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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किस प्रकार करें?

हरियाणा प्रदेश के लिये चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निम्नलिखित किस्मे ग्रीष्मकालीन मूंग की बीजाई के लिये अनुमोदित की हुई हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है :

KJ Staff
Moong Cultivation
Moong Cultivation

मूंग की खेती खरीफ, बसन्त, ग्रीष्मकालीन मौसम में की जा सकती है. मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है. फसल के पकने के समय साफ व खुश्क मौसम की आवश्यकता होती है.पकाव के समय वर्षा नुकसानदायक होती है

मूंग की खेती हेतु समुचित जल निकास वाली दोमट तथा हल्की दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है लेकिन ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता होती है.

ग्रीष्मकालीन मूंग की बीजाई के लिये मुख्य किस्में :

हरियाणा प्रदेश के लिये चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निम्नलिखित किस्मे ग्रीष्मकालीन मूंग की बीजाई के लिये अनुमोदित की हुई हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया है :

एम एच 318 :

इस किस्म को राज्य के सभी क्षेत्रों में खरीफ, बसंत व ग्रीष्मकालीन मौसम में बिजाई हेतु अनुमोदित किया गया है.यह कम समय (लगभग 60 दिन) में पकने वाली किस्म है.यह किस्म पीले पत्ते वाले मोजैक वायरस रोग एवं पत्तों के धब्बों का रोग व जलयुक्त झुलसा रोग (वेब ब्लाईट) के लिए मध्यम रोगरोधी है.इसके दाने आकर्षक, चमकीले  हरे तथा मध्यम आकार के होते है .इसकी बसंत व ग्रीष्मकाल में औसत पैदावार 4.0-4.75 क्विंटल प्रति एकड़ है.

एम एच 421

इस किस्म को भी राज्य के सभी क्षेत्रों में खरीफ, बसंत व ग्रीष्मकालीन मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.यह किस्म बहुत कम समय यानि 60 दिन में ही पक कर तैयार हो जाती है.इसकी फलियां झड़ती नहीं हैं.यह पीले पत्ते वाले मोजैक वायरस रोग एवं पत्तों के धब्बों का रोग व जलयुक्त झुलसा रोग (वेब ब्लाईट) के लिए अवरोधी है.इसका दाना आकर्षक एवं  चमकीला व हरा तथा मध्यम आकार का होता है.ग्रीष्मकाल में औसत पैदावार 4.0 -4.8 क्विंटल प्रति एकड़ है.

बसन्ती

इस किस्म को राज्य के सभी क्षेत्रों में खरीफ व बसंत (मार्च में बिजाई) मौसम में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.यह लंबी बढ़ने वाली किस्म है.इसका दाना अत्यधिक स्वादिष्ट एंव आकर्षक तथा अधिक प्रोटीन वाला होता है.इसकी 90 प्रतिशत फलियां एक साथ पक जाती हैं.यह लगभग 65 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.इसकी पैदावार 6 से 7 क्विंटल  प्रति एकड़ है.

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई का समय

ग्रीष्मकालीन मूंग की बिजाई का उत्तम समय पूरा मार्च है.इसके बाद इसकी बिजाई न करें वरना मानसून के आने से पहले फसल की कटाई नहीं हो सकेगी और मानसून की वर्षा से इसके नष्ट हो जाने का डर रहेगा.बिजाई के लिए 10 से 12 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ डालें तथा कतारों में फासला 20-25 सें.मी. रखें.

बीज उपचार

राइजोबियम टीके से बीज का उपचार

मूंग के लिए राइजोबियम कल्चर के टीके इसविश्वविद्यालय के माइक्रोबायलोजी विभाग एवं किसान सेवा केन्द्र से प्राप्त किये जा सकते हैं.एक टीका (50 मि.ली.) प्रति एकड़ बीज के लिए पर्याप्त है.एक खाली बाल्टी में 2 कप (200 मि.ली.)पानी में 50 ग्राम गुड़ घोलिये.एक एकड़ के बीज पर गुड़ का घोल डालें और ऊपर से राइजोबियम का टीका छिड़कें.बीजों को हाथ से अच्छी तरह मिला लें तथा बिजाई से पहले बीज को छाया में सुखा लें.जड़ गलन की रोकथाम के लिए बिजाई से पहले 4 ग्राम थाइरम प्रति किलो बीज की दर से सूखा बीजोपचार करें.

 ये खबर भी पढ़ें: Moong Crop: खेत में मूंग लगाकर हो जाएं मालामाल

ग्रीष्मकालीन मूंग में सिंचाई

ग्रीष्मकालीन मूंग में पलेवा के बाद पहली सिंचाई बिजाई के 20-22 दिन बाद करें तथा इसके बाद की सिंचाइयां 10-15 दिन बाद आवश्यकतानुसार करें.

निराई गुड़ाई व विरलीकरन

खरपतवारों की रोकथाम करने के लिए दो बार निराई-गोड़ाई करनी चाहिए.पहली निराई 20 से 25 दिनों बाद तथा दूसरी निराई 30 से 35 दिनों बाद जरूरी है. यदि खेत में पौधे ज्यादा हों तो पौधे से पौधे का अन्तर 10 सैं.मी. रखकर छंटाई करें.

ग्रीष्मकालीन मूंग के रोग

ग्रीष्मकालीन मूंग में साधारणतय किसी रोग या कीट की कोई समस्या नही होती किन्तु जड़ गलन का प्रकोप कहीं कहीं देखने को मिल जाता है इसमे रोगी पौधे पीले व सिकुड़े दिखाई देते हैं.रोग की अधिकता होने पर सारा पौधा नष्ट हो जाता है.इसलिए ग्रीष्मकालीन मूंग में जड़ गलन रोग से बचाव के लिये 4 ग्राम थाइरम प्रति किलो बीज की दर से सूखा बीजोपचार जरूर करें.

लेखक

सतीश कुमार एवं प्रोमिल कपुर

सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार

पौध रोग विभाग, कृषि महाविद्यालय , हिसार   

English Summary: Production technique of summer mung bean Published on: 02 March 2022, 04:20 PM IST

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