सलाद के रूप में अपनी मुख्य पहचान बनाने वाला खीरा अपने मांगों को लेकर सदाबहार है. किसी भी मौसम में ना तो इसकी खेती बंद होती है और ना ही मांग में किसी तरह की खास कमी आती है. सर्दियों में ब्याह-शादी के मौसम में एक बार फिर इसकी मांग होटलों आदि में बढ़ने लगी है. इस समय आम खीरे के मुकाबले बीज रहित खीरे की मार्केट में विशेष मांग है. ऐसे में अगर किसान भाई चाहें तो सीडलेस खीरे की खेती से बंपर मुनाफा कमा सकते हैं.
कहां से आया सीडलेस खीरा (Where did the seedless cucumber come from)
सीडलेस खीरा आज भारतीय कृषि जगत में तेजी से प्रसिध्द हो रहा है. देश के अलग-अलग जगहों पर किये जाने वाले सीडलेस खीरे की खेती संकर किस्मों पर आधारित है. इन किस्मों को हॉलैण्ड से देश में लाया गया है.
यहां से हुई शुरूआत (Started from)
माना जाता है कि भारत में सीडलेस खीरे की खेती की शुरुआत दक्षिण से हुई. सबसे पहले केरला में इसकी खेती की गई. दक्षिण भागों से होता हुआ ये आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में पहुंचा और लोकप्रिय हो गया.
पॉलीहाउस में इस तरह हो सकती है खेती (This can be cultivated in polyhouses like this)
इस खीरे को पॉलीहाउस में लगभग सालभर उगाया जा सकता है. खास बात ये है कि इन्हें अन्य किस्मों की तरह परागण की कोई आवश्यकता नहीं होती है.
कितना होगा उत्पादन (How much will be produced)
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर बीज रहित खीरों के एक हजार स्क्वायर मीटर में 1500 पौधे लगाये जायें तो किसान को अनुमानित तौर पर 20 से 25 किलो तक फल मिल सकता है. औसतन खीरे का वजन 100 से 150 ग्राम तक हो सकता है.
इसलिये बढ़ रही है मांग (That's why the demand is increasing)
समय के साथ बढ़ती हुई बीमारियों के कारण भोजन में सलाद का उपयोग बढ़ा है. बीज रहित खीरे ना सिर्फ देखने में सुंदर लगते हैं बल्कि स्वाद में भी आम खीरों के मुकाबले बढ़िया होते हैं. खाने के अलावा इनका प्रयोग सजावट के लिये भी किया जाता है. आम खीरों की तरह इनमे कड़वापन भी नहीं होता है.
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