भारत के किसानों को कम लागत और कम समय में धान की अच्छी पैदावार देने के उद्देश्य से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली ने दो धान की नई किस्में जारी की हैं. बता दें, पूसा संस्थान ने कल यानी 22 मई, 2024 को रॉबिनोवीड बासमती चावल की किस्मों, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की किस्मों को जारी किया है, जो सीधे बीज वाले चावल की खेती के लिए इमेजेथापायर 10 प्रतिशत एसएल के प्रति सहनशील हैं. इस संदर्भ में IARI, दिल्ली के निदेशक डॉ.अशोक कुमार सिंह ने बताया कि, उत्तर-पश्चिमी भारत में चावल की खेती में प्रमुख चिंताओं में (A) घटता जल स्तर (B) चावल की रोपाई के लिए मजदूरों की कमी और (C) रोपाई के दौरान बाढ़ की स्थिति में ग्रीनहाउस गैस, मीथेन का उत्सर्जन शामिल है.
पूसा संस्थान द्ववारा विकसीत सीधी बुआई वाला चावल इन सभी चिंताओं का समाधान है. डीएसआर के तहत खरपतवार एक बड़ी समस्या है जिसे डीएसआर को सफल बनाने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है. इस दिशा में, ICAR-IARI, नई दिल्ली में ठोस अनुसंधान से रोबिनोविड बासमती चावल की दो किस्मों, पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 का विकास किया गया है, जो इमाजेथापायर 10% एसएल के प्रति सहनशील पहली गैर-जीएम शाकनाशी प्रतिरोधी बासमती चावल की किस्में हैं. इन्हें भारत में व्यावसायिक खेती के लिए जारी किया जाएगा.
पूसा बासमती 1979
पुसा बासमती 1979 एक MAS से विकसित हर्बिसाइड सहिष्णु निकट-समानानुवांशिक पंक्ति है, जो बासमती चावल की किस्म "PB 1121" की है। इसमें Imazethapyr 10% एसएल सहिष्णुता प्रदान करने वाला परिवर्तित AHAS एलील होता है. इसके बीज से बीज तक परिपक्वता का समय 130 से 133 दिन का है. राष्ट्रीय बासमती परीक्षणों में 2 वर्षों के परीक्षण के दौरान सिंचित प्रतिरोपित अवस्था में इसकी औसत उपज 45.77 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पूसा बासमती 1985
उन्होंने इन दो फसल की किस्मों में खरपतवारों के प्रभावी प्रबंधन के लिए अपनाई जाने वाली आवश्यक सावधानियों के साथ डीएसआर के तहत इन दो चावल किस्मों की प्रथाओं के पैकेज के बारे में विस्तार से बताया है. ये दो किस्में व्यापक-स्पेक्ट्रम शाकनाशी के प्रति सहनशील होने के कारण, इमाज़ेथापायर 10% एसएल डीएसआर के तहत खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण में सहायक होंगी, जिससे बासमती चावल की खेती की लागत कम हो जाएगी. इससे चावल की खेती में श्रम की कमी, पानी और मीथेन उत्सर्जन की चुनौतियों से निपटने में भी मदद मिलेगी.
इस अवसर पर भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि आयुक्त डॉ. पीके सिंह ने भी चावल की खेती को टिकाऊ बनाने में इमेजेथापायर 10% एसएल के प्रति सहनशीलता जैसी तकनीकों के साथ इन उन्नत चावल किस्मों के महत्व पर जोर दिया. आईसीएआर, नई दिल्ली के एडीजी (बीज) डॉ. डीके यादव ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि बासमती चावल की ये दो किस्में देश के बासमती जीआई क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित होंगी. इस अवसर पर डॉ. सी. विश्वनाथन (संयुक्त निदेशक, अनुसंधान), डॉ. आरएन पडारिया (संयुक्त निदेशक, विस्तार), डॉ. गोपाल कृष्णन (आनुवांशिकी विभाग प्रमुख), डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह (बीज उत्पादन इकाई प्रभारी), पूसा संस्थान के विभाग प्रमुख और वैज्ञानिक, किसान, बीज कंपनियां और मीडिया उपस्थित थे.
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