आज हम सभी रासायनिक खादों के प्रयोग से अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं बल्कि आज किसानों में यह विश्वास बन चुका है कि फसल में यूरिया का प्रयोग जरूरी है. अगर वह अपनी फसल में Uria और DAP का प्रयोग नहीं करेंगे तो उनकी फसल से होने वाले अनाज केवल घर की पूर्ती के लिए ही हो पाएंगे. लेकिन आज हम आपको ताराचंद बेलजी जी की एक ऐसी रिसर्च के बारे में बताने जा रहे हैं. जिसकी सहायता से आप प्राकृतिक उत्पादन के माध्यम से रासायनिक प्रयोग से ज्यादा का उत्पादन कर सकते हैं.
कौन हैं ताराचंद बेलजी
ताराचंद बेलजी मध्य प्रदेश के बालाघाट के ग्राम कनई के एक किसान हैं. यह वर्ष 1999 से प्राकृतिक खेती पर लगातार कई तरह के शोध करते चले आ रहे हैं. आज भारत ही नहीं बल्कि विदेशों के भी बहुत से किसान ताराचंद जी से जुड़ कर प्राकृतिक से हो रही बंपर कमाई के गुणों को सीख रहे हैं. पिछले कई वर्षों के शोध के बाद आज यह कई तरह के निष्कर्षों पर पहुंचे हैं. अपने इन्हीं सफल खोजों के आधार पर आज विश्व के कई किसान इनसे लाभान्वित हो रहे हैं.
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प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से विकसित की खुद की तकनीक
ताराचंद जी ने प्राकृतिक खेती के विकास के लिए बहुत सी तकनीकें प्रयोग की लेकिन जब कोई ख़ास सफलता नहीं मिली तो इन्होने भारतीय प्राचीन ग्रंथों को भी अपने शोध का आधार बनाया. इन सभी प्रयोगों के बाद ताराचंद जी ने एक तकनीक को विकसित किया जो आज पूरे भारत में प्रचलित है. ताराचंद द्वारा विकसित की गयी इस तकनीक को भारत में TCBT के नाम से जाना जाता है. TCBT तकनीक का पूरा नाम “ताराचंद बेलजी तकनीक” है. आज भारत के लगभग 19 प्रदेशों के 10000 से ज्यादा किसान TCBT के तहत प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने खेती के पुराने तरीके को बदल कर एक बार फिर से जैविक खेती को अपना रहे हैं.
कई रिकॉर्ड किए हैं अपने नाम
ताराचंद जी ने प्राकृतिक खेती को आधार बना कर कई शोधों के बाद कई बड़ी सफलताएं अपने नाम की हैं. आपको बता दें कि ताराचंद जी के अनुसार अभी तक 18 फसलों के रिकॉर्ड उत्पाद हैं. जिनमें 16 फसलों के राष्ट्रीय स्तर पर और 2 फसलों के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड हैं. इन रिकार्ड्स के बाद ही इनसे किसानों के जुड़ने का सिलसिला बहुत ज्यादा बढ़ गया. आज भारत में 25 से ज्यादा किस्मों का विकास कर चुके ताराचंद जी भारत के कई प्रदेशों में जा कर किसानों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं. भारत में चल रहे TCBT प्रशिक्षण में पिछले 12 महीनों के डाटा के अनुसार 25 हजार से ज्यादा किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं जबकि अभी तक कुल 200000 से ज्यादा किसान प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं. इतना ही नहीं ताराचंद जी हर साल लगभग 100 से ज्यादा प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित करते हैं. जहां किसान भाइयों को इन सभी नई तकनीकों के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की जाती है.
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प्राकृतिक खेती में असीमित है प्रोडक्टिविटी
अपने शोधों के आधार पर ताराचंद जी का कहना है कि यदि वे रासायनिक खादों के सहारे किसी भी फसल की उत्पादकता को बढ़ाना चाहते हैं तो यह एक सीमित अवस्था तक ही संभव होता है लेकिन यदि आप प्राकृतिक खेती के माध्यम से इस तरह के लाभ लेना चाहते हैं तो आप एक ही पौधे से असीमित उत्पादकता को प्राप्त कर सकते हैं. ताराचंद जी के अनुसार उन्होंने 50 ग्राम सरसों से 15 कुंतल 54 किलो सरसों का उत्पादन किया है. इतना ही नहीं उन्होंने लौकी के एक पौधे से 1000 लौकी प्राप्त करने का रिकॉर्ड भी कायम किया है.
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प्राकृतिक रसायन हैं जरूरी
इनके अनुसार हम भूमि कि उर्वरा शक्ति या पौधों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए जो भी रसायन प्रयोग करते हैं उसी के आधार पर हम फसल से उत्पादन प्राप्त करते हैं. लेकिन यदि हम भूमि की उर्वरा शक्ति को स्थाई रूप से बढ़ाना चाहते हैं साथ ही ज्यादा उत्पादन प्राप्त करना चाहते हैं तो हमको खेती के लिए आयुर्वेद का सहयोग लेना चाहिए. आयुर्वेद के अनुसार हम रासायनिक खादों के स्थान पर भस्म रसायन, जैव रसायन, ऊर्जा जल, अणु जल, षडरस आदि को जब हम अपने रसायनों में शामिल करते हैं तो उत्पादकता प्राकृतिक रूप से बढ़ती है साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति का विकास होता है.
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3G/4G कटिंग से बढ़ा सकते हैं उत्पादकता
इस तकनीक का विकास भी ताराचंद जी ने ही किया है. इस प्रविधि के द्वारा आप सभी पत्तों से फल प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही ज्यादा उत्पादकता के लिए आपको इसमें जैव रसायनों का छिड़काव भी करते रहना होगा.
कटिंग की यह विधी सभी पौधों के लिए थोड़े से अंतर के साथ लगभग एक जैसी ही होती है. यदि आप भी प्राकृतिक खेती के इन गुणों को सीखना या इनके लिए आवश्यक उत्पादों के बारे में कुछ जानना चाहते हैं तो आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से पूरी जानकारी ले सकते हैं और साथ में हमसे जुड़ भी सकते हैं.
LINK: SOUL Organic Farming
LINK: SOUL Society for Organic Farming Research & Education
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