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कृषि बजट - दान नहीं दाम चाहिए

किसान आंदोलन से किसान में उपजे असंतोष और अब पांच राज्यों में हो रहे चुनावों को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की राशि में बढ़ोतरी होगी, लेकिन बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है.

KJ Staff
Agricultural Budget
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किसान आंदोलन से किसान में उपजे असंतोष और अब पांच राज्यों में हो रहे चुनावों को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की राशि में बढ़ोतरी होगी, लेकिन बजट में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है.

पीएम किसान योजना छोटे किसानों को बहुत लाभान्वित कर रही है, पीएम किसान सम्मान निधि के तहत 12 करोड़ रूपया किसानों को सलाना 6 हजार रुपए दिए जाते हैं, किसानों को उम्मीद थी कि इस बजट में यह रकम बढ़ कर9 हजार रुपया कर दी जाएगी.

आम बजट 2022 - 23 में कृषि क्षेत्र के लिए कूल आवंटन में केवल 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जब की फसल बीमा और किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य को सक्षम करने वाले आवंटन में भारी कमी की गई है. इतना ही नहीं, बजट में किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर भी पूरी तरह चुप्पी साध दी गई है, जबकि इस योजना की समय सीमा इसी वर्ष 2022 है.

इस साल के बजट का किसानों को विशेष रूप से इंतजार था, लेकिन 90 मीनट के अपने भाषण में बमुश्किल अढाई तीन मिनट मे कुछ इधर उधर की बातों कर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खेती किसानी का मामला निपटा दिया. बजट का राजनीतिक संदेश साफ था.3 किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने को यह सरकार किसानों से मिली सीख की तरह नहीं बल्कि अपमानजनक हार के रूप में देखती है और इस ऐतिहासिक आंदोलन से मिली हार का बदला किसान से लेने पर आमदा है.

किसान आंदोलन के केंद्र में रही एमएसपी सीधे किसानों के खाते में भेजने का ऐलान किया है. इस सत्र में 163 लाख किसानों से 1208 मीट्रिक टन गेहूं और धान खरीदा जाएगा बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा की एमएसपी के जरिए किसानों के खाते में 2.37 लाख करोड़ रुपए भेजे जाएंगे, लेकिन बजट में इस बात का कोई उल्लेख नहीं किया गया है की सभी किसानों की फसल एमएसपी पर खरीदी कैसी जाएगी फिलहाल हालात यह है कि देश में हरियाणा और पंजाब को छोड़कर देश के बाकी राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की हालत बहुत दयनीय है.

यह बजट तीन कारणों से विशेषता एक किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन के बाद यह पहला बजट था. इसलिए उम्मीद थी कि किसानों को इंसाफ मिलेगा, देश की अर्थव्यवस्था में अपने वाजिब हक मिलेगा. दो- कोविड महामारी में मंदी और lock-down के बावजूद अर्थव्यवस्था को कृषि क्षेत्र में बचाए रखा था इसलिए उम्मीद थी कि किसान को इसका इनाम मिलेगा. तीन- किसान की आय दोगुनी करने की 6 वर्षीय योजना इस साल पूरी हो रही थी इसलिए उम्मीद थी कि कम से कम इमानदारी से किसानों की आय का हिसाब मिलेगा देश में दलहन और तिलहन के लिए एमएसपी आधारित खरीद सुनिश्चित करने वाली पीएम- प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना और एम आईएसपीएस एस, यानी बाजार हस्तक्षेप योजना और मूल्य समर्थन योजना के आवंटन में भारी कमी की गई है.पीएम-आशा को सिर्फ एक करोड़ रूपया आवंटन किया गया जबकि वित्त वर्ष 2021-22 मे इस मद पर 400 करोड़ रूपया खर्च किए गए थे.

इसी तरह एमआईएस- पीएस एस को 15 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए जो कि वर्ष 2021-22 मे संशोधित अनुमान 3959.61 करोड था. इस तरह इसके आवंटन में 62% की कमी की गई है

यह कटौती ऐसे समय में हुई है जबकि किसान संगठनों की प्रमुख मांग है की फसलों की खरीद के लिए एमएसपी की गारंटी दी जाए. जिस पर सरकार ने इन संगठनों को भरोसा दिलाया कि एमएसपी सुनिश्चित करने के लिए समिति की गठन किया जाएगा और इसी आश्वासन के बाद किसान संगठनों ने 1 साल तक चला आंदोलन वापस लिया था. लेकिन इस बजट में ना तो इंसाफ था ना कोई इनाम ना ही लेसमात्र का भी ईमान.28 फरवरी 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बरेली में घोषणा की थी कि अगले 6 साल में किसानों की आय दुगनी हो जाएगी पिछले 6 साल से प्रधानमंत्री कृषि मंत्री एवं मंत्री दुगनी आय का राग अलाप रहे थे लेकिन जब जवाब देने का दिन आया तो वित्त मंत्री एकदम चुप्पी साध गई. बजट भाषण में एक शब्द भी इसके बारे में नहीं बोला.

सरकार की अपनी कमेटी के हिसाब से वर्ष 2016 में देश के किसान परिवार की औसत मासिक आय 8059 थी सरकारी कमेटी ने महंगाई का अनुमान लगाते हुए हिसाब किया कि वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लिए किसान परिवार की आय 21.146 रुपया प्रति माह हो जानी चाहिए लेकिन वर्ष 2019 तक किसान की आय बढ़कर मात्र 10.218 हुई थी उसके बाद के 3 साल से सरकार ने आंकड़े देने बंद कर दिए, किसी भी अनुमान से-12.000 तक नहीं पहुंची है.

किसानों को हर साल ₹12000 नगद देने वाली योजना पीएम किसान के आवंटन में वृद्धि की गई है. इस मद के तहत वर्ष 20021-22 का संशोधित अनुमान 67.500 करोड रुपए था जिसे बढ़ाकर 68.000 रुपया कर दिया गया है.

किसान को पिछले 2 साल में अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए किसानों को इनाम देना बनता था. किसानों ने बार-बार कहा है कि उसे दान नहीं दाम चाहिए. यहां भी वित्त मंत्री हाथ की सफाई दिखा गई. उन्होंने बड़ी शान से यह घोषणा की सरकार ने गेहूं और धान की रिकॉर्ड खरीद पर किसान के जेब में 2.37.000 करोड़ रूपया पहुंचाया है. आंकड़े चेक करने पर पता चला कि दरअसल इस साल की सरकारी खरीद पिछले साल से कम थी जब 2.48.000 करोड़ रुपया का धान, गेहूं खरीदा गया था. इस साल सरकारी खरीद की मात्रा 1.286 लाख टन से घटकर 1.208 लाख टन हो गई थी. खरीद का फायदा उठाने वाले किसानों की संख्या भी 1.97 करोड़ से घटकर 1.63 करोड़ हो गई है.

लेखक

रबीन्द्रनाथ चौबे

कृषि मीडिया बलिया उत्तर प्रदेश

English Summary: Donations are not required in the agricultural budget Published on: 21 February 2022, 11:22 AM IST

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