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इस किसान ने मालामाल होने के लिए उगाई ये फसलें, फिर हुआ ऐसा कि जानकार रह जाएंगे हैरान!

हरियाणा के किसान कुलबीर सिंह मधुमक्खी पालन के साथ बागवानी फसलों की खेती करते हैं जिससे इन्हें हर साल लाखों का मुनाफा होता है..

रुक्मणी चौरसिया
प्रगतिशील किसान कुलबीर सिंह (Progressive Farmer Kulbeer Singh)
प्रगतिशील किसान कुलबीर सिंह (Progressive Farmer Kulbeer Singh)

काबिल-ए-तारीफ होने के लिएवाकिफ़-ए-तकलीफ़ होना पड़ता है जिसका सीधा उदाहरण हरियाणा के प्रगतिशील किसान कुलबीर सिंह (Progressive Farmer Kulbeer Singh) हैं. यह कुरुक्षेत्र जिले के रहने वाले एक सफल कृषक हैं जो बागवानी फसलों को उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

खेती का अनुभव (Agriculture Knowledge)

सिंह कोई बड़े जमींदार नहीं बल्कि एक सीमांत किसान हैं और इन्होंने पिछले 5-6 साल यह सोचने और काम करने में बिताए हैं कि कैसे अपनी खेती को लाभदायक बनाया जाए. यह 25 वर्षों से खेती से जुड़े हुए हैं और खेती इनका पारिवारिक व्यवसाय है.

बीकीपिंग से शुरू हुई राह (Beekeeping Business)

इन्होंने 23 साल पहले मधुमक्खी पालन से खेती में अपना करियर शुरू किया था. इन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन कोई ऐसी चीज नहीं है जो सभी किसान कर सकते हैं. अनुभव के माध्यम से इन्होंने सीखा है कि इस व्यवसाय के लिए बागवानी का ज्ञान महत्वपूर्ण है ताकि आगे चलकर लाखों में मुनाफा मिल सके.

मधुमक्खी पालन (Beekeeping)
मधुमक्खी पालन (Beekeeping)

बता दें कि इनके 2 एकड़ बागवानी फार्म (Horticulture Farm) के बगल में मधुमक्खी पालन फार्म है. इस फार्म के माध्यम से शहद के जरिए यह अपनी साइड इनकम निकालते हैं और कहते हैं कि मधुमक्खियां अपने शहद के लिए विभिन्न प्रकार के पराग प्राप्त करती हैं जो फसलों और वातावरण दोनों के लिए अति आवश्यक होता है.

पुरस्कार लेते हुए कुलबीर सिंह (Awardee Kulbeer Singh)
पुरस्कार लेते हुए कुलबीर सिंह (Awardee Kulbeer Singh)

बागवानी फसलों को उगना जरूरी क्यों (Horticulture Crops)

इसके अतिरिक्त सिंह ने कहा कि गेहूंधान और मक्का जैसी फसलें साल में एक बार काटी जाती हैं और सभी किसान इन्हें एक ही समय बाजार में लाते हैंइसलिए कीमतें कम मिलती हैं. ऐसे में इनका मानना है कि भले ही किसान के पास 2 एकड़ जमीन क्यों ना हो लेकिन बागवानी फसलों से अच्छा जीवन यापन किया जा सकता है. कुलबीर सिंह को कृषि क्षेत्र में अपने जोश और जज़्बे को कर दिखाने के लिए पुरस्कार भी मिल चूका है.

मौसम के अनुसार उगाएं फसलें (Season Crops)

यह अपने खेत में भारतीय बेर (Plum), लौकी (Gourd), करेला (Bitter Gourd), फूलगोभी (Cauliflower), बैंगन (Brinjal), धनिया (Coriander), खीरा (Cucumber) उगाते हैं. सिंह आगे कहते हैं कि धनिया बाजार में 200 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचा जा सकता है लेकिन आपको अपनी फसल उगाने के लिए मौसम की योजना बनाने की बेहद जरूरत है. यदि आप इसमें सफल रहते हैं तो आपको अपनी मेहनत का भविष्य में अच्छा मूल्य (Better Income Crops for Farmers) मिल सकेगा.

