आडू व्यापक रूप से एक रसीला और स्वादिष्ट फल है। इसकी सबसे पहले खेती चीन में की गई थी लेकिन आडू अब पूरी दुनिया में उगाया जाता है। स्वादिष्ट होने के साथ ही यह फल विटामिन, खनिज और एंटी अक्साइड समेत अनेक रासायनिक साम्रगी का भरपूर स्त्रोत है। भारत में इसकी खेती मुख्यता ठंडे इलाके जैसे हिमाचल, कश्मीर और उत्तराखंड इलाकों में की जाती है। आलू की प्रकृति पीले रंग की होती है और इनका गूदा हल्का पीला सफेद होता है। तो आइए जानते है क्या है इस रसभरे फल की खासियतः
आडू के फायदे
आंखों को रखें स्वस्थ
बीटा कैरोटीन आंखों के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार है। आडू में इसकी एंटी अक्साइड की मात्रा काफी ज्यादा होती है। ये बीटा कैरोटीन आंखों को पोषण देकर मुक्त कणों की क्षति से रेटिना को बचाता है।
त्वचा के लिए लाभकारी
पीच विटामिन ए और सी का काफी अच्छा स्त्रोत माना जाता है। ये त्वचा के लिए काफी ज्यादा लाभकारी होता है। ये त्वचा को नमी प्रदान करता है, साथ ही इससे त्वचा कोमल और नरम भी हो जाती है।
वजन करें कम
आडू खाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके सहारे मोटे लोग अपना मोटापे को सानी से कम कर सकते है। ये वसा रहित होते है
कोलेस्ट्रॉल रखें नियंत्रित
आडू खाने से उच्च कोलेस्ट्रोल और इसकी समस्याओं को नियंत्रित करने में काफी ज्यादा मदद मिलती है। ये रक्त प्रवाह में केलोस्ट्रोल के स्तर को कम करने में काफी सहायक होता है।
पाचन के लिए बेहतर
आडू अपनी उच्च फाइबर और पोटेशियम साम्रगी के कारण गुर्दे, पेट और लिवर से विषाक्त पदार्थों को शुद्ध रखनें में काफी ज्यादा मदद करता है। ये पाचन तंत्र के लिए भी काफी हल्के होते है।
एनीमिया में उपयोगी
लोहे की कमी एनिमिया वाले रोगियों के लिए पीच जैसे लोहे से भरपूर और समृद्ध पदार्थ को अपने आहार में सेवन करना चाहिए। ये शरीर में एनीमिया को रोकने में काफी सहायक होता है।
रक्तचाप करें कम
आडू में पोटेशियम और बुहत कम मात्रा में सोडियम होता है जो आपके स्वस्थ रक्तचाप को बनाए रखने में काफी ज्यादा मदद करता है।
तो इस प्रकार हम कह सकते है कि लाल रंग का दिखने वाला ये फल सेहत के लिए काफी ज्यादा लाभकारी होता है। लेकिन इसका अधिक मात्रा में सेवन थोड़ा नुकसान भी पहुंचा सकता है क्योंकि ज्यादा सेवन से इससे एलर्जी की समस्या हो सकती है। इसके साथ ही पेट में दर्द, दस्त, सांस लेने की समस्या भी हो सकती है। इसीलिए आडू का सेवन काफी सोच समझकर ही सेहत के अनुसार तय मात्रा में करना चाहिए।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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