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चने की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन

चना रबी में उगाई जाने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है. अतः चने की उत्पादकता एवं उत्पादन को घटाने में कीटो एवं रोगो का महत्वपूर्ण स्थान है. कीटो के द्वारा चने की फसल को प्रतिवर्ष 20 से 30 प्रतिशत तक हानि होती है.

निशा थापा
कीटो के द्वारा चने की फसल को प्रतिवर्ष 20 से 30 प्रतिशत तक हानि होती है.
कीटो के द्वारा चने की फसल को प्रतिवर्ष 20 से 30 प्रतिशत तक हानि होती है.

भारत चने का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला विश्व का प्रमुख देश है. यहां विश्व का 70 प्रतिशत चना उत्पादन किया जाता है. भारत में प्रमुख चना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र हैं. बदलते मौसम के कारण कीटों का उचित समय पर प्रबन्धन कर अच्छा उत्पादन कर सकते हैं. रबी दलहनी फसलों में उत्पादन स्थिरता हेतु कीट का प्रबंधन ज़रूरी है.

चने की फसल के प्रमुख कीटः-

1. चने की सूंडी- (हेलिकोवरपा आर्मीजेरा)

क्षति का स्वरूपः यह एक बहुभक्षी कीट है, जो दलहन के अलावा अन्य फसलों में भी अत्याधिक क्षति करता है. इस कीट की हानिकारक अवस्था सूंडी होती है, जो हल्के हरे -भूरे रंग 3 से 5 सेमी लम्बी होती है, तथा शरीर के ऊपरी भाग पर भूरे रंग की धारियां पायी जाती हैं. वानस्पतिक अवस्था में सूंडी पत्ती एवं शाखाओं को खाती है लेकिन फलों की अवस्था में यह कली तथा फलियों में छेद करके नुकसान पहुंचाती हैं. फली को खाते समय प्रायः इसका सिर फली के अन्दर की तरफ तथा शरीर का भाग बाहर की तरफ लटका रहता है. एक सूंडी 30-40 फलियों को नुकसान पहुंचाती है.

जैविक प्रबन्धन: एन.पी .वी 250 से 500 LE को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

रसायनिक प्रबन्धन : इस्पाइनोसेड 45 एस. सी / @200 मिली॰/हेक्टेयर
इन्डोक्साकार्ब 14.5  एस. सी / @500 मिली॰ / हेक्टेयर
इयामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस. जी / @250 मिली॰/ हेक्टेयर
क्लोरेनट्रेनिप्रिओल 18ण्5 एस. सी / @200 मिली॰/ हेक्टेयर की दर से किसी एक का छिड़काव करे.

कटवा लट: (एग्रोटिस एपसिलॉन)

क्षति का स्वरूपः इस कीट की लटें रात्रि में भूमि से बाहर निकल कर छोटे-छोटे पौधों को सतह के बराबर से काटकर गिरा देती हैं. दिन में मिट्टी के ढेलों के नीचे छिपी रहती हैं.
इस कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भूमि में मिलाएं.

3. दीमक (ओडोन्टोटर्मिस ओबेसेस) - 

क्षति का स्वरूपदीमक चने के तने एवं जड़ों को छेदकर उसको नष्ठ कर देती है. जिससे पौधा सूख जाता है. यह सूखे की अवस्था में पौधो को नष्ट करती हैं.

प्रबन्धन - मानसून की पहली भारी वर्षा के बाद शाम के समय पंखधारी नर एवं मादा दीमक नई कालोनी बसाने के लिये बिजली के प्रकाश में बल्बों के पास हजारों की संख्या में मैथुन करने हेतु आते हैं. इन कीटों को नियन्त्रित करने के लिये बल्बों के नीचे जमीन पर मिथाईल पेराथियान 2 प्रतिशत धूल का बुरकाव कर देते हैं, जिससे मैथून उपरान्त पंख टूटने के बाद नर एवं मादा दीमक कीट जमीन पर गिरते हैं और बखेरे गये कीट नाशक के सम्पर्क में आकर मर जाते हैं.

खेत के आसपास उपस्थित दीमक के घरों (दीमकोलो) को नष्ट करके उनके ऊपर क्लोरपाइरिफॉस 20 ई0सी0 (4 मिली. प्रति लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें

सड़े हुए गोबर की खाद का प्रयोग करें एवं फसल कटने पर खेत की गहरी जुताई एवं फसल अवशेष नष्ट करें. दीमक प्रभावित खेत में सिंचाई की संख्या बढ़ाएं.

बेवेरिया बेसियाना की 5.0 किग्रा0 मात्रा 25-30 किग्रा0 सड़े हुए गोबर की खाद मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की तैयारी के समय खेत मे बखेर दें.

खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरिफॉस 20 ई0सी0 4 लीटर प्रति हेक्टेयर सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें. यदि फसल छोटी अवस्था में है तो उपरोक्त बताये गये किसी एक कीटनाशक की मात्रा को 50 किग्रा0 सूखे रेत में मिलाकर प्रति हे0 खेत मे बखेर कर सिंचाई कर दें.

4. तम्बाकू की सूंडी - (स्पोडोपटेरा लिटुरा)

क्षति का स्वरूपः इस कीट के लार्वा हरे मटमैले रंग के होते हैं व शरीर पर हरे पीले रंग की धारियां पायी जाती हैं. इस कीट की सूंडी चने की पत्तियों को नुकसान पहुंचाती हैं व उनके हरे पदार्थ को खाती हैं .

इस कीट का नियंत्रण: इस्पाइनोसेड 45 एस. सी की 1 मि0ली0 प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें.
नोवाल्युरोन 10 ईसी 1 मि0ली0 प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें.

चने की फसल में अन्य प्रबन्धन

कृषि प्रबन्धन:- चने की जुताई एवं बुवाई के लिए उचित नमी खेत में आवश्यक होती है. पलटुआ हल से अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए. बुवाई के लिये गहराई 5-7 सेमी॰ होनी चाहिए.

ये भी पढ़ेंः चना की खेती करने का तरीका और उन्नत किस्में

खरपतवार से बचाव:- 

खेत में विभिन्न प्रकार के खरपतवार होने से विभिन्न प्रकार के कीड़ों का सहवास होता है. जिससे ये फसल के अधिकतम समय में हानि पहुंचाकर नुकसान करते हैं. जिससे चने की बुवाई के 6-7 दिन पहले खरपतवार नाशक का प्रयोग कर नष्ट करना चाहिए.

लेखक -

अभिषेक यादव1, अनिल कुमार पाल2, मनोज कुमार 3

1 विषय वस्तु विशेषज्ञ (कीट/सूत्रकृमि विज्ञान), कृषि विज्ञान केन्द्र, सोहांव, बलिया -उत्तर प्रदेश

2 विषय वस्तु विशेषज्ञ (मृदा विज्ञान), कृषि विज्ञान केन्द्र, सोहांव, बलिया-उत्तर प्रदेश

3 विषय वस्तु विशेषज्ञ (जी. पी. बी), कृषि विज्ञान केन्द्र, सोहांव, बलिया-उत्तर प्रदेश

आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं पौ0 वि0वि0 कुमारगंज - अयोध्या- उत्तर प्रदेश

English Summary: Integrated pest management in gram crop Published on: 02 December 2022, 12:45 PM IST

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