देश में अधिकतर किसान खरीफ मौसम में अरबी की खेती (Arbi ki kheti) करते हैं. इसको घुईया और कुचई के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खेती मुख्यतः कंद के रुप में होती है. इसकी पत्तियां और कंदों, दोनों में एक प्रकार का कैल्शियम ऑक्जीलेट पाया जाता है, जिसकी वजह से खाते समय मुंह और गले में खुजलाहट होती है. इस तत्व की मात्रा किस्मों पर आधारित होती है. अरबी कार्बोहाइड्रेट,और प्रोटीन, विटामिन ए, फास्फोरस, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है, इसलिए यह रोगियों के लिए काफी फायदेमंद है. इसका आटा बच्चों के लिए गुणकारी माना जाता है. ऐसे में किसानों को इसकी खेती अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है. अगर किसान आधुनिक तकनीक से अरबी की खेती करें, तो उन्हें फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त होगी. आइए आज किसान भाईयों को इसकी खेती से अधिक पैदावार प्राप्त करने की तकनीक बताते हैं.
उपयुक्त जलवायु
इस फसल के लिए गर्म और नम, दोनों तरह की जलवायु की आवश्यकता पड़ती हैं. इसकी खेती के समय लगभग 21 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान चाहिए होता है.
मिट्टी का चुनाव
इसकी खेती के लए बलुई दोमट उपयुक्त मानी जाती है. इसके अलावा दोमट और चिकनी दोमट में भी फसल की बुवाई कर सकते हैं, लेकिन जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए.
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खेत की तैयारी
फसल की बुवाई के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इसके बाद दूसरी जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरीभुरी बना लें.
उन्नत किस्में
किसान इंदिरा अरबी 1, श्रीरश्मि, पंचमुखी, व्हाइट गौरेइया, नरेन्द्र अरबी, श्री पल्लवी, श्रीकिरण, सतमुखी, आजाद अरबी, मुक्ताकेशी समेत बिलासपुर अरूम उन्नत किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
बीज की मात्रा
बीजों की मात्रा किस्म, कंद के आकार और वजन पर निर्भर होती हैं. सामान्य रूप से 1 हेक्टेयर में बुवाई के लिए 15 से 20 क्विटल कंद बीज की आवश्यकता होती हैं.
बीज उपचार
इसके लिए रिडोमिल एम जेड- 72 की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम कंद की दर से उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा कंदों की बुवाई से पहले फफूंदनाशक के घोल में 10 से 15 मिनट डुबाकर रखना चाहिए.
बीज की बुवाई
अरबी की बुवाई जुलाई में आसानी से कर सकते हैं. यह समय फसल की बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. इसकी बुवाई 8 से 10 सेंटीमीटर गहरी नालियों में 60 से 65 सेंटीमीटर के अंतराल पर करना चाहिए.
खाद और उर्वरक
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भूमि तैयार करते समय 15 से 25 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद आखिरी जुताई के समय मिला दें.
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रासायनिक उर्वरक नत्रजन 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते हैं.
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फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते हैं.
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बुवाई के 1 महीने बाद क नत्रजन का उपयोग करके निराई-गुड़ाई के साथ करें, साथ ही पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें.
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सिंचाई प्रबंधन
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सिंचित अवस्था में फसल की सिंचाई 7 से 10 दिन के अंतराल पर 5 महीने तक करें.
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अगर बारिश न हो, तो साधन उपलब्ध होने पर सिंचाई अवश्य कर दें.
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खुदाई के 1 महीने पहले सिंचाई बंद कर दें.
फसल की खुदाई
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बारिश पर आधारित फसल 150 से 175 दिन में तैयार हो जाती है.
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सिंचित अवस्था की फसल 175 से 225 दिनों में तैयार हो जाती हैं.
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कंद रोपण के 40 से 50 दिन बाद पत्तियां कटाई के लिए तैयार हो जाती है.
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कंद पैदावार के लिए रोपित फसल की खुदाई जब पत्तियां छोटी और पीली पड़कर सूखने लगे, तब खुदाई करनी चाहिए.
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खुदाई के बाद अरबी के मातृ कंदों और पुत्री कंदिकाओं को अलग कर देना चाहिए.
पैदावार
अगर बारिश पर आधारित फसल है, तो इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 25 टन पैदावार प्राप्त हो सकती है. इसके अलावा सिंचित अवस्था वाली फसल लगभग 25 से 35 टन प्रति हेक्टेयर कंद पैदावार प्राप्त होती हैं. अगर पत्तियों की कटाई लगातार की जा रही है, तो कंद और कंदिकाओं की पैदावार लगभग 6 से 8 टन तक प्रति हेक्टेयर हो सकती है. इसके साथ ही प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन हरी पत्तियों की पैदावार मिल सकती है.
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