1. Home
  2. ख़बरें

कृषि कर्म में भारतवर्ष के महिला किसानों का योगदान

भारत की आत्मा गांवों में बसती है। भारत में 2019 के विवरण के अनुसार 89.54 करोड़ लोग यानी 65.53 प्रतिशत लोग गांव में बसते है। भारत में छः लाख चौसठ हजार गांवें हैं। कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अभी भी मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। जिसमें 82 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत हैं।

KJ Staff
Women farmers
Women farmers

भारत में 2020 के विवरण के अनुसार, कुल जनसंख्या का लिंग अनुपात प्रति 100 महिलाओं पर 108.18 पुरुष है। यानी, भारत में 71.71 करोड़ पुरुष और 66.29 करोड़ महिलाएं हैं। 51.96 प्रतिशत पुरुष जनसंख्या की तुलना में महिला जनसंख्या का प्रतिशत 48.04 प्रतिशत है। जबकि समग्र साक्षरता दर 64.8% है, पुरुष साक्षरता दर 75.3% है और महिलाओं के लिए 53.7% है, जो राष्ट्रीय स्तर पर लिंगों के बीच 21.6 प्रतिशत अंकों का अंतर दिखाती है।

भारत की आत्मा गांवों में बसती है। भारत में 2019 के विवरण के अनुसार 89.54 करोड़ लोग यानी 65.53 प्रतिशत लोग गांव में बसते है। भारत में छः लाख चौसठ हजार गांवें हैं। कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार अभी भी मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं। जिसमें 82 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत हैं।

कृषि कर्म में महिला किसानों का योगदान

पूरी दुनिया में कृषि क्षेत्र में ग्रामीण महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है। दुनियाभर में ग्रामीण महिलाओं का कृषि क्षेत्र में योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है। खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़ों के अनुसार कृषि क्षेत्र में कुल श्रम में ग्रामीण महिलाओं का योगदान 43 प्रतिशत है, वहीं भारत में यह आंकड़ा 38.9 प्रतिशत है।  ग्रामीण महिलाएँ चावल, मक्का जैसे अन्य मुख्य फसलों की ज्यादा उत्पादक रही हैं, जो ग्रामीण गरीब भोजन के रूप में 90 प्रतिशत तक सेवन करते हैं। ऐसे में यह अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पूरी दुनिया में महिलाएं ग्रामीण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास की मेरुदंड हैं। मुख्य रूप से यह माना जाता है कि महिलाओं का कार्य क्षेत्र पारिवारिक कार्यों तक ही केंद्रित है और उन्हें आर्थिक व सामाजिक उत्पादन कार्यों से विरत रहना चाहिए; पर ऐसी सोच कुंठित मानसिकता को दर्शाती है। इन सबके बाद भी, वे मुख्य फसलों की उत्पादक रही हैं और अपने परिवार के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह भी देखा गया है कि ग्रामीण महिलाएं अपनी घरेलू आय से 10 गुना हिस्सा खर्च करती आई हैं और यह आंकड़ा पुरुष के अनुपात में एक बड़ा हिस्सा रहा है।

तालिका 1: भारत और दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति

क्र.सं.

विशेष

  प्रतिशत

1.

विश्व के खाद्य उत्पादन में महिलाओं का योगदान

>50

2.

विश्व कृषि श्रम बल में कितने प्रतिशत महिलाएँ शामिल हैं

43

3.

भारत में कितने प्रतिशत कामकाजी महिलाएँ कृषि श्रम शक्ति में शामिल हैं

38.9

4.

भारत में महिलाएं खुद का व्यवसाय करती हैं या चलाती हैं

14

5.

भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान

17

6.

भारतीय महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाली कंपनियां जो अति लघु उद्योग वाली हैं

>90

7.

कितनी प्रतिशत भारतीय महिलाएँ अति लघु उद्योग चलाती हैं, जो स्वयं वित्तीय पोषित हैं

79

8.

