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बकरी पालन में लागत से लेकर मुनाफा तक की सम्पूर्ण जानकारी

अगर आप पशुपालन करने का सोच रहे हैं तो ऐसे में आपके लिए बकरीपालन एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. तो आइये जानते हैं बकरीपालन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी विस्तार से...

विवेक कुमार राय
विवेक कुमार राय
Goats Farming
Goats Farming

किसान खेती के साथ पशुपालन और उसका उपयोग प्राचीन काल से ही करते आ रहे है. पशुओं की उपयोगिता इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि, कृषि से जुड़े कई प्रमुख कार्यों में इनका इस्तेमाल किया जाता रहा है. इनके गोबर से बनी जैविक खाद, कृषि उपज को बढ़ावा देती है. 

इन पशुओं का प्रमुख स्रोत दूध, खाना तो है ही इसके साथ यह किसानों के लिए आय का प्रमुख साधन भी है. ऐसे में मौजूदा वक्त में कुछ किसान कृषि में ज्यादा लाभ न मिल पाने के वजह से पशुपालन की ओर अपना झुकाव दिखा रहे है.अगर आप भी पशुपालन करने के बारे में सोच रहें हैं, तो बकरी पालन (Goat rearing ) की शुरुआत कर सकते हैं. बकरी पालन में सबसे बड़ा फायदा यह है की इसके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाता है. जिससे बाजार की कोई समस्या नहीं रहती है .

माँसोत्पादक नस्लें (Meat Producing Breeds)

 इनमें ब्लेक बंगाल, उस्मानाबादी, मारवाडी, मेहसाना, संगमनेरी, कच्छी तथा सिरोही नस्लें शामिल हैं.

ऊन उत्पादक नस्लें (Wool Producing Breeds)

 इनमें कश्मीरी, चाँगथाँग, गद्दी, चेगू आदि है जिनसे पश्मीना की प्राप्ति होती है.

ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है. बकरी छोटा जानवर होने के कारण इसके रख-रखाव में लागत भी कम होता है. सूखा पड़ने के दौरान भी इसके खाने का इंतज़ाम सरलता से हो सकता है. इसकी देखभाल का कार्य भी  महिलाएं एवं बच्चे आसानी से कर सकते हैं और साथ ही जरुरत पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है. यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र के अधिकतर लघु एवं सीमांत किसान आय कम होने के कारण सपरिवार एक या दो जानवर अवश्य पालते हैं, ताकि उनके लिए दूध की व्यवस्था होती रहे. इनमें गाय, भैंस और बकरी आदि शामिल होती हैं. बीते कुछ सालों से पड़ रहे सूखे की वजह से बड़े जानवरों के लिए चारा आदि की समुचित व्यवस्था आदि करना एक मुश्किल कार्य होने के वजह से लोग अब बकरी पालन को प्राथमिकता दे रहे है.

बकरियों की नस्लें (Types of Goats breeds )

बकरियों की भारतीय नस्लें (Goat breeds in india )

भारत में लगभग 21 मुख्य बकरियों की नस्लें पाई जाती है. इन बकरियों की नस्लों को उत्पादन के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है -

दुधारू नस्लें (Milch Breeds)

इसमें जमुनापारी, सूरती, जखराना, बरबरी और बीटल आदि नस्लें शामिल हैं.

बकरी पालन की पूरी प्रक्रिया (Goat rearing process)

बकरी पालन करने के लिए पशुपालक को अलग से किसी आश्रय स्थल की आश्यकता नहीं पड़ती. उन्हें वो अपने घर पर ही आसानी से रख सकते हैं. बड़े पैमाने पर यदि बकरी पालन का कार्य किया जाएं, तब उसके लिए अलग से बाड़ा बनाने की जरुरत पड़ती है. यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में ज्यादातर लोग खेती किसानी के साथ बकरी पालन का कार्य करते हैं. ऐसी स्थिति में ये बकरियां खेतों और जंगलों में घूम फिर कर अपना भोजन आसानी से प्राप्त कर लेती है. अतः इनके लिए अलग से दाना-भूसा आदि की व्यवस्था बहुत कम मात्रा में करनी पड़ती है.

गौरतलब है कि देशी बकरियों के अलावा बरबरी और जमुनापारी नस्ल की बकरी पालन (goat Farming ) करने के लिए दाना, भूषा और चारा आदि की समुचित व्यवस्था करनी पड़ती है. लेकिन वह भी सस्ते में हो जाता है. दो से पांच बकरी तक एक परिवार बिना किसी अतिरिक्त व्यवस्था के आसानी से पाल सकता है. घर की महिलाएं बकरी की देख-रेख आसानी से कर सकती हैं और खाने के बाद बचे जूठन से इनके भूसा की सानी कर दी जाती है. ऊपर से थोड़ा बेझर का दाना मिलाने से इनका खाना स्वादिष्ट हो जाता है. बकरियों के रहने के लिए साफ-सुथरी एवं सूखी जगह की जरुरी होती है.

प्रजनन क्षमता (Fertility Capacity)

एक बकरी लगभग डेढ़ वर्ष की उम्र में बच्चा प्रजनन करने की स्थिति में आ जाती है और 6-7 माह में प्रजनन करती है. प्रायः एक बकरी एक बार में 3 से 4 बच्चों का प्रजनन करती है और एक साल में दो बार प्रजनन करने से इनकी संख्या में वृद्धि होती है. बच्चे को एक वर्ष तक पालने के बाद ही बेचते हैं.

