Mother's last decision : वक़्त की दहलीज़ पर बैठकर अच्छे वक़्त का इंतज़ार करना और अपने भाग्य को दोष देना कहीं ना कहीं इंसान को बहुत ही असहाय बना देता है. शाम का वक़्त था चिंटू की मां डूबते हुए सूरज को दीया दिखा कर अपने बाहर वाले दरवाज़े पर बैठी हुई थी. हल्का-हल्का अंधेरा होने को था, ठण्डी- ठण्डी हवा चल रही थी पास के पेड़ पर परिंदे अपने घोंसले में लौटने को तैयार थे. उधर गाँव के कुछ बच्चे
पोषम पा भई पोषम पा,
डाकिये ने क्या किया
सौ रूपए की घड़ी चुराई,
अब तो जेल में जाना पड़ेगा,
जेल की रोटी खानी पड़ेगी,
जेल का पानी पीना पड़ेगा
चिल्ला- चिल्ला कर खेल रहे थे.
गाँव की बुढ़ी काकी अपने डंडे को टेकते हुए कहीं जा रहीं थीं तभी उनकी नज़र चिंटू की मां पर गई और कहने लगी का रे बहुरिया ई साँझ के वकत में मुँह लटकाये काहे दहलीज़ पर बैठी हो. बड़ी मनहूसियत है ये. जिस घर में दो दिन से चूल्हा ना जला हो, कोई आमदनी नहीं हुई हो, छोटे- छोटे बच्चों को रूखी- सूखी रोटी खानी पड़ी हो भला उसकी मां के चेहरे पर खुशी कहाँ से आएगी. इस स्थिति में तो चेहरे पर बनावटी हँसी लाना भी पाप है.
ख़ैर, किसी-किसी पर समय का कहर इस तरह बरपता है कि सारी चालाकी सारी मासूमियत फीकी पड़ जाती है. चिंटू के पापा का कुछ ही दिन पहले सड़क हादसे में देहांत हो गया था घर के एकमात्र कमाने वाले इंसान थे. अगर सरकारी नौकरी होती, या कोई जीवन बीमा हुआ होता तो शायद आज इस परिवार में इतनी आर्थिक तंगी नहीं आती. चिंटू के पापा बहुत ही छोटे व्यापारी थे दिन भर जितना कमाते उससे ज्यादा खर्च अपने बच्चों की दवाई में लगा देते.
चिंटू सात साल का था और उससे दो छोटी बहने थीं. अब परिवार का पोषण करने वाली चिंटू की मां ही थी. चिंटू की मां ज्यादा पढ़ी-लिखी तो नहीं थी लेकिन हाँ सिलाई-कढ़ाई उन्हें बखूबी आती थी. चिंटू के पापा के गुज़र जाने के बाद वो गांव के कुछ घरों से कपड़ा मांग कर उसे हाथ से ही सिला करती और जो कुछ पैसा मिलता उसी से घर चलाती. लेकिन गाँव छोटा सा है एकाध महीने तो कपड़े मिले लेकिन तीन दिन से कोई काम नहीं मिला और जो कुछ पैसे बचे हुए थे उसी से घर का राशन-पानी चल रहा था. अब वो भी पैसे ख़त्म होने को थे. घर कैसे चलेगा इस चिंता में चिंटू की मां डूबी जा रही थी.
बूढ़ी काकी की बात सुन कर चिंटू की मां ने उन्हें पास बैठने को कहा और कहा काकी मेरी स्थिति तो तुमसे कुछ छिपी नहीं है बोलो मेरे मुस्कराने से मेरे बच्चों को दो वक़्त की रोटी मिल जायेगी? बड़का बबुआ तो थोड़ा सयाना हो गया है लेकिन दूनौ का क्या ? दोनों को दूध चाहिए ही चाहिए...
दूध की बात रहने दो काकी यहां तो अब जहर खाने का भी पैसा नहीं बचा. आंखों में गंगा-यमुना की धारा ने एक माँ के ममत्व को विवशता का शिकार बना दिया. बूढ़ी काकी भी नाती-पोते वाली है चिंटू की मां की वेदना को अच्छे से समझ रहीं थीं, लेकिन कहते हैं ना किसी के बुरे वक़्त में सभी लाचार और कंगाल हो जाते हैं. ख़ैर, बूढ़ी काकी बस भगवान से विनती ही कर सकती थी कि इसपर अपनी दया बनाए रखें. उन्होंने चिंटू की मां को सहानुभूति दी और वहाँ से विदा हो गई. शाम धीरे-धीरे अंधेरे में डूबती जा रही थी और गाँव सन्नाटे की चादर ओढ़े जा रहा था.
चिंटू की मां घर में आई और देखा कि तीनों आपस में ही सहमे हुए हैं. बच्चों के पास कुछ हो या ना हो लेकिन मां का उदास चेहरा देखकर छह महीने का बच्चा भी उदास हो जाता है. ठीक वैसा ही दृश्य था. ख़ैर सुबह की रोटी और नमक लगा कर चिंटू और उससे दो साल छोटी बहन ने खा लिया. घर में सबसे छोटी थी उसे मां का दूध मिलना भी गँवारा नहीं था क्योंकि उसकी मां खुद दो दिनों से भूखी थी ख़ैर , मां तो माँ ही होती है, जैसे-तैसे अपने सभी बच्चों का पेट भर के सबको सुला कर खुद भी लेट गई.
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रात के अंधेरे में पूरा गाँव सन्नाटे में था बस कुत्ते और सियार के रोने की आवाज चिंटू की मां तक आ रहीं थीं. कमरे में बस टिमटिमाता हुआ लालटेन था. जितना सन्नाटा उसके घर में उतनी ही हलचल चिंटू की मां के दिमाग में चल रही थी. आज चिंटू के पापा होते तो शायद हमें ये दिन तो नहीं देखना पड़ता. ये विधाता भी क्या चाहता है कुछ समझ में नहीं आता. काफी उधेड़बुन के बाद चिंटू की मां ने आखिरी निर्णय लिया कि गांव वालों के सामने हाथ फैलाने से अच्छा है मर जाना. अगर एक-दो दिन ऐसा ही चलता रहा तो यह निर्णय आखिरी निर्णय होगा.
आंखों में आंसू लेकर पता नहीं कब नींद आई और कब सुबह हो गई. कहते हैं कि डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल जाता है. गांव में एक बाहर की कंपनी आई थी जिसे एक महिला कारीगर की जरूरत थी जिसे सिलाई कढ़ाई आती हो. गांव वाले चिंटू की मां की परिस्थितियों से एवं उसके इस हुनर से वाकिफ़ थे. सभी ने उस कंपनी वाले को चिंटू की मां के बारे में बताया . और देखते ही देखते चिंटू की मां की नौकरी उस कंपनी में लग गई . कुछ दिन तो घर से ही काम करके भेजना था कुछ समय बाद उसे बाहर बुला लिया गया. जिससे उस परिवार की आर्थिक स्थिति फिर से पटरी पर आने लगी. उदास चेहरा फिर से खिल उठा.
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