सदियों से मनुष्य अपनी मिठास की पिपासा के लिए पेड़ों को खोजता रहा है। सामान्य स्रोत जैसे- गन्ना, चुकंदर और मेपल शुगर से उत्पादित शर्करा से सभी भली भाँति परिचित हैं। कच्चे माल की उपलब्धता, तकनीकी जानकारी के अभाव के कारण कुछ पौधे कम जाने जाते है। लेकिन फिर भी शर्करा का स्रोतहोने के कारण उपयोग में है। इन्ही स्रोतो में एक है पाम या ताड़। ये पौधे पाल्मी कुल से संबंधित है। ताड़ हमारे भारत देश के अधिकतर राज्यो में पाया जाता हैं। परंतु इसकी संख्या तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र एवं बिहार मे अधिक है। ताड़ वृक्ष को कल्पवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ताड़ ही एक ऐसा वृक्ष है जिसके प्रत्येक भाग को इस्तेमाल किया जा सकता है। पाम से ताड़ी,गुड़ व सीरप बनाया जाता है। ताड़ के पौधे से अनेक उपयोगी सामग्री जैसे- भोजन, आश्रय, वस्त्र, लकड़ी, ईधन, तेल, मोम, रंजक पदार्थ आदि भी प्राप्त होते है। इनके पुष्पक्रम से प्राप्त होने वाले रस को नीरा, स्वीट टौडी या पाम नेक्टर भी कहते है। इसमे सुक्रोज की मात्रा 12-17 प्रतिशत तक होती है। यह एक शुद्ध पारदर्शी मीठा खुशबुदार ताजगी भरा पेय हैं। नीरा सामान्य तापमान पर प्राकृतिक किण्वन के लिए संवेदनशील है,किण्वन के बाद यह नीरा ताड़ी में परिवर्तित हो जाता है।
नीरा मे काबोहाइड्रेट, मुख्यतः सुक्रोज काफी मात्रा में होता है और इसका पी. एच. मान लगभग उदासीन होता है इसका रासायनिक संघटन कई कारकों पर निर्भर करता है। जैसे स्थान, पाम का प्रकार, इसके एकत्र करने की विधि तथा मौसम आदि। इसका सामान्य संगठन निम्नवत हैं-
सारणीः1 नीरा का सामान्य रासायनिक संघटन
तत्व |
मात्रा (ग्राम/100 मिली) |
सुक्रोज |
12.3-17.4 |
प्रोटीन |
0.23-0.32 |
एस्कॉर्बिक अम्ल |
0.016-0.03 |
कुल राख(Total Ash) |
0.11-0.41 |
कुल ठोस (Total Solid) |
15.2-19.7 |
इसके रस का उपयोग गुड़ बनाने के लिए भी होता है, गुड़ बनाने के लिए रस को उबाला एवं गाढ़ा किया जाता है। यह एक गहरी रंगत का ठोस पदार्थ है, जिसमे एक विशेष सुगंध होती है। नीरा के किण्वन तदोपरांत आसवन द्वारा एक एल्कोहलयुक्त पेय बनता है, जिसे अर्क के नाम से जाना जाता है और यह पाम मदिरा भी कहलाता है। एसिटिक किण्वन होने पर ताड़ी से सिरका बनता है। ताड़ की 2600 से ज्यादा प्रजातियां आर्थिक दृष्टि से महत्वपुर्ण है। गुड़ उत्पादन मे प्रयोग किये जाने वाले पाम मे मुख्यतः पाल्मामीरा पाम,जंगली डेट पाम,सागोपाम,कोकोनटपाम आदि है।
रस एकत्र करना/निकालना
