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ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन से कृषि अपशिष्टों और किसानों के अतिरिक्त आय का प्रबधंन

कृषि अपशिष्टों जिनमें लिग्निन, सेल्यूलोज और हेमीसेल्यूलोज उपलब्ध होते हैं वह ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है। ये उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ ऑयस्टर मशरूम के भोजन की उपलब्धता कराता है।

निशा थापा
ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन से कृषि अपशिष्ट और किसानों के अतिरिक्त आय का प्रबधंन
ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन से कृषि अपशिष्ट और किसानों के अतिरिक्त आय का प्रबधंन

फसलों के कटाई के बाद फसल अपशिष्टों का प्रबधंन किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण समस्या है। क्योंकि अपशिष्टों का उचित प्रबधंन न होने से किसानों को उसके प्रबधंन के लिए अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है और इसके प्रबधंन मे व्यय न कर पाने की स्थिती मे किसान उन अवशेषों को खेतों मे ही जला देते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा मृदा सूक्ष्मजीवों पर विपरित प्रभाव पड़ता है। फसल के अपशिष्टों का उचित प्रबधंन और किसानों के अतिरिक्त आय का एक उचित व सरल माध्यम ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन है क्योंकि इसका उत्पादन कृषि अपशिष्टों जैसे धान का पैरा, धान्य भूसा, कपास के अपशिष्ट, मक्के का तना, ज्वार का तना, गन्ने की खोई और दूसरे कृषि अपशिष्टों पर आसानी से किया जा सकता है। कृषि अपशिष्टों जिनमें लिग्निन, सेल्यूलोज और हेमीसेल्यूलोज उपलब्ध होते हैं वह ऑयस्टरमशरूम के उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जाता है। ये उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ ऑयस्टर मशरूम के भोजन की उपलब्धता कराता है। ऑयस्टर मशरूम, खेती के लिए उपयुक्त मशरूम है। जो आसानी से उगाई जाती है। इसकी खेती के लिए किये जाने वाले क्रियाओ में श्रम और समय बहुत कम लगता है। जिससे किसानों के द्वारा आसानी से संचालित की जा सकती है। इसके अलावा ऑयस्टर मशरूम मे उचित मात्रा मे प्रोटीन पायी जाती है जो हमारे आहार का अभिन्न अंग है।

ऑयस्टर मशरूम की प्रजातियां

भारत में विभिन्न मौसम व जलवायु के अनुरूप ऑयस्टर मशरूम की सबसे योग्य व बहुतायत रूप से उगाई जाने वाली प्रजातियां हैं. प्लूरोटस सेजोरकाजू, प्लूरोटस  फ्लोरिडा, प्लूरोटस आँस्ट्रेटस, प्लूरोटस सेपिडस, प्लूरोटस ड्रिंजी, प्लूरोटस कोलूबिनस, प्लूरोटस कोर्नुंकोपी, प्लूरोटस फ्लेबीलेटस, प्लूरोटस टयूवरेन्जिम, प्लूरोटस फाँसुलेट्स, प्लूरोटस ओपुन्टी, प्लूरोटस सिट्रिनोपिलियेटस, प्लूरोटस मेम्ब्रेनीसियास, प्लूरोटस प्लेटीपस

टेबलः ऑयस्टर मशरूम मे पाये जाने वाले पोषक तत्व की मात्रा निम्न हैं-

संख्या

पोषक तत्व

     मात्रा

1

पानी 

76.69 ग्राम

2

ऊर्जा 

28 के.डी.

