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आड़ू की खेती से हो रही किसानों को अच्छी आमदनी, जानिए उन्नत खेती का तरीका

देश के किसान बदलते दौर में अब ये समझने लगे हैं कि खेती सिर्फ पारंपरिक फसलों की नहीं बल्कि अन्य फसलों की भी करनी चाहिए, ताकि खेती से अच्छी आय हो सके, कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके, इसलिए अब किसान गेहूं, धान जैसी पारंपरिक फसलों की जगह फल, सब्जी और औषधीय पौधों पर भी ध्यान दे रहे हैं, ऐसे में आपको आड़ू फल की खेती की जानकारी दे रहे हैं.

राशि श्रीवास्तव
आड़ू की खेती
आड़ू की खेती

आड़ू एक फलदार पर्णपाती पेड़ है, जिसकी गिनती गुठली वाले फलों में होती है, आड़ू के ताजे फलों को खाया जाता है साथ ही आड़ू से कैंडी, जैम और जैली जैसी चीजें भी बनाई जाती हैं. इसके फल में शक्कर की मात्रा ज्यादा होती है जिस कारण इसका फल अधिक स्वादिष्ट और रसीला होता है. इसके अलावा आड़ू की गिरी के तेल का इस्तेमाल कई प्रकार के कॉस्मेटिक उत्पाद और दवाईयां बनाने में होता है, इसमें लोहे, फ्लोराइड और पोटाशियम की भरपूर मात्रा होती है, आड़ू की डिमांड ज्यादा होने से इसकी खेती लाभदायक है.

उपयुक्त जलवायु- आड़ू की खेती के लिए जलवायु ज्यादा ठंडी और ज्यादा गर्म नहीं होनी चाहिए और  इस फसल को कुछ निश्चित समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान की जरूरत होती है. सर्दी में देर में पाला पड़ने वाली जगह पर खेती उपयुक्त नहीं मानी जाती. आड़ू की खेती मध्य पर्वतीय क्षेत्र, घाटी, तराई और भावर क्षेत्रों के सबसे अनुकूल है.

भूमि का चयन- आड़ू की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी बलुई दोमट है पर गहरी और उत्तम जल निकासी वाली होनी चाहिए साथ ही मिट्टी का पीएच मान 5.5-6.5 तक हो और काफी जीवांशयुक्त होना जरूरी है. 

खेत की तैयारी- आड़ू की खेती या बागवानी करने के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताई आड़ी तिरछी देशी हल या अन्य यंत्र से करना चाहिए. इसके बाद खेत को समतल बना लेना चाहिए और रोपाई या बुवाई से 15-20 दिन पहले 1 x 1 x 1 मीटर के गड्ढे खोद कर धूप में छोड़ देना चाहिए, फिर 15-25 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद 125 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस, 100 पोटाश और 25 मिलीलीटर क्लोरपाइरीफॉस के मिश्रण से गड्ढों को भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी दबकर ठोस हो जाए. 

बुवाई का समय- आड़ू के पेड़ों को सर्दी के मौसम में लगाना अच्छा माना जाता है, इसलिए इसके पौधों को दिसम्बर और जनवरी महीने में उगाना चाहिए. इसके अलावा अधिक ठंडे पर्वतीय प्रदेशों में इन्हें फरवरी महीने में भी उगा सकते हैं.

पौधारोपण- बुवाई के लिए सबसे पहले गड्ढों के बीचो-बीच एक छोटे आकार का गड्ढा बनाएं, छोटे गड्ढे तैयार करने के बाद उन्हें बाविस्टिन या गोमूत्र से उपचारित करें, फिर पौधों को गड्ढों में लगाने के बाद उनके चारों तरफ जड़ से एक सेंटीमीटर ऊंचाई तक मिट्टी डालकर अच्छे से दबा देना चाहिए, बुवाई के लिए पौधों के बीच 6 x 6 मीटर की दूरी रखना चाहिए. 

सिंचाई- आड़ू के पौधों की रोपाई के तत्काल बाद पानी देना चाहिए. फूलों के अंकुरण, कलम लगाने की अवस्था, फलों के विकास के समय फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. आड़ू की खेती में सिंचाई के लिए ड्रीप सिंचाई विधि बहुत अधिक फायदेमंद मानी जाती है. 

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फल तुड़ाई और पैदावार- अप्रैल से मई में आड़ू की फसल के लिए मुख्य फल तुड़ाई का समय होता है इनका बढ़िया रंग और नरम गुद्दा पकने के लक्षण हैं, आड़ू की तुड़ाई पेड़ को हिला कर की जाती है. वहीं सामान्य परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 90-150 क्विंटल तक आड़ू की उपज मिलती है.

English Summary: Farmers are getting good income from peach cultivation, know the method of advanced farming Published on: 09 March 2023, 02:12 PM IST

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