हमारे देश के हर घर में हींग का उपयोग किया जाता है. इसका मसालों में ही नहीं, बल्कि दवाइयों में भी इस्तेमाल होता है. इसकी खेती अफगानिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ब्लूचिस्तान आदि देशों में होती है. दुनियाभर में पैदा होने वाली हींग का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ भारत इस्तेमाल करता है, लेकिन फिर भी हमारे देश में हींग का उत्पादन न के बराबर है.
आपको बता दें कि भारत में हींग का बाजार बहुत ही ज्यादा है. इसकी कीमत प्रति क्विंटल तकरीबन 30 से 40 हजार तक होती है, लेकिन आज भी हमारा देश हींग की खेती में पीछे है. अगर हमारे देश के किसान हींग की खेती करने लगे, तो उनकी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हो सकती है, मगर अफसोस की बात है कि हर साल हींग के आयात पर करोड़ों रुपए की विदेशी करंसी लगती है, फिर भी किसी भी सरकार या कृषि विश्वविद्यालय ने इसकी खेती करने पर विचार नहीं किया है. इसके कई मुख्य कारण हैं. लेकिन भरत के कई राज्यों में इसकी खेती कर सकते हैं, जो आज हम अपने इस लेख में बताने जा रहे हैं.
हींग की खास जानकारी (Asafoetida special information)
यह एक सौंफ प्रजाति का पौधा है, जिसकी लम्बाई 1 से 1.5 मीटर तक होती है. यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं. पहली दुधिया सफेदस जिसको काबूली सुफाइद कहा जाता है. दूसरी लाल हींग, इसमें सल्फर होता है, इसलिए इसकी गंध बहुत तीखी होती है. इसके भी तीन टिमर्स, मास और पेस्ट रूप होते है. यह गोल, पतला राल के रूप में होता है. हींग का पौधा जीरो से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान सहन कर सकता है, इसलिए इसकी खेती के लिए पहाड़ी क्षेत्र, अरुणाचल प्रदेश और रेगिस्तान में की जा सकती है.
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी (Suitable climate and soil)
इसकी खेती के लिए रेत, दोमट या चिकनी मिट्टी का मिश्रण अच्छा माना जाता है. ध्यान दें कि मिट्टी को अच्छी तरह से सूखा लेना चाहिए. इसकी खेती 20 से 35 सेलिसियस तापमान में अगस्त के महीने में की जाती है.
खेती करने की जगह (Farming area)
इसकी खेती के लिए ऐसी जगह चाहिए, जहाँ सूरज सीधे जमीन के साथ संपर्क करता हो, क्योंकि हींग की फसल को सूर्यप्रकाश की प्रचुर आवश्यकता होती है, इसलिए इसे छायादार क्षेत्र में नहीं उगाया जा सकता है.
रोपण (Planting)
इसकी खेती में पौधे को बीज के माध्यम से प्रचारित किया जाता है. हर बीज के बीच लगभग 2 फीट की दूरी होनी चाहिए और इन्हें मिट्टी के साथ प्रत्यारोपित करना चाहिए. इसके बीजों को शुरू में ग्रीन हाउस में बोया जाता है. इसके बाद अंकुरण की अवस्था में खेत में स्थानांतरित कर दिया जाता है. वैसे इस फसल को आत्म उपजाऊ माना जाता है और कीट द्वारा परागण के माध्यम से भी प्रचारित किया जाता है।
फसल का अंकुरण (Crop germination)
जब बीज ठंडी और नम जलवायु परिस्थितियों के संपर्क आए, तो अंकुरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
सिंचाई (Irrigation)
हींग की फसल में नमी के लिए उंगलियों से मिट्टी का परीक्षण करने के बाद फसल को पानी दिया जाता है. अगर मिट्टी में नमी नहीं है, तो सिंचाई करें. ध्यान दें कि खेत में पानी का जमाव न हो, क्योंकि इससे फसल को नुकसान हो सकता है.
कटाई (Harvesting)
हींग की फसल लगभग 5 साल में पेड़ की ओर बढ़ती है, साथ ही पौधों की जड़ों और प्रकंदों से लेटेक्स गम सामग्री प्राप्त होती है. इसके पौधों की जड़ों के बहुत करीब से काटकर सतह के संपर्क में लाया जाता है, जो कटे हुए स्थान से दूधिया रस का स्राव करता है. ध्यान दें कि जब यह पदार्थ हवा के संपर्क में आने से कठोर होता है. इसके बाद ही इसको निकाला जाता है. जड़ का एक और टुकड़ा अधिक गोंद राल निकालने के लिए काटा जाता है.
क्या हैं मुश्किलें (What are the odds)
इसकी खेती आसान नहीं होती है, क्योंकि इसका बीज बहुत मुश्किल से मिलता है. इसका बीज किसी विदेशी को बेचने पर मौत की सजा तक सुनाई जा सकती है.
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