हमारे देश में आम (Mango)को बहुत महत्वपूर्ण फल माना जाता है. इसकी खेती देश के कई राज्य जैसे, उत्तर प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, उडीसा, महाराष्ट्र, और गुजरात में व्यापक स्तर पर होती है. किसान आम की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमाने के लिए उन्नत और गुणवत्ता वाली किस्मों की बुवाई करते हैं. इसी कड़ी में राजस्थान के कोटा निवासी किसान श्रीकृष्ण सुमन ने आम की एक नई और उन्नत किस्म विकसित की है. आइए देश के किसान भाईयों को इस किस्म की खासियत बताते हैं.
आम की नई किस्म
55 वर्षीय किसान श्रीकृष्ण सुमन ने आम की एक ऐसी नई किस्म विकसित की है, जिससे सालभर नियमित तौर पर सदाबहार नाम का आम पैदा होता है. इतना ही नहीं, यह किस्म आम में लगने वाली प्रमुख बीमारियों से मुक्त है. इस किस्म के फल स्वाद ज्यादा मीठा और लंगड़ा आम जैसा होता है. इस किस्म का पेड़ नाटा होता है, इसलिए यह किचन गार्डन में लगाने के लिए भी उपयुक्त है. इसका पेड़ काफी घना होता है, साथ ही कुछ साल तक गमले में लगा सकते हैं. इसका गूदा गहरे नारंगी रंग का होता है, जो कि स्वाद में बहुत मीठा होता है. खास बात यह है कि इसके गूदे में बहुत कम फाइबर पाया जाता है. यह बाकी अन्य किस्मों से अलग है. यह कई पोषक तत्वों से भरपूर है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है.
कक्षा 2 तक पढ़ें है श्रीकृष्ण सुमन
आम की नई किस्म विकसित करने वाले किसान श्रीकृष्ण सुमन ने कक्षा 2 तक पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया था और अपना पारिवारिक पेशा माली का काम शुरू कर दिया था. हमेशा से उनकी दिलचस्पी फूलों और फलों के बागान के प्रबंधन करने में थी. मगर उनका परिवार सिर्फ गेहूं और धान की खेती करता था. वह जान चुके थे कि गेहूं और धान की अच्छी फसल लेनी है, तो कुछ बाहरी तत्वों जैसे बारिश, पशुओं के हमले से रोकथाम समेत कई चीजों पर निर्भर रहना होगा. इससे सीमित लाभ ही मिलेगा. इसके बाद उन्होंने फूलो की खेती करना शुरू किया, ताकि परिवार की आमदनी बढ़ सके. उन्होंने कई किस्म के गुलाब लगाए और उन्हें बाजार में बेचा. इसके साथ ही आम के पेड़ लगाना भी शुरू कर दिया.
साल 2000 में देखा आम का एक पेड़
उन्होंने साल 2000 में अपने बागान में आम का एक ऐसा पेड़ देखा, जिसके बढ़ने की दर बहुत तेज थी. इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की थी. उन्होंने देखा कि इस पेड़ में पूरे साल बौर आते हैं.
15 साल में तैयार की किस्म
किसान ने आम के पेड़ की 5 कलम तैयार की. इस किस्म को विकसित करने में लगभग 15 साल का वक्त लगा. इस बीच कलम से बने पौधों का संरक्षण और विकास किया. परिणाम यह है कि कलम लगाने के बाद पेड़ में दूसरे ही साल फल लगना शुरु हो गया.
किसान को मिले कई पुरस्कार
आम की इस सदाबहार किस्म को विकासित करने के लिए किसान श्रीकृष्ण सुमन को एनआईएफ का नौवां राष्ट्रीय तृणमूल नवप्रवर्तन एवं विशिष्ट पारंपरिक ज्ञान पुरस्कार (नेशनल ग्रासरूट इनोवेशन एंड ट्रेडिशनल नॉलेज अवार्ड) दिया गया है. इसके अलावा कई अन्य मंचों पर भी मान्यता दी गई है.
सदाबहार आम के पौधों के मिल चुके हैं कई ऑर्डर
देश और विदेश से किसान श्रीकृष्ण सुमन को साल 2017 से 2020 तक सदाबहार आम के पौधों के लगभग 8 हजार से ज्यादा ऑर्डर मिल चुके हैं. वह 2018 से 2020 तक उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गोवा, आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और चंडीगढ़ को 6 हजार से ज्यादा पौधों की आपूर्ति कर चुके हैं. इसके साथ ही 500 से ज्यादा पौधे राजस्थान और मध्यप्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान संस्थानों में खुद लगा चुके हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों को भी 400 से ज्याद कलमें भेज चुके हैं.
किस्म को सरकार ने दी मंजूरी
आम की इस नई किस्म को नेशनल इन्वोशन फाउंडेशन (एनआईएफ) इंडिया द्वारा मान्यता मिल चुकी है. बता दें कि एनआईएफ भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्तसाशी संस्थान है. खास बात यह है कि एनआईएफ ने आईसीएआर, राष्ट्रीय बागबानी संस्थान इंडियन इंस्ट्रीट्यूट ऑफ हार्टिकल्चरल रिसर्च (आईआईएचआर), बैंगलौर को इस किस्म का स्थल पर जाकर मूल्यांकन करने की सुविधा दी. इसके अलावा राजस्थान के जयपुर के जोबनर स्थित एसकेएन एग्रीकल्चर्ल यूनिवर्सिटी ने फील्ड टेस्टिंग की.
जानकारी के लिए बता दें कि अब इस किस्म का पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम तथा आईसीएआर- नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज (एनवीपीजीआर) नई दिल्ली के तहत पंजीकरण कराने की प्रक्रिया चल रही है.
इसके अलावा जो किसान भाई इस किस्म को प्राप्त करना चाहता हैं, वह ऊपर दिए गए संस्थान से संपर्क कर सकता है.
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