मिर्च एक नकदी फसल होती है, जिसकी व्यवसायिक खेती करके अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है. यह भारतीय मसालों का प्रमुख अंग है, जिसमें विटामिन ए और सी समेत कई प्रमुख लवण पाए जाते हैं. इसकी खेती देश के कई क्षेत्रों में की जाती है. आज हम मिर्च की खेती करने वाले किसान भाईयों के लिए कुछ खास जानकारी लेकर आए हैं. दरअसल, कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी मिर्च में पर्ण कुंचन/कुकड़ा (chilli Leaf curl virus) (ChiLCV) एक विषाणु जनित रोग का लग जाता है. यह रोग बेगोमोवायरस वंश के अंतर्गत आता है. इसके प्रकोप से मिर्च की पत्तियां छोटी होकर मुड़ने लगती हैं, पत्तियों की शिराएं मोटी हो जाती हैं, पत्तियां मोटी दिखाई देने लगती है, पौधौं का विकास नहीं हो पाता है, पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देने लगते हैं, पौधों पर फल कम आते हैं. यह विषाणु जनित रोग सफेद मक्खी रोगग्रसित पौधों द्वारा दूसरे स्वस्थ पौधों तक भी पहुंचा जाता है. ऐसे में ज़रूरी है कि किसानों को मिर्च में पर्ण कुंचन रोग (chilli Leaf curl virus) का प्रंबंधन समय पर कर लेना चाहिए. इस संबंधी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गई है.
खेत की तैयारी
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ग्रीष्मकाल में खेत की गहरी जुताई ज़रूर करें.
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खेत की मेड़ पर साफ-सफाई रखें.
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खेत के आस-पास पुराने विषाणु ग्रसित मिर्च, टमाटर, पपीते के पौधों को नष्ट कर दें.
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अधिक बारिश में खेतों से जल निकास की उचित व्यवस्था रखें.
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स्वस्थ पौध तैयार करें
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पौधशाला को कीट अवरोधक जाली (40-50 मेश कीट अवरोधक नेट) के अंदर तैयार करें.
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पौध को प्रो ट्रे में कोकोपीट के जरिए तैयार करें.
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बीजों की बुवाई के लिए भूमि से 10 सेमी ऊंची उठी क्यारी बनाएं, जिसका आकार 3 x 1 मीटर होना चाहिए.
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पौधशाला को तैयारा करते समय 50 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी को 3 किलोग्राम पूर्णतया सड़ी गोबर हुई की खाद में मिलाकर प्रति 3 वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिला दें.
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बुवाई से पहले बीजों को मेटलैक्सिल-एम 31.8% ईएस 2 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें.
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इसके बाद इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्ल्यूएस @ 4-6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर लें.
पौध की खेत मे रोपाई कैसे करें
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35 दिन की आयु वाले पौध को रोपण करें.
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रस चूसक कीट के बचाव के लिए बुवाई से पहले पौध को इमिडाक्लोप्रीड 17.8% एसएल 7 मिली प्रति लीटर पानी के घोल में कम से कम 20 मिनट तक पौध की जड़ों को डुबाने के बाद बुवाई करें.
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पौध को खेत में उठी हुई बेड्स पर ड्रिप व प्लास्टिक मल्च (30 माइक्रोन मोटाई) तकनीक द्वारा लगाएं.
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खेत के आस-पास ज्वार मक्का की 2 से 3 कतारे लगाना अच्छा रहता है.
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फसल में रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर पर्णकुंचित पौधों को उखाड़कर गढ्ढे में डालकर नष्ट कर दें.
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सफेद मक्खी से बाचव के लिए पीले प्रपंच (चिपचिपे कार्ड) 10 प्रति एकड़ लगाना चाहिए.
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खड़ी फसल का पर्ण कुंचन रोग से बचाव
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रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें.
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रोग वाहक कीट सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए पायरीप्रॉक्सीफैन 10% ईसी 200 मिली लगभग 120 लीटर पानी में घोलकर छिडक दें.
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इसके अलावा फेनप्रोपेथ्रिन 30% ईसी 100-136 मिली लगभग 300-400 पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़क दें.
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या फिर पायरीप्रॉक्सीफैन 5% + फेनप्रोपथ्रिन 15% ईसी 200-300 मिली को लगभग 200-300 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें.
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ध्यान रहे कि कीटनाशकों का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर अदल-बदल करें. किसानों को एक ही कीटनाशक का उपयोग बार-बार नहीं करना है.
डॉ. एस. के. त्यागी, कृषि विज्ञान केंद्र, खरगौन, मध्य प्रदेश
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