3

प्रोटीन

2.85 ग्राम

4

वसा 

0.35 ग्राम

5

कार्बोहाइड्रेड

5.24 ग्राम

6

फाइबर

2.0 ग्राम

7

सुगर

0.95 ग्राम

व्यावसायिक उत्पादन-

माध्यम बनाना-

उपरोक्त विधियों में से किसी एक विधि का चयन किसान अपने उपलब्ध साधनों के माध्यम के आधार कर सकते हैं। इस प्रयोजन हेतु कृषि अपशिष्टों का 3-5 से.मी. टुकड़े करके उन्हे पानी में भिगाते हैं। जिससे वह पानी को अच्छी तरह सोख लें। इन टुकड़ों को रात भर पानी मे डूबाकर रखते हैं जिससे अपशिष्ट पानी से 70-75% संतृप्त हो जाए. यह ध्यान रहे कि अपशिष्ट को अच्छी तरह भिगोने के लिए बीच-बीच मे उसकी पलटाई करते रहें।

माध्यम उपचार की विधियां

  1. रासायनिक विधि

200 लीटर क्षमता वाले प्लास्टिक के ड्रम या सीमेंट की टंकी मे 100 लीटर पानी लेकर 125 मिली. लीटर फार्मेलिन व 7.5 ग्राम कारबेन्डाजिम मिलाकर घोल बनाते हैं। फिर उसमें 10 किलो ग्राम भूसे या बताए गए कृषि अपशिष्टों में से कोई एक रात भर लगभग 8 घंटे पानी मे डूबाकर रखते हैं। अगली सुबह भूसे को पानी से निकालकर पक्के फर्स पर बिछा देते हैं जिससे पानी निथर जाये। भूसे में नमी की मात्रा इतनी हो कि उसको दबाने से उसका लडडू बन जाए पर पानी न निकलें।

  1. वाष्प पाश्चरीकरण विधि

यह विधि उसी किसान के लिए उचित है जिसके पास पाश्चरीकरण की सुविधा उपलब्ध हों। भीगे हुए भूसे को ढेर बनाकर 75-80  सेल्सियस तापमान पर 2 घंटे के लिए रखा जाता है फिर 24 घंटे के लिए ठंडा करके बिजाई करते हैं।

  1. गर्म जल विधिरू

इस विधि मे माध्यम को 70-75 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 1 घंटे के लिए रखते हैं। फिर ठंडा करके बिजाई करते हैं।

  1. किण्वीकरण विधि

इस विधि मे पानी मे भीगोए गए भूसे  को 3-4 फीट ऊॅचा व 5 फीट चैड़ा ढेर बनाकर 2-3 दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। जिससे सुक्ष्मजीवों द्वारा किण्वीकरण के कारण ढेर का तापमान बढता है फिर उसे ठंडा करने के पश्चात ढेर की बिजाई की जाती है। रूपांतरित किण्वीकरण विधि मे धान व गेहूं के भूसे में 0.5-1.0% की दर से चूना, 1.0%  मुर्गी या घोड़े की खाद 10% की दर से नाइट्रोजन खाद की जगह मिलाई जाती है। इन सभी को मिलाकर उन्हें गिला किया जाता है और 70-90 से.मी. ऊंचा ढेर बनाकर दो दिन के लिए रखते हैं। फिर ढेर की पलटाई करके 1.0%  सुपर फास्फेट व 0.5% की दर से चूना मिलाते हैं। फिर ढेर की बिजाई ठंडां होने के पश्चात करते हैं।

स्पानिंग

खाद मे स्पान मिलाने की प्रक्रिया स्पानिंग कहलाता है। इसकी क्रिया विधि मशरूम को उगाए जाने की विधि पर निर्भर करता है। स्पान ताजा तैयार (लगभग 20-30 दिन पुराना) किया गया होना चाहिए जो उपज के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। स्पान की मात्रा गीले भार मे @ 2-3% माध्यम मे मिलाने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। 300 ग्राम स्पान की मात्रा 2.8-3 किलोग्राम सूखे या 10-12 किलोग्राम गीले माध्यम मे मिलाए जाने के लिए पर्याप्त माना जाता है। माध्यम की भराई के लिए 125-150 धुंध मोटाई और 60x45 से.मी. आकार के पॉलिथीन की थैली का प्रयोग किया जाता है।

स्पानिंग की विधियां

  1. सम्पूर्ण बीजाईः इस विधि में माध्यम को पॉलीथीन मे डालने से पहले उचित मात्रा मे मशरूम के बीज को मिलाया जाता है।

