ग्रो बैग के तीन-चौथाई हिस्से में भर दिया. अब इसमें नर्सरी से लाए गए अंगूर के दोनों पौधे लगा दिए. इसके बाद अंगूर की बेलें बढ़ गईं, तभी उन्होंने 2 स्वस्थ बेलों को रखकर बाकी बेलों की छंटाई कर दी. इसके 9 महीने के अंदर पौधे कटाई के लिए तैयार हो गए. इस तरह साल में 3 बार इन बेलों में फल लगते हैं.
सिंचाई और खाद पर दिया ध्यान
राजमोहन ने अंगूर की बेलों को मौसम के आधार पर पानी दिया. उनका कहना है कि रोजाना 1 से 3 बार पानी देने की जरूरत होती है. इसके साथ वह फसल को कीड़ों से बचाने के लिए बर्ड्स आई चिली और लहसुन या चावल के पानी से बनी जैविक खाद का प्रयोग करते हैं. इसके अलावा कीड़ों को खत्म करने के लिए नीम के तेल का स्प्रे करते हैं.
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