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Success Story: ऑर्गेनिक तरीके से मिक्स्ड फार्मिंग कर पद्मश्री भारत भूषण त्यागी ने बदला खेती का पारंपरिक मॉडल, लाखों किसानों के लिए बने मिसाल

Success Story: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले भारत भूषण त्यागी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. जैविक तरीके से खेती करके उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. अपनी खेती के तरीकों से वे आज लाखों किसानों को प्रेरित कर रहे हैं.

बृजेश चौहान
सफल किसान भारत भूषण त्यागी .
सफल किसान भारत भूषण त्यागी .

Success Story: कहते हैं कि इंसान अगर कुछ ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं. कुछ ऐसे ही कहनी है उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के बिहटा के रहने वाले भारत भूषण त्यागी की, जिन्होंने खेती के पारंपरिक मॉडल को बदलकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है. भारत भूषण त्यागी ने जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए खेती में कई तरह की सफल प्रयोग किया है. जैविक खेती में सफलता हासिल करने की वजह से भारत भूषण त्यागी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है. वह 1987 से कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और तभी से खेती भी कर रहे हैं. वहीं, भारत भूषण त्यागी, दिल्ली विश्वविद्यालय से विज्ञान वर्ग में स्नातक हैं. भारत  भूषण त्यागी बताते हैं की भविष्य में उनका एक अच्छी नौकरी करने का इरादा था, लेकिन उनके पिताजी का मन था कि उनका बेटा घर की खेतीबाड़ी का काम ही संभाले, क्योंकि उनके पिता का मानना था कि आने वाले समय में खेतीबाड़ी का कारोबार ही सबसे सफल करोबार साबित होगा और आज वह सच भी साबित हो रही है.

पिता के कहने पर शुरू की थी खेती

भारत भूषण त्यागी ने बताया कि अपने पिताजी की बात का मान रख कर उन्होंने साल 1976 में अपनी रूचि खेती की ओर बढ़ाई और इस पर काम करना शुरू किया. खेती के दौरान उन्होंने पाया कि आधुनिक खेती का कार्य लागत आधारित होता है. जिसमें जुताई, बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशकों के बल पर ही खेती की जाती है. ये आम किसान के लिए काफी महंगी खेती भी है, क्योंकि किसानों को जुताई, खाद, बीज, दवाई के लिए बाजार पर निर्भर होना पड़ता है.

उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती में सबकुछ बाजार पर निर्भर करता है. इसके अलावा, किसान की उपज के दाम भी बाजार ही तय करता है. ऐसे में देखा जाए तो किसान खेती नहीं कर रहा है, बल्कि बाजार किसान से खेती करा रहा है. दूसरी तरफ, बाजार ही किसान का समान खरीदता है और उसकी प्रोसेसिंग करके उपभोक्ता से मुनाफा कमाता है. बाजार इस तरह से किसान और उपभोक्ता दोनों का शोषण करता है. त्यागी बताते हैं रासायनिक खेती के परिणामों और किसानों के शोषण के देखते हुए उन्होंने जैविक खेती का रास्ता अपनाया और किसानों को इसके प्रति प्रेरित किया.

इस सवाल ने भारत भूषण त्यागी को किया था बेचैन  

भारत भूषण त्यागी ने बताया कि रासायनिक खेती में बदलाव लाने के लिए उन्होंने 1998 में इस पर शोध शुरू किया और कई सालों तक शोध करने के बाद उन्होंने जैविक खेती की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि रासायनिक के बदले जैविक खेती को शुरू करने के पीछे विचार ये था कि जैविक खेती के जरिए फसलों की उपज बढ़े और इससे किसानों को अच्छी आमदनी हो और किसान खुशहाल रहे. लेकिन, खेती में लगातार बढ़ रहे घाटे ने उन्हें काफी बेचैन किया और उन्होंने सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद इसके विकल्प की खोज में काम शुरु किया.

