बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय (business) है जो कम पूंजी में भी शुरू किया जा सकता है. बकरी पालन करने वालों को नर बच्चों (Male buck) का बधियाकरण समय पर करवाना चाहिए ताकि बकरे के भार में इजाफा हो और अधिक दाम पर बकरा बिके. बकरों का बधियाकरण 2 माह की आयु में बर्डिजो कास्ट्रेटर की सहायता से करना चाहिए ताकि बकरों की बढ़वार अच्छी तरह से हो. बर्डिजो कास्ट्रेटर (Birdijo Castrator) एक सर्वाधिक प्रचलित एवं सुरक्षित तरीका है. इस तरीके में अंडकोषों (Testicles) को बाहर से दबा दिया जाता है जिससे खून बिल्कुल भी नहीं निकलता और अंडकोषों में खून का दौर बंद हो जाता है. जिससे अंडकोष अपने आप सूख जाते हैं. यह कार्य किसी एक्सपर्ट से कराना चाहिए नहीं तो अंडकोष में सूजन आ जाती है.
बकरों में बधियाकरण के फायदे (Benefits of castration in goats)
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बधियाकरण से कमजोर पशु के वंश को आगे बढऩे से रोका जा सकता है, ताकि कमजोर और असक्षम संतान पैदा ही न हो.
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किसी भी पशुपालन में बधियाकरण करना सफल एवं लाभकारी है और पशुपालन के लिए आवश्यक भी है.
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नर बच्चों का बधियाकरण 2 महीने के भीतर ही कराएं.
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जन्म के बाद बच्चे की नाभी को अच्छी तरह साफ़ करें और नाभी को 3 इंच पीछे से नया ब्लेड से काट दें तथा टिंक्चर आयोडीन लगा दें. यह दवा 2-3 दिनों तक लगाते रहे.
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बधियाकरण के बाद नर बकरों को मादा पशुओं के साथ बिना किसी कठिनाई के रखा जा सकता है, क्योंकि जब बकरी मद में आये तो इन बकरों से गर्भित नहीं हो पाती.
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बधिया किए गये बकरों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है और इनमें आक्रामकता खत्म हो जाती है.
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बधियाकरण से मांस के लिये प्रयोग होने वाले पशुओं के मांस की गुणवत्ता बढ़ जाती है एवं कम समय में अधिक वजन प्राप्त होने से कीमत अच्छी मिलती है.
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बधियाकरण किया हुआ बकरा को 9-10 माह की उम्र में ही बेच देना लाभप्रद होता है.
बकरी प्रजनन और देखभाल संबंधी महत्वपूर्ण बिन्दु (Important points related to goat breeding and care)
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बकरी का प्रथम प्रजनन 8-10 माह की उम्र के बाद ही करवाना चाहिए तथा बकरियों के हीट (Heat) में आने के 24-28 घंटों के बीच ही गर्भित करें.
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गर्भित बकरियों को गर्भावस्था (Pregnancy) के अंतिम डेढ़ महीने में पशु आहार में अतिरिक्त 200 ग्राम दाना का मिश्रण अवश्य दें एवं बकरियों के आवास में प्रति बकरी 10-12 वर्ग फीट की जगह दें तथा एक बाड़े में एक साथ 20 बकरियों से ज्यादा नहीं रखें.
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बकरी के बच्चों को उसकी माँ का प्रथम दूध जन्म के 20 मिनट के अंदर पिलायें. यह दूध खीस कहलाता है जिससे बच्चे में इमम्युनिटी मजबूत होती है और पेट भी इससे साफ होता है.
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बकरी के बच्चों को समय-समय पर टेट्रासाइक्लिन पानी में मिलाकर पिलायें. इससे न्यूमोनिया का प्रकोप कम हो जाता है.
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बकरी के बच्चों को कॉक्सिडियोसिस बीमारी (Coccidiosis disease) से बचाने के लिए डॉक्टर की सलाह से दवा दें.
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बच्चों को हर चार महीनों के अंतराल पर नियमित रूप से कृमिनाशक और समय पर टिकाकरण अवश्य कराये.
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बकरियों के बाड़े को साफ़ रखना चाहिए और बाहरी परजीवों (Parasites) का खात्मा करने हेतु बकरी फार्म पर देशी मुर्गियों को रखना फायदेमंद साबित होता है.
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