तरबूज जायद या गर्मी के मौसम की प्रमुख फसल है. इसकी खेती मैदानों से लेकर नदियों के पेटे में सफलतापूर्वक की जा सकती है. यह कम समय, कम खाद और कम पानी में उगाई जा सकने वाली फसलें हैं. इसके पके हुए फल मीठे, शीतल, हल्के दस्तावर एवं प्यास को बुझाने वाले होते हैं.
तरबूज के लिए मृदा और जलवायु की आवश्यकता (Watermelon requires Soil and Climate)
तरबूज के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिटटी सर्वोतम हैं, जिसका पीएच मान 6-7 तक हो. अधिकतर नदियों के कछार या पेटे में तरबूज की खेती की जाती हैं.
तरबूज की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of Watermelon)
अर्का ज्योतिः इस किस्म में हल्के हरे रंग का छिलका और गहरे हरे रंग की धारियाँ होती है. इसमें 11-13 टी. एस. एस. होता है जिसका औसतन वजन 6- 8 किलोग्राम होता है.
शुगर बेबीः यह किस्म धुंधली धारिया लिए गोलाकार होती है. इसका गुद्दा गहरा लाल और बीज किनारे के साथ काले, भूरे व छोटे होते हैं. इसमें 11-13 टीएसएस होता है जिसका औसत वजन 3-5 किलो होता है.
असाही यमातोः यह सामान्यतः बड़ी, गोलाकार, चिकनी, हल्के हरी त्वचा और गहरे हरे रंग की किस्म है, जो माध्यम समय मेन पक कर तैयार हो जाती है.
दुर्गापुरा केसरः इसके बीज बड़े होते है. यह एक देर से पकने वाली किस्म है जिसका औसत वजन 4-5 किलो होता है.
दुर्गापुरा मीठाः यह किस्म आकार में गोल, रंग में भूरी और इसका गुद्दा गहरे लाल रंग का होता है. इसके बीज सफेद और नोक काले होते है. इसमें 11 TSS के साथ औसत वजन 6-8 किलोग्राम होता है.
अर्का चंदनः यह किस्म मध्यम आकार और गोल होती है. इसके छोर हल्के दबे हुए होते हैं. यह किस्म हल्के हरे से लेकर हल्के भूरे रंगो में पायी जाती है और पकने पर इसमें क्रीमी धब्बे बन जाते हैं. औसत वजन 6 किलो के साथ 12-13 टी.एस.एस. होता है.
खेत की तैयारी और रोपण के तरीके (Farm preparation and planting methods)
इसके लिए खेत को अच्छे से जोतकर बीज बुवाई की जा सकती है. इसके लिए कुंड विधि और गढ्ढा विधि ठीक रहती है. कुंड विधि में 2- 3 मीटर की दूरी से बने हुए हल-रेखा के दोनों तरफ बुवाई की जाती है, इस कारण बेल को जमीन पर बढ़ने की जगह मिल जाती है. हल-रेखा के किनारे से 3-4 बीज 60-90 से.मी. की दूरी से बोये जाते है. गढ्ढा विधि में 60 X 60 X 60 वर्ग सेंटीमीटर के गड्ढे 2 से 3.5 X 0.6-1.2 मीटर के अंतर से रखे जाते हैं. इनमें बीज बुवाई की जाती है.
बुवाई का समय और बीज उपचार (Sowing Time and Seed Treatment)
तरबूज को दिसंबर से मार्च तक बोया जा सकता हैं किन्तु मध्य फरवरी का समय सबसे सही रहता हैं. इसके बीज के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी, 10 ग्राम स्यूडोमोनस फ्लूरिसेंस या 2 ग्राम कारबेंडेजिम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपयोग करें.
बीज दर और दूरी (Seed rate and distance)
इसकी बुवाई के लिए 0.8-1 कि.ग्रा. बीज प्रति एकड़ उपयोग की जाती है, यह मात्रा बीज के आकार पर भी निर्भर होती है. सामान्यतः 600-800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसके बीजों की बुवाई 2.5- 5.0 सेमी गहरी व उपयुक्त अंतर से की जानी चाहिए.
तरबूज की बेल में पिंचिंग करना (Pinching in watermelon crop)
जब बेल बढ़कर 1 मीटर लम्बी हो जाती है तब सिरे के टहनियों की पिंचिंग करने पर दूसरी टहनियाँ जल्दी से बढ़ने लगती है. सबसे पहले जब बेल 1 मीटर लम्बी हो जाये तो इसे ऊपर सिरे से हल्का सा काट देना चाहिए. कुछ दिनों बाद, जहां से आपने बेल को काटा है वहां से दो अलग-अलग शाखाओं में बेल बढ़ने लगती है. इसे 2G कटिंग कहते हैं. जब ये दोनों शाखाएं थोड़ी लंबी हो जाएं तो आप इनको भी ऊपरी सिरों से काटना चाहिए और फिर इनमें से और नयी शाखाएं आगे निकलती हैं. इससे पौधे में अधिक शाखाएँ निकलेगी और ज्यादा उत्पादन मिलेगा.
उर्वरक प्रबंधन (Manure and Fertilizer management)
रोपण से पहले नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटैशियम की पूरी मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए. रोपण के 30-35 दिनों के बाद बची हुई नाइट्रोजन का उपयोग करें, क्योंकि इस समय भी पौधे को नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है.
गोबर की खाद 6-8 तन प्रति एकड़ भूमि में भली-भांति मिला देना चाहिए. 32 किलो नत्रजन प्रति एकड़ देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 12-12 किलो प्रति एकड़ की दर से देनी चाहिए.
जल प्रबंधन (Irrigation)
इसके लिए जमीन की सिंचाई बीज रोपण से एक या दो दिन पहले की जाती है, बाद की सिंचाई सप्ताह के अंतर से की जानी चाहिए.
खरपतवार प्रबंधन (Weeding in Watermelon crop)
पहली निराई बुवाई से 20- 25 दिनों के बाद और दूसरी निराई एक महीने बाद सावधानी से की जानी चाहिए.
तरबूज की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Water melon)
इसकी कटाई बुवाई के 75-100 दिनों के बाद की जा सकती है, जिससे औसतन पैदावार 300-400 क्विंटल प्रति एकड़ तरबूज प्राप्त हो जाते हैं.
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