गुड़ उत्पादन की क्रिया की सर्वप्रथम आवश्यकता है पौधें से रस निकालने की उचित प्रक्रिया, जिसके द्वारा पौधों से उनकी जैविक क्षमता से ज्यादा रस न निकाला जा सके। पौधों से रस निकालने की क्रिया मुलतः सभी ताड़ के पौधो मे लगभग समान ही होती है। निकालने का समय तथा पौधे का भाग जिसका उपयोग रस निकालने के लिए किया जा रहा है रस का संरक्षण एक कठिन कार्य हैं। गुड़ बनाने के लिए नीरा प्रायः रात में या सुर्योदय के समय एकत्र करते है जब वातावरण का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। रस एकत्र करने के लिए साफ बर्तनो का प्रयोग किया जाता है। यह बर्तन पहले गरम करके या धुआ करके संक्रमण रहित किये जाते है। कभी कभी बर्तनों में चूने का घोल पोत दिया जाता है। इन सभी सावधानियों के बावजूद भी ताजे रस को 10-12 घंटे तक ही संरक्षित रखा जा सकता है के अनुसार थोड़ा बहुत बदलाव होता है।
ताड़ के पुष्पक्रम को चीरा लगाकर स्रावित द्रव से नीरा प्राप्त किया जाता है, खजूर के वृक्ष मे तनेम चीरा लगाकर स्रावित द्रव प्राप्त करते है। इससे एक विशिष्ट गंधयुक्त उत्तम श्रेणी का गुड़ प्राप्त होता है।
रस से गुड़ बनाने की प्रक्रिया-
गुड़ बनाने में अब पारंपरिक मिट्टी के बर्तनो के स्थान पर गैलवेनाइज्ड आयरन के बड़े कड़ाह का तथा ईधन की खपत को नियंत्रित करने के लिए उन्नत भट्टियों का प्रयोग होता है। एकत्रित नीरा को पहले महीन कपड़े या तार की जाली से छाना जाता है उबालने वाले कड़ाह पर किसी वानस्पतिक तेल को चुपड़कर हल्का गरम करते है। कड़ाह में तेल लगाने से रस उबालते समय किनारों पर रस जलता नहीं है अब इस कड़ाह मे छने हुए रस को डाला जाता है और थोड़ा गरम किया जाता है। इस समय रस का पी.एच. मान 7 पर लाने के लिए इसमे थोड़ी मात्रा में सुपर फास्फेट डालते है, इससे अतिरिक्त चूने का अवक्षेपण हो जाता है। रस को 70 डिग्री सेल्सियस तक गरम करने के बाद मोटे सूती कपड़े से छाना जाता है। छने हुए रस को कड़ाह मे फिर उबाला जाता है। उबलने के साथ ही झाग सतह पर आने लगता है जिसे करछुल से हटाया जाता है। तीव्र वाष्पीकरण करने के लिए रस को बार बार चलाया जाता है। जब रस गाढ़ा होने लगता है। तो आँच को धीमा कर दिया जाता है और रस गुड़ बनाने की अवस्था तक पहूॅच जाता है। इसका परीक्षण किया जाता हैं । परीक्षण के लिए इस गाड़े पदार्थ की कुछ बूँदे ठंडे पानी के कप में रखते है। गाढ़ेपन की उचित स्थिति होने पर यह उॅगलियों के बीच में रगड़ने पर ठोस हो जाता है। अब इस गाढ़े रस को धातु या लकड़ी के साँचों में डालकर जमने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस तरह बना गुड़ सख्त, केलासीय तथा सुनहरे पीले रंग का होता है। इसका स्वाद काफी अच्छा होता है। यह गुड़ गन्नें से बने गुड से अपेक्षाकृत उतम माना जाता है।
सारणीः2 पाम गुड़ का पोषक संघटन
घटक |
मात्रा |
नमी प्रतिशत |
1.19 |
प्रोटीन प्रतिशत |
0.35 |
वसा प्रतिशत |
0.17 |
लवण प्रतिशत |
0.74 |
कार्बोहाइड्रेट प्रतिशत |
90.60 |
कैल्शियम प्रतिशत |
0.06 |
फास्फोरस प्रतिशत |
0-06 |
आयरन मिग्रा0/ग्रा0 |
2.5 |
निकोटिनिक अम्ल |
5.24 |
राइबोफ्लेविन (मिग्रा0/100ग्रा0) |
432.0 |
विटामिन (मिग्रा0./100 ग्रा0) |
11.0 |
कैलोरिफिक वैल्यू/ 100 ग्रा0 |
365.0 |
ताल मिसरी या पाम कैंडी
