कम लागत में अगर आप अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो मुलेठी की खेती आपके लिए लाभकारी साबित हो सकती है. आम बोलचाल की भाषा में मीठी जड़ के नाम से प्रसिद्ध मुलेठी कई तरह के दवाईयों के निर्माण में उपयोग होती है. शायद यही कारण है कि इसकी खेती पर एक तरफ जहां सरकार आपको अनुदान देती है, वहीं मार्केट में भी इसकी खूब मांग है.
जीवन के लिए वरदान है मुलेठी
वैसे आपको बता दें कि आयुर्वेद में मुलेठी को सेहत के लिए किसी वरदान से कम नहीं माना गया है. इसका उपयोग गले की खराश, खांसी एवं जलन रोधक जैसी आदि बीमारियों के उपचार में होता है. आज के समय में त्वचा से जुड़े अधिकतर क्रीम-पाउडर बनाने वाली कंपनियां भी मुलेठी का उपयोग कर रही है. इसके अलावा पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस इत्यादि के उपचार में भी ये सहायक है.
झाड़ीनुमा पौधों की श्रेणी में आती है मुलेठी
सदाबहार झाड़ीनुमा पौधों की श्रेणी में मुलेठी का नाम अहम है. इसकी औसत ऊंचाई 120 सेमी के लगभग हो सकती है. जबकि इसके फूलों का रंग जामुनी सफेद नीला होता है. वहीं इसके फलों में बीज पाएं जातें हैं, जो मार्केट में अच्छे दाम पर बिकते हैं. हालांकि मुख्य रूप से इसके जड़ों का सेवन किया जाता है, जो स्वाद में मीठे होते हैं.
भारत के इन राज्यों में होती है मुलेठी की खेती
बदलते हुए वक्त एवं आधुनिक कृषि तकनीक के इस युग में मुलेठी की खेती भारत के लगभग हर राज्य में संभव है एवं हो भी रही है. लेकिन मुख्य रूप से इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, हिमालयी क्षेत्रों आदि में होती है. भारत के अलावा इस पौधे की खेती ग्रीक, चीन एवं मिस्र में होती है.
जलवालयु एवं मिट्टी
इसकी खेती के लिए रेतीली-चिकनी मिट्टी सबसे उपयोगी है. जिसका मतलब है कि भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में इसकी खेती सबसे अधिक लाभदायक साबित हो सकती है. उष्ण कटिबंधीय जलवायु में मुलेठी आराम से उग सकती है.
बिजाई का समय
इसकी बिजाई के लिए दिसंबर से जनवरी या फरवरी के पहले हफ्ते तक का मौसम सही है. इस मौसम में नर्सरी की तैयारी करना लाभकारी भी है. इसी तरह आप इसकी बिजाई के लिए फरवरी-मार्च का माह चुन सकते हैं.
खेती की तैयारी:
इसकी खेती करने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह से समतल करना जरूरी है. मिट्टी को नरम होने तक जुताई करें एवं खरपतवार को अच्छें से हटा दें. ध्यान रहे कि मिट्टी में पानी ना खड़ा होने पाए.
प्रत्यारोपण:
मुलेठी की खेती कई प्रकार से की जा सकती है, लेकिन प्रत्यारोपण का सबसे आसान तरीका है रोपाई के मध्य बराबर फासला रखना. सामान्य तौर पर 90x45 सैं.मी. में बिजाई सीधे या पनीरी लगाकर करना उत्तम है.
अंतर प्रजातियों में इन पौधों को लगाया जा सकता है
मुलेठी की खेती के मध्य अंतर प्रजाती वाले फसलों के रूप में गाजर, आलू बंद गोभी आदि पौधे लगा सकते हैं. पौधों के अंकुरित होने तक जररूत अनुसार हल्की सिंचाई करें.
कटाई
ढ़ाई या तीन साल बाद पौधे उपज देने लायक जब हो जाए, तो आप कटाई की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं. सर्दियों का समय जैसे नवंबर या दिसंबर में इसकी कटाई करनी चाहिए.
Share your comments