बकरियों में प्रमुख रोग (Major diseases in goats )

देशी बकरियों में मुख्यतः मुंहपका - खुरपका रोग के साथ पेट में कीड़ी और खुजली की समस्या होती हैं. ये समस्याएं प्रायः बरसात के मौसम में होती हैं. इसके अलावा भी कई ऐसी बीमारियाँ हैं जो बकरियों को होती हैं, तो आइए जानते हैं इन बीमारियों के बारें में...

कोकसीडियोसिस (Coccidiosis Disease)

इस बीमारी के प्रभाव में आने से बकरी के छोटे बच्चे बुखार, डायरिया, डीहाइड्रेशन आदि की समस्या के शिकार हो सकते हैं. इस बीमारी में बकरी के बच्चों का वजन भी तेजी से कम होने लगता है. इस बीमारी से बचाव के लिए इन्हे 5-7 दिनों पर बायोसिल दवाई दी जानी चाहिए.

अफारा ( Flatulence Disease)

इस बीमारी में बकरियां तनाव में रहना शुरू कर देती है, वो लगातार अपने दांतों को पीसती रहती है और मांसपेशियोंको हिलाती है. इस बीमारी के उपचार के लिए सोडा बाइकार्बोनेट दिया जाना चाहिए.

थनैला रोग (Mastitis Disease )

इस बीमारी में बकरियां का लेवे गर्म और सख्त होने लगता है और भूख में भी कमी आनी शुरू हो जाती है. इस बीमारी के उपचार के लिए विभिन्न तरह के एंटीबायोटिक मौजूद हैं जैसे सी डी पेंसीलिन, एंटीऑक्सिन, बेनामाइन, नुफ्लोर आदि दिया जाना चाहिए.

दस्त (Diarrhea Disease)

इस बीमारी में बकरी में थोड़े थोड़े अन्तराल से तरल रूप में मल का निकलना शुरू हो जाता है व शरीर में बहुत कमजोरी आने लगती है. इस बीमारी के उपचार के लिए नेबलोन पाउडर 15 से 20 ग्राम 3 दिन तक दें. अगर बकरी को दस्त में खून भी आ रहा है, तो इसे वोक्तरिन गोली आधी सुबह और शाम नेबलोन पाउडर के साथ दे सकते हैं.

निमोनिया (Pneumonia Disease)

इस बीमारी में बकरी को ठंड लगने लगती है, नाक से तरल पदार्थ का रिसाव होने लगता है, मुंह खोलकर सांस लेने में भी दिक्कत होती है व खांसी, बुखार आने लगता है. इस बीमारी के उपचार के लिए ठंड के मौसम में जितना हो सके बकरियों को छत वाले बाड़े में ही रखें और खांसी के लिए केफलोन पाउडर 6-12 ग्राम रोजाना 3 दिन तक देते रहें.

बकरी पालन हेतु सावधानियां  (Precautions for goat rearing )

  • आबादी क्षेत्र जंगल से सटे होने के वजह से जंगली जानवरों का भय बना रहता है, क्योंकि बकरी जिस जगह पर रहती है, वहां उसकी महक आती है और उस महक को सूंघकर जंगली जानवर गांव की तरफ आने लगते हैं . कई बार तो वो पालतू जानवरों को नुकसान भी पहुंचा देते है.

  • बकरी के छोटे बच्चों को कुत्तों से बचाकर रखें .

  • बकरी एक ऐसा जानवर है, जो फ़सलों को अधिक नुकसान पहुँचाती है . इसलिए खेत में फसल होने की स्थिति में विशेष रखवाली करनी पड़ती है.

बकरी पालन में समस्याएं  (Goat rearing problems )

बकरी गरीब की गाय होती है, फिर भी इसके पालन में कई दिक्कतें भी आती हैं. बरसात के मौसम में बकरी की देख-भाल करना सबसे कठिन होता है. क्योंकि बकरी गीले स्थान पर बैठती नहीं है और उसी समय इनमें रोग भी बहुत अधिक होता है. बकरी का दूध पौष्टिक होने के बावजूद उसमें महक आने के कारण कोई उसे खरीदना नहीं चाहता. इसलिए उसका कोई मूल्य नहीं मिल पाता है. बकरी को रोज़ाना चराने के लिए ले जाना पड़ता है. इसलिए एक व्यक्ति को उसी की देख-रेख के लिए हमेशा रहना पड़ता है.

बकरी पालन के फायदे (Benefits of goat farming)

  • सूखा प्रभावित क्षेत्र में खेती के साथ बकरी पालन (bakari palan )आसानी से किया जा सकने वाला कम लागत का अच्छा व्यवसाय है, इससे मोटे तौर पर निम्न लाभ होते हैं-

  • जरूरत के समय बकरियों को बेचकर आसानी से नकद पैसा प्राप्त किया जा सकता है.

  • बकरी पालन करने के लिए किसी भी प्रकार की तकनीकी ज्ञान की जरुरत नहीं पड़ती.

  • यह व्यवसाय बहुत तेजी से फैलता है। इसलिए यह व्यवसाय कम लागत में अधिक मुनाफा देना वाला है.

  • इनके लिए बाजार स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध है. अधिकतर व्यवसायी गांव से ही आकर बकरी-बकरे को खरीदकर ले जाते हैं.

English Summary: how to start goat farming in india goat breeds and price goat farming profit Published on: 27 May 2019, 04:59 IST

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