  2. परतदार बीजाईः इस विधि में माध्यम को पॉलीथीन में एक परत बनाते हैं फिर उसकी बीजाई की जाती है। इसके उपरांत माध्यम की दूसरी परत डालते हैं और उसकी बीजाई करते हैं। इस विधि मे 3-4 परतों में माध्यम की बीजाई की जाती है।

  3. स्पॉट बीजाईः इस विधि में माध्यम को पॉलीथीन की क्षमता अनुसार भराई करते हैं। फिर कतार में कुछ दूरी पर हाथ से 2.5-5 से.मी. गहरा गड्रढा बनाते हैं। फिर लगभग 5 ग्राम मशरूम के बीज को सुराखों में डालकर खाद के उपयोग से ढक देते हैं।

संपूर्ण बीजाई और किनारे पर बीजाई की अपेक्षा परतदार बीजाई मे अधिक पैदावार मिलती है। स्पॉट बीजाई का उपयोग खाद स्पान से बीजाई करते समय किया जाता है। स्पान तैयार किये गये माध्यम के 3.15% क्रियाधार के सूखे भार के अनुपात से मिला देते हैं। लेकिन उपयुक्त मिश्रण मे 10 का अनुपात सबसे अच्छा पाया गया है तथा यह भी देखा गया है कि निवेशद्रव्य की मात्रा बढ़ाने से पैदावार भी अधिक मिलती है।

सप्लीमेन्टेशनः

  1. ऑयस्टर मशरूम की उपज को बढ़ाने के लिए उसमें कई प्रकार की सप्लीमेन्टेशन पदार्थ को बीजाई के पहले माध्यम में मिलाया जाता है। प्लूरोटस सेजोरकाजू और प्लूरोटस फ्लेबीलेटस के लिए निर्जीवीकृत मुर्गी की खाद उपयोग मे लायी जाती है। जई का आटा और अरहर के आटे का भी प्रयोग उपज की बढवार हेतु किया जाता है।

  2. माध्यम की शैया पर (10 ग्राम प्रति किलो माध्यम) स्टॉर्च, कपास की खली, बीवर दाने, गेहूं का चोकर, मुर्गी की बीट का खाद व लकड़ी का बुरादा का उपयोग 14% की स्तर पर धान की पैरा, धान की भूसी मे गेहूं का चोकर, कपास की खली और सोयाबीन का आटा, धान की भूसी (4%), बीवर दाने और गेहूं का चोकर का उचित उपयोग करने से पैदावार में वृध्दि होती है।

फसल उत्पादन

  1. बीजाई के बाद माध्यम के थैलियों को उत्पादन कक्ष मे अंधेरे में 10-15 दिन के लिए रखते हैं। कवक के जाल के फैलाव से थैलियां सफेद दिखने लगती हैं। बीज के फैलाव के समय कमरे का तापमान 25-280 सेल्सियस और आपेक्षित आर्द्रता 75-80% उचित पैदावार के लिए अनुकुल है। तापमान में बदलाव को कम करने के लिए वातायन कम होना चाहिए।

  2. कवकजाल के पूरी तरह फैल जाने के बाद पॉलीथीन की थैलियों को निकाल लिया जाता है जिससे फलनकाय का विकास उचित रूप से हो सके। ध्यान रहे थैलियों को 16-18 दिन के बाद ही खोलना चाहिए। फिर उसे बास के फ्रेम या लोहे के अलमारी मे रख देना चाहिए। उत्पादन कक्ष पूर्णतः वातायित होना चाहिए।

  3. फलनकाय के बनते समय तापमान 25-280 सेल्सियस, आर्द्रता 80-90% व हल्का वातायन होना चाहिए। नमी की उचित मात्रा बनाएं रखने के लिए माध्यम मे पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। अतिरिक्त पानी का छिड़काव न करें।

  4. पानी का छिड़काव हमेशा मशरूम के तोड़ने के पश्चात ही करना चाहिए। उत्पादन कक्ष का तापमान 300 सेल्सियस हो जाने पर समय समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए जिससे तापमान मे कमी आती है।

