मध्यप्रदेश के किसानों के लिए गेहूं की पूसा तेजस (Pusa Tejas Wheat) किस्म किसी वरदान से कम नहीं है. गेहूं की यह किस्म दो साल पहले ही किसानों के बीच आई है. हालांकि इसे इंदौर कृषि अनुसंधान केन्द्र ने 2016 में विकसित किया था.
इस किस्म को पूसा तेजस एचआई 8759 के नाम से भी जाना जाता है. गेहूं की यह प्रजाति आयरन, प्रोटीन, विटामिन-ए और जिंक जैसे पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत मानी जाती है. यह किस्म रोटी के साथ नूडल्स, पास्ता और मैकराॅनी जैसे खाद्य पदार्थ बनाने के लिए उत्तम हैं. वहीं इस किस्म में गेरुआ रोग, करनाल बंट रोग और खिरने की समस्या नहीं आती है. इसकी पत्ती चौड़ी, मध्यमवर्गीय, चिकनी एवं सीधी होती है. तो आइए जानते हैं कैसे करें गेहूं की पूसा तेजस किस्म की खेती...
खेत की तैयारी (Farm Preparation)
इसके लिए तीन साल में एक बार ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई की जाती है. इसके बाद बुवाई से पहले काली भारी मिट्टी को भूरभूरा बनाने के लिए रोटावेटर का उपयोग करें.
बुवाई का सही समय (The right time for sowing)
पूसा तेजस की बुवाई का सही समय 10 नवंबर से लेकर 25 नवंबर तक होता है.
बीज की मात्रा (Seed quantity)
गेहूं की पूसा तेजस किस्म में कल्ले की अधिकता होती है. इसके पौधे में 10 से 12 कल्ले होते हैं, इसलिए प्रति एकड़ बीज की मात्रा 50-55 किलो, प्रति हेक्टेयर 120-125 किलो तक ली जा सकती है. वहीं प्रति बीघा में 20 से 25 किलो का बीज ले सकते हैं.
बीजोपचार (Seed treatment)
बुवाई से पहले बीजों को अच्छे से उपचारित कर ले लेना चाहिए. बीजोपचार के लिए कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत, कार्बनडाजिम 50 प्रतिशत 2.5-3.0 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के लिए पर्याप्त होती है. पौधों को कण्डवा रोग से बचाव के लिए टेबुकोनाजोल 1 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें. पीएसबी कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें. इससे फास्फोरस की उपलब्धता में इजाफा होता है.
बोने की विधि (Sowing method)
इसकी बुवाई सीड्रिल की सहायता से की जाती है. कतार से कतार की दूरी 18-20 सेंटीमीटर की होती है. वहीं इसे जमीन के अंदर 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डाला जाता है.
खाद एवं उर्वरक (Fertilizers and fertilizers)
अच्छी उपज के लिए 120 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर, 60 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर और 30 से 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए. जड़ों के अच्छे विकास के लिए माइकोराइजा का प्रयोग करना चाहिए. यह फोस्फोरस, नाइट्रोजन एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को अवषोषित करने में मदद करता है. इससे पैदावार में भी बढ़ोत्तरी होती है. वहीं कई रोगों से भी यह पौधों की सुरक्षा करता है.
सिंचाई (Irrigation)
गेहूं की इस किस्म के लिए 3 से 5 सिंचाई की आवष्यकता पड़ती है. जिसमें किसानों को अच्छी पैदावार होती है.
निराई-गुड़ाई (Weeding)
अच्छी और अधिक पैदावार के लिए किसानों को गेहूं की फसल से खरपतवार निकाल देना चाहिए. दरअसल, जैसे-जैसे गेहूं का पौधा बढ़ा होता है, वैसे-वैसे खरपतवार भी तेजी से विकसित होती है जो पौधे के विकास में बाधा बनते हैं.
समय अवधि (Time period)
गेंहू की यह किस्म 115-125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसका दाना कड़क और चमकदार होता है. एक हजार दानों का भार से 50 से 60 ग्राम होता है. एक हेक्टेयर से इसकी 65 से 75 क्विंटल की पैदावार ली जा सकती है.
कहां से लें बीज (Where to get seeds)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, इंदौर पता : डेली कॉलेज रोड, एग्रीकल्चर कॉलेज, कृषि नगर, इंदौर, मध्य प्रदेश-452001
फ़ोन: 0731 270 2921
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