सरदार वल्लभभाई भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति को एक किसान ने ग्राम उपैडा जिला हापुड़ से शिकायत की, कि उसके खेत में काला नमक धान की प्रजाति लगा रखी है और उसमें बीमारी के कारण फसल खराब हो रही है. इस बात की शिकायत जैसे ही कुलपति डॉक्टर के के सिंह को मिली, उन्होंने वैज्ञानिकों का एक दल गठित कर प्रोफेसर रामजी सिंह डीन पीजीएस के निर्देशन मे धान देखने के लिए उपैडा भेजी.
टीम ने भली-भांति उपैडा गांव मे खेतों का भ्रमण किया और वहां पर पाया की धान की फसल में भूरा फूदका, तना छेदक, पत्ती लपेटक व धान का झोंका (ब्लास्ट) रोग फसल पर लगा हुए है. वैज्ञानिकों ने प्रगतिशील किसान सुधाकर कश्यप को वैज्ञानिक सलाह दी तथा फसल पर लगी हुई बीमारी और कीटों से नियंत्रण के लिए आवश्यक सुझाव एवं कीट रोगों के उचित प्रबंधन हेतु दवाई बताई जिससे जल्द से जल्द उनकी फसल को बचाया जा सके. भूरा फुदका कीट के प्रभाव से धान के पौधे सूख कर सडन अवस्था मे पहुंच जाते हैं व पौधे सूख कर पुआल बन जाते हैं.
भूरा फुदका कीट का प्रबंधन निम्नलिखित उपायों से कर सकते हैं
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प्रभावित खेत मे यूरिया का प्रयोग न करे व खेत से पानी निकाल दें तथा चार से पॉंच दिन तक सिंचाई न करें
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नीम की गुठली का 5%अर्क 10 लीटर प्रति एकड की दर से प्रयोग करें
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डाईनोटेफुरान 20 एस जी की 200 ग्राम या पाईमेट्रोजिन 50 WG की 300 ग्राम मात्रा को 150-200 लीटर पानी के साथ घोल बना कर प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल मे छिडकाव करें.
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तना छेदक प्रभावित पौधे का अग्र भाग व बाली पूरी करह सूख जाता है तथा दाने मे चावल नही बनते.
तना छेदक कीट के प्रबंधन हेतु
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कार्टाप हाइड्रोक्लोराइड 4G की 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें
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क्लोरेन्ट्रियानीलीप्रोल 0.4% जी आर की 10 kg मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करे
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फिप्रोनिल 0.6% जी आर की 10 kg मात्रा प्रति हेक्टेयर
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क्लोरेन्ट्रियानीलीप्रोल 18.5 SC नामक दवा की 150 मि ली मात्रा 150-200 लीटर पानी मे प्रति हेक्टेयर
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फ्लूबेंडामाइड 39.35 SS नामक दवा की 50 मी ली मात्रा 150-200 लीटर पानी मे प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें.
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झोंका रोग प्रभावित पौधे की पत्ती पर ऑंख या नाव के आकार के धूसर भूरे रंग के धब्बे बनते हैं तथा बाली की डल पर भी इसी प्रकार के गहरे भूरे धब्बे बनते हैं. प्रभावित बाली मे दाने नही बनते हैं.
धान मे झोंका रोग प्रबंधन हेतु
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कार्बेंडाजिम की 1 kg मात्रा 800-1000 लीटर पानी मे प्रति हेक्टेयर
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ट्राइसाइक्लाजोल की 1 Kg मात्रा 800-1000 लीटर पानी मे मे प्रति हेक्टेयर
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हेक्साकोनाजोल की 1 kg मात्रा 800-1000 लीटर पानी मे घोल बना कर छिडकाव करें.
खेत का भ्रमण करने वाले वैज्ञानिकों के दल में प्रोफेसर रामजी सिंह, अधिष्ठाता स्नातकोत्तर महाविद्यालय, प्रोफेसर कमल खिलाड़ी, विभागाध्यक्ष पादप रोग विज्ञान विभाग तथा डॉ राजेंद्र सिंह ,सह प्राध्यापक कीट विज्ञान विभाग शामिल थे . वैज्ञानिकों की टीम ने भ्रमण के उपरांत फसल तथा रोग एवं कीट की पूरी रिपोर्ट तैयार कर कुलपति को सौंपी .
बता दे अभी हाल ही में प्रोफेसर के के सिंह ने सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति का कार्यभार संभाला है एवं कार्यभार संभालते ही उन्होंने किसानों की समस्याओं और उनके निदान हेतु कदम उठाने प्रारंभ कर दिए हैं. इसी को देखते हुए उन्होंने सबसे पहले किसानों के खेतों पर लगे कीट और रोग की पहचान व त्वरित निदान के लिए तुरंत वैज्ञानिकों का एक दल भेजा जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की फसलों को किसी गंभीर बीमारी एवं कीट से बचाया जा सके. कुलपति डॉक्टर के के सिंह का कहना है की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बासमती धान की खेती की जाती है और इसका काफी मात्रा में एक्सपोर्ट भी होता है , इसलिए इस फसल को बचाने के लिए जहां तक संभव होगा कम से कम रासायनिक खादो एवं दवाइयों का प्रयोग करने का सुझाव किसानों को दिया जाएगा जिससे उनके एक्सपोर्ट क्वालिटी पर कोई प्रभाव ना पड़े.
कुलपति डॉक्टर के के सिंह ने बताया कि किसानों के द्वारा रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से धान के खेतों से नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन गैस निकलती हैं. ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने में मीथेन का 15% और नाइट्रस ऑक्साइड का 5 फ़ीसदी योगदान होता है जिसे कम किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा की नाइट्रीफिकेशन व यूरियेज अवरोधक का इस्तेमाल करके धान की खेती में नाइट्रीफिकेशन व यूरिया अवरोधकों से नाइट्रिफिकेशन अथवा डीनाइट्रिफिकेशन प्रभावित होता है इसके लिए नीम का तेल, अमोनियम सल्फेट , थायो यूरिया व नीम तेल लेपित यूरिया का इस्तेमाल करना चाहिए साथ ही एकीकृत पोषण प्रबंधन द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए एकीकृत पोषण प्रबंधन के तहत संतुलित खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होगा और पर्यावरण पर कुप्रभाव भी कम पड़ेगा.
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