कड़ी मेहनत के बाद किसानों का मक्का बिकने के लिए तैयार है. लेकिन सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य पर यूपी प्रदेश में विवाद बढ़ गया है. हालात ये हैं कि किसानों ने सरकार को मक्का बेचने के स्थान पर डायरेक्ट बाज़ार का रूख कर लिया है. एटा में सरकार ने खरीद के लिए चार केंद्र खोले हैं, लेकिन पांच दिनों के बाद भी इन केंद्रों पर किसान मक्का बेचने नहीं पहुंच रहे हैं.
क्या है सरकार से नाराजगी
सरकारी केंद्रों पर किसान मक्का बेचने से किनारा कर रहे हैं, इसके कई कारण हैं. पहला तो ये कि मंडी के भाव के मुकाबले सरकारी भाव बहुत कम है और दूसरा ये कि सरकार द्वारा भुगतान में विलंब होता है.
कहां हुई है गड़बड़ी
विशेषज्ञों की माने तो किसानों की नाराजगी जायज है. शासन ने यहां 45 हजार क्विंटल का लक्ष्य तो रख दिया है, लेकिन ये ध्यान नहीं दिया कि बाज़ार में व्यापारी किस भाव में मक्का खरीदने को तैयार हैं. वहीं दूसरी तरफ किसानों को अपने मक्के का भुगतान जल्दी से जल्दी चाहिए, जबकि सरकारी प्रक्रिया ऐसी है कि कई-कई दिनों तक इन्हें भुगतान नहीं मिलता है.
बाजार और सरकारी भाव में कितना है अंतर
सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य 1760 रुपये है, जबकि मार्केट में 1700 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 2100 रुपये प्रति क्विंटल मक्के के भाव पहुंच गए हैं. इतना ही नहीं मार्केट में उन्हें नकद रुपये में भुगतान हो रहा है जो सुविधाजनक है.
क्या है किसानों का कहना
इस बारे में बात करने पर किसानों ने कहा कि सरकार ने जो भाव तय किये हैं वो बहुत कम है, जबकि मार्केट में अच्छा मुनाफा हो रहा है. इतना ही नहीं त्यौहारी मौसम पास होने के कारण इस समय पैसों की अधिक जरूर है लेकिन सरकारी केंद्रों पर नकद में भुगतान नहीं हो रहा है.
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