त्यागी का मानना है कि बाजार के एकाधिकार से देश की कृषि इकोनॉमी बिगड़ गई है. उपज तो बढ़ी है, लेकिन किसानों की आमदनी नहीं बढ़ी है. हरित क्रांति के नाम पर खेती के जिन तरीकों को सरकारें आगे बढ़ाती रहीं. उनसे कई नुकसान हुए. इसके कारण भूमिगत जल स्तर कम हुआ है, जल प्रदूषण बढ़ा है, मिट्टी की उर्वरता और जैव विविधता घटी है. इन सभी समस्याओं को दूर करने के उपाय खोजने की कोशिश करते हुए भारत भूषण त्यागी धीरे-धीरे दूसरी विकल्पों की तलाश करने लगे.

आधुनिक लागत आधारित खेती के विकल्प की तलाश में भारत भूषण त्यागी ने मधुमक्खी पालन, कपड़ा बनाना, जल संरक्षण, बीज निर्माण, एग्रो प्रोडक्ट प्रोसेसिंग जैसे कई काम किए और अपने परिवार का खर्च चलाते रहे. खेती में उनको कुछ खास मुनाफा नहीं हो रहा था. भारत भूषण त्यागी बताते हैं कि खेती के लिए किसी भी प्रकार की लागत एवं अनेक प्रकार के तरीकों से ज्यादा जरूरी प्रकृति की उत्पादन व्यवस्था को समझना है. प्रकृति को समझकर ही हम खेती में टिकाऊ परिवर्तन कर सकते हैं. आज देश प्राकृतिक खेती की दिशा में बढ़ रहा है. इसलिए प्रकृति की व्यवस्था केंद्रित कृषि अनुसंधान, कृषि शिक्षा, कृषि नीति के साथ-साथ विज्ञान एवं तकनीक को अपनाए जाने की जरूरत है. आधुनिक खेती की समस्याओं और चुनौतियों की ठीक-ठीक पहचान करते हुए हमें सोच में बदलाव करने की जरूरत है. 

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SAMAK नियम ने बदली खेती की तस्वीर

इन सब के बाद भारत भूषण त्यागी ने खेत एक, फसल अनेक का नियम बनाया. जब भारत भूषण त्यागी ने इसको अपनाया, तो इससे उनकी जमीन की उर्वरकता सुधरी, जमीन में कार्बनिक तत्व बढ़े और सूक्ष्म जीव बढ़े, उपज बढ़ी और पानी, खाद में बचत हुई. सहफसली खेती से भारत भूषण त्यागी के खेतों में पानी का उपयोग आधा हो गया. इससे उनको लाभ हुआ. इस खेती का नाम उन्होंने सह-अस्तित्व मूलक आवर्तनशील कृषि पद्धति (SAMAK) रखा. खेती की SAMAK पद्धति में कृषि के प्रबंधन को ध्यान में रखकर उन्होंने प्रकृति के नियमों को अपनाया. भारत भूषण त्यागी फसल प्रणाली, उत्पादन का सतही घनत्व, नैसर्गिक संतुलन, दूरी का नियम, समय और ऋतु काल, श्रम नियोजन, बीजों की अनुवांशिक संरचना आदि को प्रबंधन की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना और कई प्रयोग किए. उन्होंने बताया कि वह आज भी 8 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं. जहां वे कई तरह की फसलों का उत्पादन करते हैं.

'सोच-समझ कर करने का काम है खेती'

इसके अलावा किसानों और खेती के विकास के लिए कई तरह-तरह के शोध करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि खेती करने नहीं, बल्कि सोच और समझ कर करने का काम है. अगर किसान सोच-समझ कर खेती करेगा, तो उसकी उपज भी बढ़ेगी और उसे उससे मुनाफा भी होगा. उन्होंने कहा कि किसानों को खेती करने का नियम समझना होगा. प्रकृति उन्हें प्राकृतिक तौर पर खाद के कई विकल्प देती है. ये किसानों का समझना होगा की उनके जमीन के लिए क्या अच्छा है. रासायनिक खेती जमीन की उर्वरता को नष्ट कर देती है, जबकि जैविक खेती जमीन को और उर्वरा बनाती है.

English Summary: Padmashree Bharat Bhushan Tyagi changed the traditional model of farming by doing mixed farming in organic way became an example for millions of farmers Published on: 18 December 2023, 01:01 PM IST

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