महिलाएं अपने परिवार की भलाई के लिए अपने पुरुष समकक्ष की तुलना में अपनी कमाई से कितने गुना अधिक निवेश करती हैं

10 गुना

एक शोध के अनुसार, भारतीय हिमालय में बैल की एक जोड़ी 1064 घंटे, एक आदमी 1212 घंटे और एक महिला एक हेक्टेयर खेत पर एक साल में 3485 घंटे काम करती है, एक ऐसा आंकड़ा जो कृषि उत्पादन में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालता है। ज्ञात हो कि 1 वर्ष में 8760 घंटे होते हैं; यानी महिलाएं औसतन 9.55 घंटे प्रतिदिन काम करती हैं, जो साल का 39.78% है। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा लगभग 3 गुना ज्यादा काम करती हैं।

तालिका 2: हिमालय क्षेत्र में महिलाओं के काम करने के आंकड़े

क्र.सं.

विशेष

घंटे/ वर्ष

1.

बैल की एक जोड़ी एक हेक्टेयर खेत पर एक साल में

1064

2.

एक पुरुष एक हेक्टेयर खेत पर एक साल में

1212

3.

एक महिला एक हेक्टेयर खेत पर एक साल में

3485

4.

महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा लगभग

3 गुना

इस आंकड़े से कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को आंका जा सकता है और महिलाओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। इतना ही नहीं, कृषि कार्यों के साथ ही महिलाएं मछली पालन, कृषि वानिकी और पशुपालन में भी अपना योगदान दे रही हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् और डीआरडब्लूए की ओर से नौ राज्यों में किये गये एक शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक रही है। इतना ही नहीं, बागवानी में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और फसल कटाई के बाद के कार्यों में 51 फीसदी तक ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी है। इसके अलावा पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत और मछली उत्पादन में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक है।

सिर्फ इतना ही नहीं, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के आंकड़ों की मानें तो 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं का कुल श्रम की हिस्सेदारी 50 है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और केरल में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी है। वहीं, मिजोरम, असम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नागालैंड में यह संख्या 10 प्रतिशत है। शोध के अनुसार, पौध लगाना, खरपतवार हटाना और फसल कटाई के बाद ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी शामिल है।

बीज बुवाई से लेकर घरेलू खाद का खेत में पुन: उपयोग/पुनर्चक्रण तक महिलाओं का योगदान: बीज बुवाई, फसल की खेत में प्रबंधन, फसल कटाई, फसल कटाई के बाद रसोई से लेकर घरेलू कचरा प्रबंधन से फिर खेत में उस खाद की उपयोगिता में महिलाओं का अहम योगदान है। खाद तब बनती है जब खाद्य और पादप अपशिष्ट पदार्थ जैविक रूप से विघटित हो जाते हैं। तीन मुख्य प्रकार के कंपोस्टिंग तरीके हैं, एरोबिक (ऑक्सीजन के साथ), एनारोबिक (ऑक्सीजन के बिना) और वर्मीकम्पोस्ट (बैक्टीरिया के बजाय केंचुए का उपयोग करके)। वाणी मूर्ति दस साल से खाद बना रही है और स्वच्छ घर (कम से कम कचरा पैदा करने वाला घर) की पद्धति का अभ्यास कर रही है। वाणी मूर्ति एरोबिक प्रक्रिया की महिला विशेषज्ञ भी हैं; जिन्होंने खाद बनाने के शून्य-लागत पांच-चरण प्रक्रिया को इजाद किया है। 2009 में शुरू हुई एक छोटी लेकिन अथक प्रक्रिया ने वाणी मूर्ति और एक समान विचारधारा वाली टीम ने बेंगलुरु के कचरा प्रबंधन परिदृश्य पर भारी प्रभाव डाला है। वाणी मूर्ति के अनुसार खाद, खाना पकाने की कला की तरह है और पूरी तरह से व्यक्तिपरक है। कचरे की मात्रा, सूखी पत्तियों या कंटेनर के आकार के बारे में कोई कठोर और तेज़ नियम नहीं है। कंटेनरों को ढक कर रखें और बारिश के पानी को अंदर न जाने दें। उनकी प्रक्रिया में सभी संसाधन स्वतंत्र रूप से घर पर ही उपलब्ध हैं। उनकी प्रक्रिया पर्यावरण के 60 प्रतिशत कचरे को पर्यावरण को प्रदूषित करने से रोक रहे हैं। ”

तालिका 3: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा महिलाओं के काम करने के आंकड़े, 2017-18

क्र.सं.

विशेष

प्रतिशत

1.

