देश में किसान रबी फसलों की कटाई के बाद दलहनी फसलों की बुवाई करते हैं. इनकी खेती से मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ती है. दलहनी फसलों में कई प्रकार की दालों की खेती की जाती है. इनमें मूंग की खेती भी शामिल है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर किसान सही समय पर मूंग की खेती करें, तो इससे फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है. इसकी खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. खेत में फसल की सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. इसी कड़ी में कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दलहनी वैज्ञानिकों ने एक एडवाइज़री जारी की है. इस एडवाइज़री के मुताबिक ही किसानों को मूंग की खेती कर लेनी चाहिए.
एडवाइज़री के मुताबिक...
दलहन वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का समय आ चुका है. किसानों को मूंग की बुवाई 10 अप्रैल तक जरूर कर लेनी चाहिए. बता दें कि यूपी में ग्रीष्मकालीन में करीब 42 हजार हेक्टेयर में मूंग की खेती की जाती है. इसमें कानपुर मंडल का भी हिस्सा है.
सिंचाई की उचित व्यवस्था रखें
दलहनी फसलों के वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में सिंचाई की उचित व्यवस्था रखें. फसल की पहली सिंचाई बुवाई के करीब 20 दिन बाद कर दें. अगर तापमान बढ़ता है, तो किसान फसल की सिंचाई जरूरत के अनुसार कर दें.
इसके बाद किसान जरूरत पड़ने पर 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. बता दें कि गर्मियों में मूंग की खेती में कम से कम 3 से 4 बार सिंचाई करने की जरूरत पड़ती है. किसान ध्यान दें कि शाम के वक्त हवा न चलने पर ही फसल की सिंचाई करें.
फसल की तुड़ाई
गर्मियों में मूंग की फसल करीब 60 से 65 दिन में पक जाती है. जब फसल की कटाई या फलियों की तुड़ाई करनी हो, तो फसल की सिंचाई करीब 5 दिन पहले बंद कर दें. दलहन वैज्ञानिकों का मानना है कि मूंग की कटाई करने की तुलना में फलियों की तुड़ाई करना अधिक हितकारी होता है.
ऐसा इसलिए, क्योंकि जब फलियों की तुड़ाई के बाद फसल को खेत में ही रोटावेटर की मदद से पलटते हैं, तो वह खेत में खाद का काम करती है. इस तरह खेत की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है.
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