  5. पॉलीथीन को खोलने के 3-4 दिन बाद फलनकाय बनने लगते हैं व अगले 2-3 दिन मे परिपक्व हो जाते हैं। ऑयस्टर मशरूम के फलनकाय बनने के लिए प्रकाश की आवश्कता होती है इसलिए 4-5 घंटे प्रतिदिन प्रकाश देना चाहिए। यह फसलचक्र 50-70 दिन का होता है।

तापमान

  1. ऑयस्टर मशरूम के सभी स्पिसीज के कवकजाल का फैलाव 20-300 सेल्सियस के तापमान पर होता है। लेकिन सभी स्पिसीज के बढवार के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है। इन्हें तापमान की आवश्यकता के आधार पर दो समूहों में बांटा गया है। कम तापमान की आवश्यकता वाली स्पिसीज को 20-10-200 सेल्सियस की आवश्यकता बढवार के लिए होती है। अधिक तापमान की आवश्यकता वाली स्पिसीज को 16-300 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता बढवार के लिए होती है।

  2. फलनकाय बनने के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है। गर्मियों के दिनों में उगाए जाने वाली वाविज्यिक किस्मों में प्लूरोटस सेजोरकाजू, प्लूरोटस सेपिडस, प्लूरोटस सिट्रिनोपिलियेटस और प्लूरोटस फ्लेबीलेटस आते हैं। कम तापमान की आवश्यकता वाली वाविज्यिक किस्मों में प्लूरोटस फ्लोरिडा, प्लूरोटस आँस्ट्रेटस, प्लूरोटस इरिंजि और प्लूरोटस कोर्नुंकोपी है। अधिक तापमान ऑयस्टर मशरूम के उपज को प्रभावित करता है तथा इससे कैप का रंग भूरा हो जाता है।

आर्द्रता

प्लूरोटस की सभी प्रजातियों को फलने के लिए अधिक आर्द्रता (लगभग 75-80%) की आवश्यकता होती है। उत्पादन कक्ष मे आर्द्रता को बनाएं रखने के लिए समय समय पर पानी डालने की आवश्यकता होती है। तापमान अधिक होने की स्थिती में गर्म मौसम के समय 2-3 स्प्रे करने की सिफारिश की जाती है। पानी डालने की आवश्यकता का अनुमान उत्पादन कक्ष में माध्यम की सतह को छुकर लगाया जाता है।

यह भी पढें: ऑयस्टर (ढींगरी) मशरूम उत्पादन के लाभ तथा औषधीय महत्व

ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड

ऑयस्टर मशरूम के सभी स्पिसीज के कवकजाल के फैलाव के समय कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक साद्रंता (लगभग 2000 पी.पी.एम. या 2%) की आवश्यकता होती है। लेकिन फसल के दौरान इसकी साद्रंता (लगभग 600 पी.पी.एम. या 0.06%) से कम होने पर उपज अच्छी प्राप्त होती है। इस वजह से फलनकाय बनने के दौरान पर्याप्त मात्रा मे वेटिलेशन प्रदान किया जाना चाहिए। यदि ऑक्सीजन की साद्रंता अधिक है तो मशरूम में लम्बे समय तक प्यास और छोटे पाइलस होंगे तथा मशरूम तुरही की मुह की तरह दिखाई देता है।

तुड़ाई

जब मशरूम का बाहरी किनारा मुडने लगता है तब फलनकाय को तोड लिया जाता है। तुड़ाई के बाद फलनकाय मे उपस्थित पानी की मा़त्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है. ताजे मशरूम को पॉलीथीन की छिद्र युक्त थैलियों में फ्रिज मे 1.40 सेल्सियस पर 7-10 दिन के लिए संग्रहित करके रखा जा सकता है। ऑयस्टर मशरूम को धूप में सूखाकर आसानी से भविष्य में उपयोग में लाने के लिए संग्रहित करके रखा जा सकता है।

लेखक-

अमित, सुमित, आशालता, संतोष कुमार लहरे (वैज्ञानिक)
पी.एच.डी. (स्कॉलर)
पौध रोग विज्ञान विभाग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग)

English Summary: Management of agricultural waste and additional income to farmers from oyster mushroom production Published on: 16 January 2023, 03:07 PM IST

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