लौकी (Gourd)
लौकी (Gourd)

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह अपने दो एकड़ खेत में फसल पैटर्न (Crop Pattern) के माध्यम से बागवानी फसलों को उगा रहे हैं. वर्तमान में इन्होंने करेलालौकी और बैंगन (Bitter gourd, Gourd and Eggplant) लगाया हुआ है और इन्हें काटने के बाद खीराफूलगोभी और धनिया उगाने की योजना बनाई है.

इनका सुझाव है कि धान (Paddy)गेहूं (Wheat) और मक्का (Maize) जैसी नियमित फसलों के किसानों को अपनी खेत की मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए बागवानी नकदी फसलें उगानी चाहिए जिससे आगे चलकर उन्हें अधिक पैदावार मिल सके.

किसानों की परेशानी (Problems)

सिंह ने कहा कि किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषक समुदायों और कृषि अर्थशास्त्र को समय के साथ बदलने की जरूरत है. एक अनुमान के मुताबिककिसानों और काम करने वाले पेशेवरों के साथ 2,000 निवासियों का एक गांवशहरी क्षेत्रों में करीब 10-15 करोड़ रुपये के सामान और सेवाओं को भेजता है. ऐसे में यदि गांव का कोई किसान किसी खुदरा विक्रेता को अपना माल 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचता है और फिर उसी गांव का निवासी जाकर उस खुदरा विक्रेता से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से वही उत्पाद खरीदता हैतो इस हिसाब से किसान को 40 रुपये का नुकसान होता है. इसके चलते ना केवल लोग बल्कि किसानों की नकदी भी ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में बह रही है.

ग्रामीण अर्थशास्त्र का महत्व (Rural Agriculture Economics)

सिंह का कहना है कि हमें ग्रामीण अर्थव्यवस्था बनाने की जरूरत है जिसमें शिक्षा (Education), डेयरी (Dairy) और बागवानी फसलें (Horticulture Crops) आती हैं. हम कपड़े जैसी वस्तुओं का निर्माण नहीं कर पाएंगेलेकिन हम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को 80% तक आत्मनिर्भर बना सकते हैं. साथ हीकिसानों से बिचौलियों के पास जाने वाला पैसा किसानों के पास जाना चाहिए और हमें इन करोड़ों रुपये के प्रवाह को रोकने की जरूरत है.

सिंह ने आगे कहा कि किसानों को एकल फसलों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कई फसलों पर ध्यान देना चाहिए. प्रमुख फसलों पर निर्भर रहने के बजाय आपको मिश्रित खेती (Intercropping Method of Farming) करनी चाहिए.

इन्होंने कहा कि कुरुक्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी वाली नदियां हैं और भारत के कई क्षेत्रों की तुलना में यहां की मिट्टी काफी उपजाऊ (Quality Soil) है. इसके अलावाइन्होंने सुझाव के तौर पर कहा कि खेत में अपनी रसोई के लिए खाद्य पदार्थ उगाना सबसे अच्छा होता है. इन्होंने कहा कि यह कम आय वाले परिवारों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होगा जो अपने और अपने परिवार का पेट भर सकें.

सिंह का कहना है कि गांव के अधिकांश परिवार खुदरा दुकानों से दूध खरीद रहे हैं और इन्होंने गाय-भैंस रखना बंद कर दिया है. इस प्रकार कोई जैविक खाद नहीं है और अकार्बनिक उर्वरकों (Inorganic Fertilizers ) का उपयोग किया जा रहा है. अपने जीवन को प्रगतिशील बनाने के लिए हमें इन सभी प्रक्रियाओं के बारे में ध्यान से सोचने की जरूरत है.

भविष्य का लक्ष्य (Future Plans)

इन्होंने आगे कहा कि यह दूध और इससे बनने वाले उत्पादों (Milk Products) जैसे पनीरघी और अन्य बनाने के बारे में योजना बना रहे हैं ताकि आय में और बढ़ोतरी हो सके.

English Summary: This farmer grew these crops to get rich, then it happened that the knowledgeable will be surprised Published on: 28 August 2022, 04:51 PM IST

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