रस को उसी तरह उबाला जाता है लेकिन गुड़ बनाने की सांद्रता तक गाढ़ा नहीं किया जाता है। इस सीरप को ढक्कनदार बर्तनो मे भरकर कुछ महीनों के लिए मिट्टी मे दबा दिया जाता है, और इस समय में उसमे कैंडी क्रिस्टल बन जाते है, इसे ताल मिसरी कहते है।
झोला गुड़
बादलों के मौसम में ठोस गुड़ बनाना संभव न होने पर रात मे एकत्र किये गये रस से जो गुड़ बनता है उसे झोला गुड़ कहते है। इसको बनाने के लिए रस को ठोस गुड़ बनाने की प्रक्रिया की भाँति ही उबालते है लेकिन ठोस गुड़ बनाने की सीमा तक गाढ़ा नहीं करते है। इस क्रम में गाढ़े रस को मिट्टी के बर्तनों मे केलासन के लिए रख दिया जाता है।
पाम गुड़ का भंडारण
यद्यपि पाम नीरा का सूक्ष्मजीवो से संरक्षण एक कठिन प्रक्रिया है परंतु एक बार गुड़ बन जाने के बाद अगर इसे सूखी व हवादार जगह पर रखा जाता है, तो यह काफी समय तक सुरक्षित रहता है। भंडारण के लिए उपयुक्त स्थितिया न होने पर इसमे मोल्ड्स (एक किस्म की फफूंदी) उग आते है।
पाम गुड की माँग ज्यादा और उत्पादन कम होने के कारण इसका मूल्य बाजार में गन्ने से बने गुड़ से अपेक्षाकृत ज्यादा होता है उत्पादन की तकनीकी मे सुधार जैसे टैपिंग प्रक्रिया, रस का सरंक्षण, रस बनाने की प्रक्रिया तथा ज्यादा लंबे समय तक रस उत्पादन करने वाली प्रजातियां का विकास करके पाम गुड़ उत्पादन को ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त आय के सतत स्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है।
पाम गुड़ के उपयोग
पाम गुड़ बनाने के प्रक्रिया में ज्यादा रसायनो का प्रयोग न होने से इसमे उपस्थित प्राकृतिक खनिज लवण विद्यमान रहते है। पाम गुड़ में अनेक पोषक एवं औषधीय गुण होते है यह विटामिन बी काँम्पलेक्स तथा एस्कार्बिक अम्ल का अच्छा स्रोत हैं। इसमे मैगनीशियम और पोटैशियम जैसे आवश्यक खनिज होते है पोटैशियम रक्त चाप व हृदय तंत्र को नियंत्रित करता है, पाम गुड़ कफ तथा पेट की परेशानियो को दूर करने मे भी लाभदायक है यह मानव शरीर के शोधक के रूप मे कार्य करता है और श्वास नली, भोजन नली, फेफड़े, पेट तथा आँतो का प्रभावी ढंग से शोधित करता है, पर्याप्त मात्रा में आयरन होने के कारण यह रक्त मे हीमोग्लोबीन के स्तर को बढ़ाता है। खजूर के रस से प्राप्त गुड़ को बंगाली मिठाई बनाने में प्रयोग होता है। इसका प्रयोग अनेको मीठे व्यंजन बनाने में होता है।
गुण |
पालमायरा |
डेट पाम |
कोकोनट पाम |
सागो पाम |
गन्ने से बना गुड़ |
नमी प्रतिशत |
8.61 |
9.16 |
10.32 |
9.16 |
6.94 |
सुक्रोज प्रतिशत |
76.86 |
72.01 |
71.89 |
84.31 |
69.43 |
वसा प्रतिशत |
0.19 |
0.26 |
0.15 |
0.11 |
0.05 |
प्रोटीन प्रतिशत |
1.04 |
1.46 |
0.96 |
2.28 |
0.25 |
लवण प्रतिशत |
3.15 |
2.60 |
5.04 |
3.66 |
1.00 |
कैल्शियम प्रतिशत |
0.861 |
0.363 |
1.638 |
1.352 |
0.400 |
फॅास्फोरस प्रतिशत |
0.052 |
0.52 |
0.062 |
1.372 |
0.045 |
कुमारी पुनम पल्लवी, कार्यक्रम सहायक
कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत (नालंदा)
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