बिहार के पूर्णिया प्रखंड के रानीपतार, मंझेली, खखोबारी, चांदी कठवा वाली जगहों पर बड़ें पैमाने पर मुर्गीपालन का कार्य हो रहा है जिसमें युवा काफी ज्यादा रूचि ले रहे है. युवा यहां पर बड़े पैमाने पर मुर्गीपालन के लिए फार्म को खोलकर आत्मनिर्भर होते जा रहे है. केवल एक महीने में मुर्गी का चूजा दो से ढाई किलो का हो जाता है और बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत भी मिल जाती है. युवाओं का कहना है कि एक हजार मुर्गा पालने पर बाजार के अनुसार कुल बचत 10 से 15 हजार रूपये की होती है इससे उद्यमियों की आमदनी में काफी इजाफा होता जा रहा है.
अगर चूजे पालन की बात करें तो तो इनको बेहद ही संभालकर 35 डिग्री के तापमान में 10 दिनों तक रखा जाता है. सबसे बड़ी बात है कि पूरी रात तापमान को एक जैसा ही रखा जाता है ताकि कोई चूजा मर न जाए. चूजा जैसे-जैसे बढ़ता है उसका तापमान वैसे ही घटाया जाता है. अंतिम 15 दिन तक तापमान 25 डिग्री रखा जाता है.
तापमान बढ़ने पर नुकसान (There will be loss due to rise in temperature)
मुर्गीपालन का कार्य करना बेहद ही चुनौतीपूर्वक होता है. दरअसल इसमें सबसे बड़ी बात तापमान को उचित रूप से बनाए रखना बड़ा चुनौती होती है. चूजे के पालने के लिए तापमान को घटाने या बढ़ाने पर चूजे में बीमारी आ जाती है. अगर वायरल फैला तो मुर्गों को मारना पड़ता है. चूजो को एक ही 35 डिग्री के समान तापमनान पर 10 दिनों तक रखना पड़ता है. इसके लिए 1400 वर्ग फीट में चूजो को बड़ा कर लिया जाता है. एक हजार मुर्गा पालने पर बाजार के अनुसार कुल बचत 10 से 15 हजार होती है.
चूजों को पालने के लिए इतनी जगह की जरूरत (This much space is needed to raise chickens)
अगर हम चूजे की बात करें तो इनका भोजन कुल चार प्रकार का होता है. इनकी मांग गांवों और शहरों में काफी ज्यादा मात्रा में होती है. इनकी कीमत भी 1700 से लेकर 1400 रूपये प्रति बैग के हिसाब से होती है. यही कारण है कि उद्यमी बड़े पैमाने पर मुर्गीपालन का कार्य करने लग गए है. इसके लिए 1400 वर्ग फीट जमीन में एक हजार चूजो को बड़ा करने का कार्य तेजी से किया जा रहा है. इससे काफी बेहतर आमदनी होती है.
लोन की सुविधा (Loan facility)
किसानों और मुर्गीपालक व्यवसायी का कहना है कि उनको इस कार्य के लिए केंद्र या राज्य सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं मिलती है. उनका कहना है कि लोन कि सुविधा हो जाए तो ज्यादा से ज्यादा मुर्गापालन का कार्य करके इसमें आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बना जा सकता है.
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