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Water Conservation Techniques: झारखंड के किसान अपना रहे जल संरक्षण की ये 3 तकनीक, आप भी जरूर पढ़िए

कृषि क्षेत्र के लिए पानी बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके बिना किसान फसलों की सिंचाई (Irrigation of Crops) नहीं कर सकते हैं. अगर बारिश के मौसम को छोड़ दें, तो सालभर किसानों को सिंचाई (Irrigation)के लिए बोरिंग, कुएं, तालाब या नदी पर निर्भर रहना पड़ता हैं. मगर अब जल स्त्रोतों का काफी दोहन किया जा रहा है, इसलिए पानी की समस्या आने लगी है.

कंचन मौर्य
Water Conservation
Water Conservation

कृषि क्षेत्र के लिए पानी बेहद जरूरी है, क्योंकि इसके बिना किसान फसलों की सिंचाई (Irrigation of Crops) नहीं कर सकते हैं. अगर बारिश के मौसम को छोड़ दें, तो सालभर किसानों को सिंचाई (Irrigation)के लिए बोरिंग, कुएं, तालाब या नदी पर निर्भर रहना पड़ता हैं. 

मगर अब जल स्त्रोतों का काफी दोहन किया जा रहा है, इसलिए पानी की समस्या आने लगी है. इस समस्या का सामना झारखंड के किसानों को भी करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण भूगर्भ जल का नीचे जाना भी है. इस वजह से जल के पांरपरिक स्त्रोत सूखते जा रहे हैं, इसलिए राज्य के किसान धीरे-धीरे जागरूक भी हो रहे हैं और जल संरक्षण की विभिन्न तकनीकों को अपना रहे हैं.

आइए आपको बताते हैं कि झारखंड के किसान किन तकनीकों की मदद से पानी संरक्षित कर फसलों की सिंचाई (Irrigation of Crops) करते हैं.

खेत में ट्रेंच (Trench in the Field)

खेत में ट्रेंच के लिए 2 फीट गड्ढ़े की खुदाई की जाती है, जो कि 2 फीट चौड़ा होता है. इसकी मदद से वाटर लॉगिंग हो जाता है, तो वहीं कुछ पानी दूसरे हिस्से में चला जाता है. आमतौर पर जब गर्मियों के दिन खत्म होने के बाद बारिश का मौसम शुरू होता है, तो पानी खेत से मिट्टी की उपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहाकर ले जाता है.

इस वजह से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है. इस तकनीक के तहत खेत से मिट्टी बहकर किनारे के गड्ढ़े में जाकर जमा हो जाती है. इसके बाद किसान पानी का छिड़काव खेत में करते हैं. बता दें कि झारखंड के रांची जिले के किसान इस तकनीक का खूब इस्तेमाल करते हैं.

लूज बोल्डर स्ट्रक्चर (Loose Boulder Structure)

सिंचाई की इस तकनीक को ऊँची पहाड़ी तराई पर खेती करने वाले किसान अपनाते हैं. ऐसे में झारखंड की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए लूज बोल्डर स्ट्रक्चर तकनीक (Loose Boulder Structure) काफी कारगर साबित हुई है. जब पहाड़ों से पानी नीचे गिरता है, तो यह ढ़लान में झरने का रूप ले लेता है, जिसे कई जगहों पर चेक डैम बनाकर रोका जाता है. 

पहाड़ों में चेक डैम का निर्माण मौजूद पत्थरों से होता है. इसकी खास बात यह है कि पहाड़ की मिट्टी का कटाव कम होता है, साथ ही पानी जमने की वजह से संचयन जमीन में होता है. इसके अलावा भूगर्भ जलस्तर बढ़ता है.

इस तरह पहाड़ की तराई में मौजूद तालाब में सालभर पानी बना रहता है. झारखंड के आदर्श ग्राम आरा केरम में इस तकनीक का बेहतर इस्तेमाल किया गया है.

टीसीबी और वैट बनाकर (Making TCB and VAT)

वर्तमान में  झारखंड में जल संरक्षण के लिए मनरेगा द्वारा टीसीबी पर काम चल रहा है. यह जल संरक्षण का एक सफल मॉडल है, जिसका लाभ कई राज्यों के किसान ले रहे हैं. इस तरह भूगर्भ जल स्तर में काफी सुधार हुआ है, जिससे किसान अच्छी तरह खेती कर पा रहे हैं. इसी तरह का मॉडल वैट (Water Absorbing trench) भी है. इसके अलावा किसानों के लिए तालाब और डोभा भी बहुत लाभकारी है.

जल संरक्षण की उपयुक्त तकनीक झारखंड के किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो रही हैं. बता दें कि कई बार किसानों की फसलों की सिंचाई वक्त रहते नहीं हो पाती है, क्योंकि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की उचित व्यवस्था नहीं मिलती है. इस कारण फसलों को काफी नुकसान भी होता है. मगर उपयुक्त तकनीक से किसान जल संरक्षण कर खेतों में पानी का छिड़काव कर सकते हैं. 

English Summary: farmers of jharkhand irrigate by adopting 3 techniques of water conservation Published on: 31 August 2021, 04:41 PM IST

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