1. Home
  2. खेती-बाड़ी

जानिए तिल की उन्नत किस्में व खेती की तकनीक, जिससे मिलेगा बंपर उत्पादन

भारत के कई राज्यों के किसानों ने गेंहू, चावल, सरसों की खेती छोड़कर तिल की खेती शुरु कर दी है. तिल प्रमुख तिलहनी फसल हैं. तिल का बाजारी भाव 10 से 15 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक होता है. ऐसे में आप भी तिल की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इस लेख में हम आपको तिल की खेती और बंपर पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे.

राशि श्रीवास्तव
जानिए तिल की उन्नत किस्में व खेती की तकनीक, जिससे मिलेगा बंपर उत्पादन
जानिए तिल की उन्नत किस्में व खेती की तकनीक, जिससे मिलेगा बंपर उत्पादन

भारत के कई राज्यों के किसानों ने गेहूंचावलसरसों की खेती छोड़कर तिल की खेती शुरु कर दी है. तिल प्रमुख तिलहनी फसल है. जिसकी खेती महाराष्ट्रराजस्थानपश्चिम बंगालआंध्र प्रदेशगुजराततमिलनाडूउत्तरप्रदेशतेलांगानामध्यप्रदेश में की जाती है. तिल का बाजारी भाव 10 से 15 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक होता है. ऐसे में आप भी तिल की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. इस लेख में हम आपको तिल की खेती और बंपर पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे.

सबसे पहले जानते हैं तिल की खेती के लिए उचित जलवायु व मिट्टी

तिल के लिए शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. ज्यादा बरसात या सूखा पड़ने से फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है. तिल की खेती के लिए हल्की दोमट, बुलई दोमट, काली मिट्टी अच्छी होती है. भूमि का पीएच 5.5 से 8.0 तक उपयुक्त होता है.

खेती का उचित समय

तिल की खेती साल में तीन बार की जा सकती है, खरीफ सीजन में इसकी बुवाई जुलाई में होती है, अर्ध रबी में इसकी बुवाई अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर सिंतबर के पहले सप्ताह तक होती है और ग्रीष्मकालीन फसल के लिए इसकी बुवाई जनवरी दूसरे सप्ताह से फरवरी दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है.

तिल की उन्नत किस्में

तिल की कई उन्नत किस्में बाजार में उपलब्ध हैं.

टी.के.जी. 308

यह किस्म 80 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती है, इससे प्रति हेक्टेयर 600 से 700 किलो तक उत्पादन मिल जाता है. इसमें 48 से 50 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है. इस किस्म की खास बात है कि यह तना व जड़ सड़न रोगरोधी है.

जे.टी-11 (पी.के.डी.एस.-11)

यह 82- 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इससे 650 से 700 किलो प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन हो सकता है. इसके दाने का रंग हल्का भूरा होता है. इसमें तेल की मात्रा 46-50 प्रतिशत होती है.

जे.टी-12 (पी.के.डी.एस.-12)

 यह किस्म भी 80 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 50 से 53 प्रतिशत पाई जाती है. यह किस्म मैक्रोफोमिना रोग के लिए प्रति सहनशील है. तिल की ये किस्म गीष्म कालीन खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है.

जवाहर तिल 306

यह किस्म 86 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है. इससे अच्छा उत्पादन होता है, जिससे प्रति हेक्टेयर 700 से 900 किलो तक उत्पादन मिल सकता है. यह किस्म पौध गलन, सरकोस्पोरा पत्ती घब्बा, भभूतिया एवं फाइलोड़ी रोगरोधी है.

जे.टी.एस. 8

इस किस्म में तेल की मात्रा 52 प्रतिशत पाई जाती है, इसमें 600 से 700 किलो प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है.

टी.के.जी. 55

यह किस्म 76-78 दिन में तैयार हो जाती है. इसमें 53 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है. ये किस्म फाइटोफ्थोरा अंगमारी, मेक्रोफोमिना तना एवं जड़ सडन रोग के प्रति सहनशील है.

तिल के बीज उपचार

तिल की बुवाई छिड़कवा विधि से की जाती है. वहीं कतारों में सीड ड्रिल का उपयोग करना चाहिए. प्रति एकड़ डेढ़ किलो से लेकर 3 किलो तक बीज की आवश्यकता होती है. बीज की बुवाई से पहले 2.5 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. बीचों का वितरण समान रुप से हो इसके लिए बीज को रेत, सूखी मिट्टी, अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें. कतार से कतार और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30x10 सेमी रखते हुए लगभग 3 सेमी की गहराई पर बीजों की बुवाई करनी चाहिए.

खेत की तैयारी

तिल की खेती के लिए खेत में खरपतवार बिल्कुल न रहें, इस बात का ध्यान रखें. खेत की अच्छी तरह से जुताई करें. दो से तीन जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा चला दें. इसके बाद गोबर की खाद डालें. खरपतवार नियंत्रण के लिए एलाक्लोर 50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद दो-तीन दिन के अंदर प्रयोग करना चाहिए.

उर्वरक

खेती की तैयारी के समय 80 से 100 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद मिलानी चाहिए. साथ प्रति हेक्टेयर 30 किलो नत्रजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलो गंधक डालें. 

तिल की खेती में सिंचाई कार्य

बारिश में तिल को सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है. जब तिल की फसल 50 से 60 प्रतिशत तैयार हो जाए तब एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए. यदि बारिश न हो तो जरुरत के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए.

रोग नियंत्रण

फिलोड़ी और फाईटोप्थोरा झुलसा रोग सबसे ज्यादा असर करता है. फिलोड़ी की रोकथाम के लिए बुवाई के समय कूंड में 10जी. 15 किलोग्राम या मिथायल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी 1 लीटर की दर से उपयोग करें और फाईटोप्थोरा झुलसा की रोकथाम के लिए 3 किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैन्कोजेब 2.5 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता के मुताबिक दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए.

यह भी पढें: Top Pea Variety: मटर की उन्नत किस्में, अधिकतम उत्पादन क्षमता 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

फसल की कटाई

तिल की पत्तियां पीली होने पर फसल की कटाई का सही समय होता है. पौधे सूखने पर डंडे या छड़ की सहायता से पौधों को पीटकर या हल्का झाड़कर बीज निकाल लेना चाहिए.

मुनाफा

एक एकड़ से सिंचित अवस्था में 400 से 480 किलोग्राम और असिंचित अवस्था में 200 से 250 किलो तक तिल का उत्पादन होता है. तिल का बाजारी मूल्य 10 से 15 हजार प्रति क्विंटल तक मिलता है. इसके अलावा सरकार हर साल तिल का समर्थन मूल्य भी तय करती है.

English Summary: Know the advanced varieties of sesame and farming techniques Published on: 02 December 2022, 12:34 PM IST

Like this article?

Hey! I am राशि श्रीवास्तव. Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News