प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी

75

2.

बागवानी में महिलाओं की भागीदारी

79

3.

फसल कटाई के बाद (पोस्ट हार्वेस्ट) महिलाओं की भागीदारी

51

4.

पशुपालन और मत्स्य पालन में काम

95

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) द्वारा नौ राज्यों में किए गए एक शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 प्रतिशत, बागवानी में 79 प्रतिशत, फसल कटाई के बाद (पोस्ट हार्वेस्ट) में 51 प्रतिशत है (तालिका 3)। पशुपालन और मत्स्य पालन 95 प्रतिशत।

कानपुर आधारित स्टार्टअप ‘फ़ूल’ में महिलाओं का योगदान: फ़ूल नामक स्टार्टअप में 73 महिलाएं पूर्णकालिक काम करती हैं। फ़ूल दुनिया का पहला लाभदायक और स्मारकीय 'मंदिर-कचरा' समस्या का समाधान है। फ़ूल दैनिक आधार पर उत्तर प्रदेश, भारत के मंदिरों से 8.4 टन पुष्प-अपशिष्ट एकत्र करते हैं। इन पवित्र फूलों को फ्लावरसाइक्लिंग तकनीक के माध्यम से चारकोल-फ्री धूप, जैविक वर्मीकम्पोस्ट और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री में दस्तकारी की जाती है। फ़ूल नामक स्टार्टअप के सभी उत्पादों को महिला फ्लावरसाइक्लर्स द्वारा हस्तनिर्मित किया जाता है, जो उन्हें पूर्वानुमानित और स्वस्थ आजीविका प्रदान करता है। फ़ूल नामक स्टार्टअप  “तेरा तुझको अर्पण” के सिद्धांतों पर काम करती है।

2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में महिलाओं की भूमिका का विशेष महत्व है। वर्तमान में महिलाओं को विभिन्न कृषि योजनाओं के तहत प्रशिक्षित किया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के तहत पिछले दो वर्षों में 38.78 लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। इसी तरह, केवीके (कृषि विज्ञान केंद्र) और कौशल प्रशिक्षण के माध्यम से क्रमशः 6.07 लाख और 7000 महिलाओं को लाभ हुआ है। वर्ष 2016-17 और 2017-18 के दौरान कुल 53.34 लाख महिलाओं को लाभ हुआ है।

महिला किसानों की बड़ी भूमिका को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी के साथ दिनांक 15-12-2016 को, यह निर्णय लिया गया है कि हर साल 15 अक्टूबर, 2017 से "महिला किसान दिवस" के रूप में मनाया जाएगा। सभी आईसीएआर संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र कार्यक्रम का आयोजन करके 2017 से "महिला किसान दिवस" को मनाते हैं। वाद-विवाद, निबंध और ड्राइंग प्रतियोगिता, कृषि में महिलाओं की भूमिका, महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर प्रदर्शनी, आदि पोषण और आय सृजन आदि। इस अवसर पर महिलाओं को सम्मानित भी किया जाएगा। वर्तमान सरकार महिला किसानों के स्वाभिमान के साथ आत्मनिर्भर बनाने का हर संभव प्रयास कर रही है। जैसे कि महिला किसान सम्मान निधी से लेकर “एक देश एक मंडी” तक, महिला किसानों के हित के लिए कई सारे उपाय किए जा रहे है। उस उपायों में अगर हम महिला किसानों को मुख्य धारा में जोड़ लेते है तो महिला किसानों कि समृद्धि और बढ़ेगी। कहा भी गया है, महिला किसान हो मालामाल, तो देश बनेगा खुशहाल।

डॉ सुधानंद प्रसाद लाल1 एवं डा0 राजीव कुमार श्रीवास्तव2

1सहायक प्रोफेसर सह वैज्ञानिक, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन,

डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125

2सहायक प्राध्यापक (सस्य), निदेशालय बीज एवं प्रक्षेत्र,

तिरहुत कृषि महाविद्यालय, ढोली-843121, मुजफ्‌फरपुर, बिहार

(डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर)

मोबाइल नं0 9006607772

English Summary: If women farmers are rich then the country will become happy, wonderful participation of women farmers in agriculture Published on: 18 April 2022, 05:57 PM IST

Like this article?

Hey! I am KJ Staff. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News