मिर्च की फसल में सबसे अधिक नुकसान पत्तियों के मुड़ने वाले रोग से होता है. यह रोग वायरस/ विषाणुजनित होता है जिसे फैलाने का कार्य रस चूसने वाले छोटे-छोटे कीट करते है. ये रसचूसक कीट अपनी लार के माध्यम से या सम्पर्क के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान यह रोग फैलाते है. विभिन्न क्षेत्रों में इस रोग को चुरड़ा-मुरड़ा रोग या माथा बंधना रोग से नाम से जाना जाता है.
रोग का कारण व लक्षण
मिर्च की फसल में यह रोग मुख्यत थ्रिप्स या सफेद मक्खी नामक कीट के प्रकोप के कारण होता है जिससे मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव का आकार धारण कर लेती है तथा जिसके कारण पत्तियां सिकुड़ जाती है और पौधा झाड़ीनुमा दिखने लगता है. पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं. रोगी पौधों में फूल कम आते हैं. रोग की तीव्रता में पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है.
इससे रोग से प्रभावित पौधों में फल भी नहीं लग पाते है और उत्पादन में भारी कमी देखने को मिलती है.
बचाव के उपाय:
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इस रोग से बचाव के लिए खेत में और आस पास का क्षेत्र खरपतवार मुक्त रखें ताकि कीट यहाँ शरण और वृद्धि न कर सके.
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फसल में किसी प्रकार के कीट का प्रकोप ना होने दें क्योंकि पत्ते मुड़ने की समस्या वाला यह रोग कीटों के प्रकोप के कारण ही होता है.
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इस रोग का लक्षण देखते ही प्रभावित पौधे को उखाड़ कर फेंक दें और खेत को खरपतवार से मुक्त रखें.
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पौधशाला को कीट अवरोधक जाली (40-50 मेश कीट अवरोधक नेट) के अंदर तैयार करें.
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मिर्च की पौधशाला की तैयारी के समय 50 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी को 3 किलोग्राम पूर्णतया सड़ी गोबर हुई की खाद में मिलाकर प्रति 3 वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलाएं.
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खेत में सफेद मक्खी की निगरानी के लिए पीले प्रपंच (चिपचिपे कार्ड) 10 प्रति एकड़ लगाना चाहिए.
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इस रोग के प्रबंधन के लिए स्पीनोसेड़ 45 SC नामक कीटनाशी की 75 मिली मात्रा या फिप्रोनिल 5% SC की 400 मिली मात्रा या एसिटामिप्रीड 20% SP की 100 ग्राम मात्रा या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 8% SP की 400 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव कर दे.
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कीटनाशकों का 14 दिन के अंतराल पर अदल बदल कर छिडकाव करना चाहिए और कीटनाशकों का छिड़काव फल बनने की अवस्था तक ही करें. एक ही कीटनाशक का बार बार उपयोग नही करें.
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जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें.
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प्रतिरोधक किस्मो जैसे- पूसा ज्वाला, पन्त सी-1, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल इत्यादी को लगाएं.
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खेतों में पानी ज्यादा देर तक जमा नहीं होने देना चाहिए अतः जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए.
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मिट्टी परीक्षण के अनुसार संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का उपयोग करें.
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