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सुपारी की खेती के लिए उन्नत किस्मों की जानकारी

किसानों के लिए आज हम सुपारी की उन्नत किस्मों की जानकारी देने जा रहे हैं, जिसकी खेती से किसानों को बंपर उत्पादन मिलेगा....

निशा थापा
सुपारी की उन्नत किस्में
सुपारी की उन्नत किस्में

भारत में सुपारी का एक अलग ही महत्व है. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा-पाठ और किसी भी शुभ कार्य में सुपारी का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी सुपारी का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. साथ ही सुपारी का उपयोग उत्पादों के लिए किया जाता है. यही कारण है कि भारत के साथ-साथ विदेशों में भी सुपारी की मांग हमेशा बनी रहती है. अब मांग अधिक है तो स्पष्ट है कि किसानों को इसकी खेती से लाभ अर्जित हो सकता है. इसी को देखते हुए आज हम किसानों को सुपारी की उन्नत किस्मों की जानकारी देने जा रहे हैं.

सुपारी की न्नत किस्में:

मंगला (वीटीएल 3)

यह सेमी-लॉन्ग टाइप है और रोपण के 3-5 साल बाद फल देना शुरू कर देता है. यह किस्म खेती के लिए काफी उपयुक्त है जैसे जल्दी फल देना, अच्छी उपज आदि. इसकी प्रति वर्ष औसत उपज 2 किलो चली (10 किलो पके मेवा) प्रति ताड़ है. इस किस्म की सुपारी में अच्छी गुणवत्ता पाई जाती है.

सुमंगला (वीटीएल 11)

इस किस्म की औसत उपज 33 किग्रा पाम/वर्ष है. सुपारी की यह किस्म बिलिंग नेमाटोड, रेडोपकोलस उपमाओं के प्रति सहिष्णु है.

 

श्रीमंगला (वीटीएल 17)

श्रीमंगला (वीटीएल 17) की वार्षिक औसत उपज 3.1 किग्रा चाली (15.6 किग्रा कच्ची मेवा)/ताड़/वर्ष है. इस किस्म को आप कहीं भी आसानी से उगा सकते हैं.

दक्षिण कनक

कर्नाटक के दक्षिण कनारा जिले और केरल के कसारगोड जिले  में इस किस्म को बड़े पैमाने पर उगाया जाता है, जिसके चतले इस किस्म का नाम दक्षिण कनक है. इस किस्म की सारी सुपारियां बड़ी तथा एकसमान होती हैं. इसकी औसत उपज 1,5 चाली/पाम/वर्ष (7 किग्रा पके हुए मेवे) है.

 तीर्थहली

तीर्थहली सुपारी की खेती कर्नाटक के मालंद क्षेत्र में बड़े पैमाने पर की जाती है. इसकी उपज दक्षिण कनक के बराबर ही है.

श्री वर्द्धन या रोठा

इसकी खेती मुख्य रूप से तटीय महाराष्ट्र में की जाती है. सुपारी आकार में अंडाकार होती है. साथ ही इस किस्म से प्रति वर्ष 1.5 किलो चाली (7 किलो पके हुए मेवे) उपज प्राप्त की जा सकती है. कटने पर गुठली का रंग मार्बल सफेद होता है. इसका एंडोस्पर्म अन्य किस्मों की तुलना में स्वादिष्ट होता है. इस किस्म की बुवाई के 6-7 वर्ष बाद यह फल देने के लिए तैयार हो जाता है.

ये भी पढ़ेंः सुपारी की खेती में धांसू कमाई, एक बार पेड़ लगाने पर 70 साल तक होगी कमाई

मेट्टुपलयम

मेट्टुपलयम सुपारी की किस्म की खेती तमिलनाडु के मेट्टुपलयम क्षेत्र में व्यापक रूप से की जाती है. इसका आकार बहुत छोटा होता है.

English Summary: Information about improved varieties for betel nut cultivation Published on: 20 March 2023, 02:41 PM IST

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