उत्तर भारत में शीत ऋतू में उगाया जाने वाली एक फसल गाजर भी है. जो न केवल सेहतमंद परिवारों में अपना स्थान रखती है. बल्कि हर एक आम परिवार भी सर्दियों में इसका लुफ्त उठाता है. भारतीय भोजन में सब प्रकार की सब्ज़ियों का स्थान स्थिर है पर गाजर ने अपने रंग, स्वाद, उपयोग एवं उपयोगिता के आधार पर सभी जगहों पर अपना स्थान बना रखा है. जैसे कि कुछ घरों में इसकी जगह सब्ज़ियों में है. तो कुछ के सलाद, किसी के यहां पुडिंग का एक मुख्य अंग है तो किसी का सूप, किसी के गाजर का हलवा की प्लेट तो किसी के मोमोज या चाऊमीन का सामान. इस तरह पुरे साल इस लाल-लाल मीठी महकती गाजर का इंतजार रहता है. इसका इंतजार न केवल उपभोक्ता को रहता है. बल्कि उत्तर भारत का कृषक समाज भी पुरे साल जुलाई और सितंबर के महीने के आने का इंतजार करता है. क्योंकि इस फसल से रबी के मौसम में बिना ज्यादा मेहनत किए अधिक मुनाफा भी कमाया जाता है.
लेकिन समय के साथ -साथ बाजार में अधिक से अधिक पैदावार वाली किस्म गई है. परंतु मौसम की मार, मौसम परिवर्तन और रोगों के कारण हर वर्ष अच्छे से अच्छे बीजों की मांग रहती है. इन्ही सभी बातों को ध्यान में रखते हुए सोमानी सीड्स ने भी उत्कृष्ट हाइब्रिड गाजर का बीज - वंडर रेड के नाम से बाजार में उतारा है. जो आज हर किसानों की बीच चर्चा का विषय बन रहा है. आज हम आपको कुछ ऐसे ही किसान वकील सिंह और बलदेव सिंह जी से मिलवाते र्है. वकील सिंह जी और बलदेव सिंह जी माछीवाड़ा इलाके दनूर गांव के सबसे ज्यादा प्रभावशाली और प्रगतिशील किसानों में से एक है. आज से तीन साल पहले सोमानी सीड्स के पंजाब प्रभारी श्री हरदीप सिंह अपने बीजों के प्रचार एवं प्रसार के लिए माछीवाड़ा के गांव दनूर के भ्रमण पर गए थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात इन दोनों किसान भाइयों से हुई. उस समय ये दोनों किसान अपने द्वारा बनाए देसी बीजों को लगा कर खेती कर रहे थे.
परंतु हर वर्ष ये दोनो किसान भाई बाजार में आने वाले सभी बीजों पर प्रयोग भी करते रहते थे. आखिरकार इन्होंने हरदीप सिंह द्वारा दिया गया. हाइब्रिड - वंडर रेड सैंपल सीड्स बड़े ही जतन से अपने खेत पर लगाया. समय -समय पर इसकी सही देख रेख करते रहे और हरदीप सिंह जो इस गांव के किसानों में अपनी पैठ बनाना चाहता थे. वे लगातार इन दोनों के संपर्क में रहे. समय बीतता रहा और अंत में मेहनत रंग लाई भरपूर फसल के साथ रंग, रूप,आकार, स्वाद और उपज बाजार के मांग के अनुरूप मिला. फिर दोनों भाइयों ने जमकर सोमानी सीड्स की तारीफ कि और अब वह हर साल सोमानी सीड्स 'वंडर -रेड को ही अपने खेतों में लगाते है और हर साल अच्छा मुनाफा कमाते है.
सरदार बलदेव सिंह जी का कहना है कि सभी गाजरों में यह अब्बल है. क्योंकि यह भरपूर पैदावार देती है. साथ ही साथ इसका रंग, रूप, मिठास, लम्बे समय तक खेत में टिका रहना, लम्बे दुरी तक ट्रांसपोर्ट द्वारा भेजे जाने के बावजूद ख़राब न होना, एक समान मोटाई तथा जड़ तक खाने योग्य इसकी विशेषता है.
अगर उनकी माने तो अन्य सभी कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाली हाइब्रिड सेगमेंट में सबसे ज्यादा कमाई देती है. सरदार वकील सिंह जी के अनुसार उन्हें अन्य सभी किस्मों के तुलना में सोमानी सीड्स में दुगनी कमाई होती है. उनके अनुसार सोमानी सीड्स के हाइब्रिड वंडर रेड गाजर से होने वाली आय की एक विश्लेषण में सरदार बलदेव सिंह जी के अनुसार उन्हें एक एकड़ के खेत के लिए लगभग 2 कि.ग्रा से 2.5 कि.ग्रा बीज की जरुरत पड़ती है. इनके अनुसार वंडर रेड को तैयार होने में लगभग 85 से 100 दिन का समय लगता है और इससे तकरीबन 2,40,000 बेचने योग्य गाजर के जड़ प्राप्त होता है. एक अनुमान के तहत एक ग्राम गाजर के बीजों में लगभग 140-150 बीज आते है. इस तरह 2.5 कि.ग्रा में 3,75,000 बीज आयेंगे और यदि 80 प्रतिशत जमाव को माना जाय तो लगभग 3,00,000 गाजर के पौधे तैयार हो जायेंगे और यदि हम यह मान कर चलें कि 20 प्रतिशत जड़ ख़राब हो गई हो और बाजार में बेचने लायक नही है. तो भी 2,40,000 गाजर के जड़ को प्राप्त किया जा सकता है. उनके अनुसार 6-8 गाजर के जड़ों का औसत वजन लगभग एक किलो आता है. इस तरह एक एकड़ भूमि से इन्हें 30,000 कि.ग्रा बाजार योग्य गाजर प्राप्त हो सकती है. परंपरा के अनुसार ये लोग गाजर को प्रोसेस कर प्लास्टिक की पन्नी पर डाल कर ले जाते है.
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इससे तकरीबन 2,40,000 बेचने योग्य गाजर के जड़ प्राप्त होती है. एक अनुमान के तहत एक ग्राम गाजर के बीजों में लगभग 140 - 150 बीज एक अनुमान की तहत लगभग 140 से 160 जड़ एक पन्नी पर आ जाता है. जिसका वजन लगभग 18 से 20 किलोग्राम होता हैं. जिससे लगभग 1500 पन्नी गाजर के बन जाती हैं. जिन्हे ये लोग 85 रुपए से 90 रुपए की दर से बाजार में बेच देते हैं. इस तरह गाजर के बिज़नेस से बाजार में इन्हें 90 दिनों के उपरांत इनके खेत से गाजर को बेचने के बाद इनकी आमदनी लगभग 1,35,000 रु हुई.
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